यूं ही मरते रहेंगे किसान?
डॉ. संकेत ठाकुर | रायपुर: बस कुछ देर पहले ही बांसपहाड़ गांव से लौटा हूँ. छत्तीसगढ़ की राजधानी से लगभग 100 किमी दूर राजनांदगांव जिला के डोंगरगढ़ ब्लाक के पीटेपानी ग्राम पंचायत का आश्रित गांव आज अचानक अखबारो के मुखपृष्ठ में खबर बन गया. दरअसल इस गांव के 31 वर्षीय युवा कृषक पूनम उइके ने कीटनाशक दवा पीकर परसो आत्महत्या कर ली और आत्महत्या करने वाले तीन किसानो के साथ वह भी एक खबर बन गया. सुबह खबर पढ़कर तय किया आज सीधे बांसपहाड़ जाऊंगा.
आम आदमी पार्टी के राजनांदगाँव ज़ोन के मीडिया प्रभारी राणा संदीप सिंह, अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के प्रभारी शब्बीर अहमद, डोंगरगाँव के विधानसभा प्रभारी ठकुरीराम साहू और अपने सहयोगी प्रकाश के साथ बाँसपहाड़ के किसान पूनम उईके के यहाँ पहुचा.
पता चला कि ग्रामवासी नहावन के लिये गांव के तालाब गए है. हम लोग तालाब के पास जैसे ही पहुँचे, वैसे ही एक ह्रदयविदारक दृश्य देखकर रूह कांप गई. पूनम की युवा पत्नी की चूड़िया पत्थर से तोड़ी जा रही थी एक बुजुर्ग महिला द्वारा. चूड़ी तोड़ना याने परम्परानुसार विधवा होना. एक युवा स्त्री को असमय विधवा होता देखना दिल को दहला गया.
हम लोग कुछ देर स्तब्ध होकर खड़े रहे, फिर धीरे से ग्रामीणों से चर्चा आरम्भ की.
पूनम उईके की आत्महत्या के कदम से सभी ग्रामवासियो में गहन दुःख के साथ रोष भी दिखाई दिया. वजह सामने आई कि पूनम के 1.43 एकड़ खेत से इस साल भयंकर सूखा के कारण धान के बालियों के बदले सिर्फ पैरा हाथ लगा. इस आपदा पर ग्रामीण बैंक के अधिकारियों ने रु 42000 का कर्ज पटाने का नोटिस कुछ दिनों पूर्व उसके पिता को थमा दिया था. पिता, पुत्र के साथ माता और पत्नी सदमे में थे कि अब क्या होगा. स्वभाव से शांत रहने वाले पूनम ने एक भयानक कदम उठा लिया और घर में ही कीटनाशक को पी गया. घर से अस्पताल ले जाते वक्त रास्ते में उनकी मृत्यु हो गई.
पूनम की चर्चा करते करते तालाब के किनारे खड़े ग्रामीणों ने बताया कि बैंक का नोटिस अधिकांश किसानों को मिला है. गांव में लगभग 200 किसान हैं, जिनमें से अधिकांश लघु एवं सीमांत कृषक हैं. इन सभी ने बैंक या सोसाईटी से खेती के लिये 10000 से लेकर 40000 रुपये तक का कर्ज ले रखा है. कुछेक बड़े किसानो ने 1 से 1.5 लाख तक का कर्ज लिया है. इन सभी को कर्जा वापसी का नोटिस दिया गया है, जिसमे लोन लिंकिंग करते हुए धान बेचने कहा गया है.
पूनम के चाचा संतराम उइके ग्राम बांसपहाड़ निवासी ग्राम पंचायत पीटेपानी के सरपंच है. उनके नाम से ग्रामीण बैंक ने 1,35,900 की वसूली का नोटिस दिया है, जिसमें 22000 रुपये की ब्याज की रक़म शामिल है. संतराम की 3.50 एकड़ जमीन है और फसल मात्र 25% होने का अनुमान है. कमोवेश यह स्थिति लगभग सभी किसानों की है.
एक ओर सूखा के कारण 25% से कम फसल होने का खतरा है और दूसरी और बैंक ने कर्ज पटाने का फरमान जारी किया हुआ है. कुल मिलाकर किसान मौसम की मार और सरकार के फरमान से बेहाल है. गांव में रोजगार मूलक कोई कार्य नही बचा है. ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या किसानों का दुःख दर्द समझने वाली सरकार नाम की कोई चीज है भी नही? क्या छत्तीसगढ़ और भारत सरकार की किसानों के लिये कोई जवाबदेही नहीं है? कुछ हजार रुपयों के लिये किसान अपनी जान दे रहे हैं और करोड़ो अरबों रुपयों का लोन लेकर बैठे कारपोरेट घरानों का हिसाब तक बताने से वित्त मंत्री हाथ खड़ा कर देते हैं, क्यों ?
मैं सोचता था कि अन्नदाता किसानों का सरकार कुछ तो ख्याल रखती है, बोनस, मुफ़्त बिजली देकर. लेकिन आज वह सारा भ्रम टूट गया. मैंने किसानो से कहा- हम कर्ज माफ़ करवाने का प्रयास करेंगे, बोनस दिलवायेंगे. बांसपहाड़ के किसानों ने कहा आप लोग कुछ नहीं करा सकते साहब! एक बुजुर्ग किसान ने कहा सरकार कांग्रेस की हो या भाजपा की हमारा दुःख दर्द कभी नहीं दूर कर सकती.
क्या सचमुच इस प्रदेश के किसान इसी तरह तिल तिल कर जिएंगे-मरेंगे ?
*लेखक कृषि वैज्ञानिक और आम आदमी पार्टी, छत्तीसगढ़ के संयोजक हैं.