छत्तीसगढ़

सीमा पर लड़ने वाला अफसरों से हारा

बिलासपुर | जे के कर: दुनिया के कई देशों में दुश्मनों से लड़ चुका एक सैनिक छत्तीसगढ़ के अफसरों से हार मान चुका है. अंग्रेज़ों के क़ानून का हवाला दे कर छत्तीसगढ़ के अफसर इस भूतपूर्व सैनिक को पिछले 7 साल से यहां से वहां दौड़ा रहे हैं. पटवारी से लेकर मुख्यमंत्री तक इस भूतपूर्व सैनिक ने गुहर लगाई लेकिन आश्वासन के अलावा कुछ भी हासिल नहीं हुआ.
गौरतलब है कि भूतपूर्व सैनिकों को सरकारी पड़ी जमीन कृषि के लिये देने का प्रावधान है परन्तु जांजगीर-चांपा जिले का सुखेन्द्र तिवारी अंग्रेजों के जमाने में बने नियम-कायदों के कारण आज भी दुख भोग रहा है.

सुखेंद्र तिवारी 11वीं मैकेनिकल इंफेटरी रेजीमेंट से हवलदार के पद से सेवानिवृत हुये हैं. सियरालियोन, कनाडा, अंगोला, दुबई, जकार्ता तथा केन्या में भारतीय सेना की ओर से यूएन पीस कीपिंग फोर्स में सेवा देने वाला सुखेन्द्र तिवारी ने कारगिल और ऑपरेशन विजय में भी भाग लिया है.

अफ्रीकी देश सिरालियोन में साढ़े नौ माह तक अपनी सेवा देने के कारण सुखेन्द्र तिवारी को विदेश सेवा मेडल तक मिल चुका है. सुखेन्द्र तिवारी ने 27 फऱवरी 1993 को सेना में अपनी नौकरी की शुरुआत की थी तथा 30 नवंबर 2009 को हवलदार के पद से सेवानिवृत हुआ था.

सेवानिवृत्ति के बाद जब सुखेन्द्र तिवारी ने सेना के नियमानुसार कृषि की ज़मीन के लिये कागजी कार्रवाई शुरु की तब कहीं उन्हें पता चला कि दुश्मन से लड़ने की तुलना में भारतीय नौकरशाही और बाबूशाही से लड़ना कितना मुश्किल है. 2010 से शुरु हुई कागजी कार्रवाई आज तक जारी है.

सुखेंद्र मुख्यमंत्री से लेकर कलेक्टर तक के जनदर्शन में अपनी व्यथा को लेकर चक्कर काट चुका है. सुखेन्द्र तिवारी की व्यथा है कि उसे भूतपूर्व सैनिकों को मिलने वाली जमीन आज तक नहीं मिली है.

पिछले साल जांजगीर-चांपा के कलेक्टर ने 14 अक्टूबर 2014 को इस बिना पर सुखेन्द्र तिवारी को भूतपूर्व सैनिकों को मिलने वाले शासकीय भूमि देने से इंकार कर दिया क्योंकि उनका मासिक वेतन 350 रुपये प्रतिमाह से ज्यादा है.

सुखेन्द्र तिवारी कागज़ों का पुलिंदा दिखाते हुये बताते हैं कि यह नियम 1856 में अंग्रेजों के जमाने में बना था कि जिस भूतपूर्व सैनिक का मासिक पेंशन 350 रुपये से ज्यादा है उसे शासकीय भूमि नहीं दी जायेगी जबकि इसे राजस्व रिकॉर्ड में ‘सूबेदार मेजर के बराबर पेंशन पाने से’ प्रतिस्थापित किया जा चुका है.

मध्यप्रदेश शासन ने 20 अक्टूबर 1989 को अपने पत्र क्रमांक 16/14/7/2a/86 में कहा है कि जिसे सेना के सूबेदार मेजर के बराबर पेंशन मिलता है वह भूतपूर्व सैनिक जमीन पाने के योग्य है. सुखेन्द्र ने बताया कि उससे ज्यादा पेंशन पाने वाला शासकीय जमीन पाने का हकदार नहीं है. गौरतलब है कि सेना में हवलदार का पद सूबेदार मेजर से नीचे होता है.

सुखेन्द्र तिवारी ने बताया कि सेवानिवृति के पश्चात् सूबेदार मेजर को करीब 35 हजार पेंशन मिलता है जबकि उसका मासिक पेंशन मात्र 11 हजार रुपये ही है.

इस मामले में जिला सैनिक कल्याण केन्द्र के ग्रुप कैप्टन एके पाठक ने जांजगीर-चांपा के कलेक्टर को पत्र लिखकर सूचना दी थी कि सूबेदार मेजर तक के पद से रिटायर होने के बाद मिलने वाले पेंशन के बराबर पेंशन पाने वाला शासकीय कृषि भूमि पाने का योग्य होता है. लेकिन यह चिट्ठी भी काम नहीं आई.

उसने संभाग के कमिश्नर सोनमणी वोरा से भी मुलाकात की. श्री वोरा ने पीड़ित की तक़लीफों को देखते हुये तत्काल पहल की. लेकिन उस पहल का भी परिणाम नहीं निकल पाया.

सुखेंद्र कहते हैं- “मुझे जिस तरह कागज़ी लड़ाई में प्रताड़ित किया जा रहा है, कई बार अफसोस होता है कि मैं ऐसे ही लोगों के लिये सीमा में लड़ाई लड़ रहा था.”

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