फसल बीमा ऊंट के मुंह में जीरा
रायपुर | बीबीसी: ढोल-बाजे के साथ जिस फसल बीमा योजना का आगाज़ हुआ वह ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रहा है. कम से कम छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले की जमीनी हकीकत तो यही बयां करती हैं. राज्य में हजारों किसानों को मुआवजे के रूप में 5 से 25 रुपये थमा दिये गये हैं. दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ में साल 2014-15 में फसल बीमा के लिये निजी इंश्योरेंस कंपनियों को 3.35 अरब रुपए का भुगतान किया गया है. छत्तीसगढ़ के एक किसान मनोहर साय से अगर आप फ़सल बीमा का ज़िक्र करें तो वो भड़क उठते हैं. कोरिया ज़िले के मनेंद्रगढ़ में रहने वाले साय ने क़सम खा रखी है कि वो अब सरकार की किसी भी बीमा योजना में शामिल नहीं होंगे.
साय कहते हैं, “अगर आपको मुआवज़े के नाम पर 25 रुपए दे दिए जाएं तो क्या आप उसे बीमा मानेंगे? छत्तीसगढ़ में धान के किसानों के साथ राज्य सरकार ने यही किया है. अब इस जन्म में तो हम फ़सल बीमा कराने से रहे. ”
साय अकेले नहीं हैं, जो सरकार की फ़सल बीमा योजना से मायूस हैं. राज्य में ऐसे किसानों की संख्या हज़ारों में है, जिन्हें फ़सल बीमा के नाम पर 5 रुपए से लेकर 25 रुपए तक की रक़म थमा दी गई.
असल में 2014-15 में सरकार की मौसम आधारित फ़सल बीमा योजना के तहत छत्तीसगढ़ में सरकार ने बीमा करने का ज़िम्मा निजी क्षेत्र की सात बीमा कंपनियों को सौंपा था.
इसके तहत राज्य के क़रीब 10 लाख़ किसानों ने फसलों का बीमा कराया. बदले में इन बीमा कंपनियों को 3 अरब 35 करोड़ रुपए से अधिक की रक़म प्रीमियम के तौर पर मिली.
इस बीमा योजना के तहत कम या अधिक बारिश होने और फ़सल के बर्बाद होने पर किसानों को मुआवज़ा दिए जाने का प्रावधान था. लेकिन फ़सल बर्बादी के नाम पर किसानों को जो मुआवज़ा मिला, वह चौंका देने वाला है.
बीबीसी के पास जो सरकारी दस्तावेज़ उपलब्ध हैं, उसके मुताबिक़ कोरिया ज़िले में बीमा का ज़िम्मा बजाज एलायंज जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के पास था.
केवल छींदडांड़, धौराटिकरा, पटना और कंचनपुर गाँवों के आंकड़ों को देखें तो इन गाँवों के 3,429 किसानों को 25 रुपए प्रति हेक्टेयर की दर से 1 लाख़ 27 हज़ार 336 रुपए 75 पैसे का भुगतान किया गया.
यानी इस बीमा योजना में किसी किसान के पास अगर आधा एकड़ की ज़मीन थी, तो बीमा करने वाली बजाज एलायंज जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड ने उस किसान को महज़ 5 रुपए का मुआवज़ा दिया.
कोरिया ज़िले के सामाजिक कार्यकर्ता रमाशंकर गुप्ता कहते हैं, “पूरे छत्तीसगढ़ में ही फ़सल बीमा के नाम पर प्राइवेट बीमा कंपनियों को अरबों रुपए का भुगतान कर दिया गया. किसानों के हाथ में क्या आया, यह आपको गाँव-गाँव में घूम कर साफ़ समझ में आ जाएगा.”
लेकिन राज्य के कृषि मंत्री बृजमोहन अग्रवाल इन दावों से सहमत नहीं हैं.
वे इसे पूरी तरह से ख़ारिज करते हुए कहते हैं, “छत्तीसगढ़ में ऐसा एक भी किसान नहीं है, जिसे पाँच रुपए, दस रुपए या सौ रुपए का मुआवज़ा मिला है. जबरदस्ती किसानों को बरगलाया जा रहा है.”
हालाँकि किसान नेता आनंद मिश्रा का कहना है कि राज्य बनने के बाद से ही फ़सल बीमा के नाम पर अंधाधुंध लूट मची हुई है. मिश्रा का दावा है कि अगर पिछले 16 सालों में लागू इस तरह की फ़सल बीमा योजनाओं की जाँच करवा ली जाए तो कई अरब रुपए का घोटाला सामने आएगा.
आनंद मिश्रा कहते हैं, “किसानों की फ़सल बीमा मामले की जाँच एसआईटी से करवाई जानी चाहिए. अगर सरकार यह पहल नहीं करेगी तो हम अदालत का सहारा लेंगे.”
छत्तीसगढ़ में साल 2014-15 में कुल 97,4199 किसानों ने क़रीब 17 लाख़ हेक्टेयर भूमि की फ़सल का बीमा कराया था, जिस पर सात बीमा कंपनियों को 3.35 अरब रुपए से ज़्यादा राशि का भुगतान प्रीमियम के तौर पर किया गया था.