छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ में बिजली को झटका

रायपुर: मानसून के आते ही छत्तीसगढ़ के निजी बिजली संयंत्रों पर आफत बरस गई है. कई संयंत्रों में ताले लग गए हैं और कई में ताले लगाने की तैयारी है. इस तरह बिजली बेचने को कमाई का बड़ा जरिया बनाने के उनके सपनों को जोर का झटका लगा है. दरअसल,राज्य बिजली वितरण कंपनी ने निजी संयंत्रों से बिजली खरीदना बंद कर दिया है. कोरबा में 500 मेगावाट के नए संयंत्र के शुरू होने से निजी संयंत्रों से भविष्य में बिजली की खरीदी की संभावना पर भी विराम लग गया है.

प्रदेश में चार दर्जन के आसपास छोटे और बड़े पावर संयंत्र लगे हैं. इन पावर संयंत्रों से जून तक तो राज्य पावर वितरण कंपनी बिजली खरीदती रही, लेकिन एक जुलाई से खरीद बंद कर दी गई है.

गर्मी में प्रदेश में बिजली की खतत अचानक बहुत ज्यादा बढ़ गई थी जिस कारण निजी संयंत्रों से वितरण कंपनी करीब 400 मेगावाट बिजली खरीद रही थी. लेकिन गर्मी के जाते ही एसी, कूलर बंद होते ही करीब एक हजार मेगावाट की खपत कम हो गई. खपत कम होते की वितरण कंपनी ने निजी संयंत्र से बिजली की खरीद बंद की. खरीदी बंद होते ही बिजली संयंत्रों की हालत एक पखवाड़े में ही खराब हो गई है.

जानकारों की मानें तो अब तक आधा दर्जन से ज्यादा संयंत्र बंद हो गए और कई प्लांट बंद होने वाले हैं. अभी वही संयंत्र चल रहे हैं जिन्होंने अपने उद्योगों के लिए संयंत्र लगाए हैं.

वितरण कंपनी के अधिकारी कहते हैं कि वैसे भी विनियामक आयोग के निर्देश हैं कि बिजली वहीं से खरीदनी है जहां से सस्ती मिले. आज की तारीख में एक्सजेंच में बिजली 2.10 रुपये में मिल रही है तो ऐसे में निजी संयंत्रों से बिजली लेने का सवाल ही नहीं उठता है.

छोटे बिजली प्लांटों के बंद होने का एक कारण यह भी है कि इन संयंत्रों में बिजली उत्पादन की लागत भी नहीं निकल पाती है. वितरण कंपनी निजी संयंत्रों से 2.70 रुपये में बिजली लेती है. संयंत्रों को 2.50 से ज्यादा तो लागत लग जाती है. निजी संयंत्रों में उत्पादन लागत ज्यादा आती है. राज्य उत्पादन कंपनी के कोरबा के बड़े-बड़े संयंत्रों में ही 2012-13 में 2.18 रुपये उत्पादन लागत आई है.

आज छत्तीसगढ़ में निजी बिजली संयंत्रों की स्थिति स्पंज आयरन उद्योगों जैसी हो गई है. प्रदेश में करीब डेढ़ दशक पहले जब स्पंज आयरन उद्योग लगाए गए थे, तब इनको भी सोने का अंडा देने वाली मुर्गी माना गया था. प्रारंभ में इसमें कमाई बहुत हुई. कमाई के मोह में धड़ाधड़ स्पंज आयरन उद्योग खुलते चले गए, लेकिन आज स्थिति यह है कि इन उद्योगों को अपना अस्तित्व बचाना मुश्किल हो गया है.

राज्य बिजली कंपनी अपने को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम कर रही है. कोरबा में एक 500 मेगावाट का संयंत्र शुरू हो गया है. इसमें अभी उत्पादन तो नहीं हो रहा है, लेकिन अगले माह से इसमें उत्पादन होने लगेगा. इस प्लांट में उत्पादन होने के बाद वैसे भी वितरण कंपनी को बाहर से बिजली लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

गर्मी के साथ दशहरा, दीपवाली के त्योहार के समय प्रदेश में कुल खपत 3000 मेगावाट के आस-पास होती है. कंपनी को बाहर से 500 मेगावाट के आस-पास ही खरीदी करनी पड़ती है. पावर कंपनी का मंडवा में एक और प्लांट तैयार हो रहा है जिसमें 500 मेगावाट के दो यूनिट तैयार किए जा रहे हैं. ये प्लांट अगले साल प्रारंभ हो जाएगा. इसके प्रारंभ होने पर तो कंपनी खुद बिजली बेचने की स्थिति में आ जाएगी.

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