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छत्तीसगढ़ में बसपा होगी किंगमेकर ?

रायपुर | संवाददाता: क्या छत्तीसगढ़ में नई सरकार बसपा तय करेगी? हर चुनाव में उम्मीदवार से लेकर विपक्षी दलों तक की भूमिका का अपना गणित है. लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव के आधार पर बहुत सरलीकृत तरीके से आंकलन करें तो सरकार का बनना बिगड़ना क्या इस बात पर निर्भर करेगा कि बसपा का हाथी जिस करवट बैठेगा?

छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में अभी पांच महीने बचे हुये हैं लेकिन हवा में चुनावी माहौल पूरी तरह से घुल चुका है. 90 सीटों वाली विधानसभा में इस बार सत्ताधारी दल भाजपा ने मिशन-65 का नाम दे कर 65 सीटों को जीतने का लक्ष्य रखा है, दूसरी ओर पिछले 15 सालों से सत्ता से बाहर रही कांग्रेस पार्टी ने भी 55 सीटों के साथ सरकार बनाने के लिये चुनावी अभियान शुरु कर दिया है. जीत जोगी ‘साथ-दो’ का नारा बुलंद कर 72 सीटों पर जीत की तैयारी की कोशिश में जी-जान से जुटे हुये हैं.

लेकिन दूसरे राज्यों की तर्ज पर छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस और बसपा जैसी पार्टियों के गठबंधन को लेकर अटकलों का दौर जारी है. बसपा के कुछ नेता जहां किसी भी तरह के गठबंधन के पक्ष में नहीं हैं, वहीं कुछ नेताओं का मानना है कि अगर गठबंधन कर के चुनाव लड़ा जाये तो छत्तीसगढ़ में भी हालात बदल सकते हैं. हालांकि बहुजन समाज पार्टी सभी सीटों से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है.

पार्टी सुप्रीमो मायावती खुद इस बार छत्तीसगढ़ को लेकर गंभीर हैं. इस कारण उन्होंने एक-दो नहीं, उत्तरप्रदेश के पांच नेताओं को छत्तीसगढ़ का चुनाव प्रभारी बनाया है, जिनका लगातार दौरा जारी है. बसपा ने “सत्ता प्राप्त करो” यात्रा भी शुरु कर दी है. दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष भूपेश बघेल पिछले कई महीनों से बसपा को गठबंधन के लिये तैयार करने की कवायद में जुटे हुये हैं. बघेल ने सार्वजनिक मंचों से गठबंधन का आफर दिया है. लेकिन बसपा अभी अपने पत्ते नहीं खोलना चाहती.

राज्य विधानसभा में बसपा के एकमात्र विधायक केशव चंद्रा का कहना है कि गठबंधन करके चुनाव लड़ने का फैसला पार्टी के शीर्ष अधिकारी तय करेंगे. लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह इस तरह के गठबंधन से
बेपरवाह नजर आते हैं. बसपा और कांग्रेस के गठबंधन पर उनकी टिप्पणी थी कि दशानन के दस सिर हो जायें, एक राम काफी होता है.

लेकिन राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अगर कांग्रेस और बसपा गठबंधन का गठबंधन होता है तो छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी की मुश्किल बढ़ जायेगी.

आंकड़ों की देखें तो 2013 के चुनाव में छत्तीसगढ़ की 90 विधानसभा सीटों में से 49 सीटों पर भाजपा ने कब्जा जमाया था तो 39 सीटों पर कांग्रेस काबिज हुई थी. एक-एक सीटें बसपा और निर्दलीय प्रत्याशी को मिली थीं. लेकिन लगातार चौंथी बार सरकार बनाने के लिये चुनाव मैदान में उतर चुकी भारतीय जनता पार्टी को यह पता है कि पिछले चुनाव में महज 0.75 प्रतिशत के वोट के अंतर से अपनी सरकार को बचा पाने में जो सफलता मिली थी, उसे दुहरा पाना आसान नहीं होगा. ऐसे में अगर बसपा के साथ गठबंधन करके कांग्रेस ने चुनाव लड़ा तो भारतीय जनता पार्टी के लिये सत्ता की राह आसान नहीं रह पायेगी.

छत्तीसगढ़ भले बहुजन समाज पार्टी का गढ़ नहीं रहा हो लेकिन राज्य के मैदानी इलाकों में दलित वोट हमेशा से डिसाइडिंग फैक्टर रहे हैं औऱ बसपा का इन इलाकों में अच्छा-खासा जनाधार रहा है. बसपा की स्थिति का अनुमान इस बात से भी लगाया जा सकता है कि बसपा के संस्थापक कांशीराम ने अपने जीवन का पहला लोकसभा चुनाव 1984 में छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा इलाके से ही लड़ा था. उसके बाद से बसपा इस इलाके में लगातार बढ़ती चली गई है. हालांकि वोटों का बिखराव और संसाधनों की कमी से जूझती रही बसपा विधानसभा चुनाव में एक बार 54 सीटों पर और दो बार 90 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ी कर चुकी है लेकिन दो सीटों से अधिक पर उसे कभी सफलता नहीं मिली है.

अविभाजित मध्यप्रदेश में पामगढ़ से बसपा उम्मीदवार दाउराम रत्नाकर को तीन बार विधायक बनने का अवसर मिला. छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद 2003 के विधानसभा चुनाव में सारंगढ़ और मालखरौदा से बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार विधानसभा में पहुंचे तो 13 सीटें ऐसी थीं, जहां पार्टी तीसरे नंबर पर थी. पार्टी को कुल 4.45 फीसदी वोट मिले थे. इसके बाद 2008 के चुनाव में भी पार्टी दो सीटों पामगढ़ और अकलतरा से चुनाव जीतने में सफल रही, जबकि 36 सीटों पर पार्टी तीसरे नंबर पर रही. इस साल वोटों का प्रतिशत बढ़ कर 6.11 प्रतिशत पर जा पहुंचा. अंतिम चुनाव यानी 2013 में बसपा का प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहा.

अलग-अलग कारणों से पार्टी के कई नेताओं के संगठन से बाहर होने का नुकसान बहुजन समाज पार्टी को उठाना पड़ा और केवल एक विधानसभा क्षेत्र जैजेपुर से जीत हासिल हो पाई. इस साल वोट का प्रतिशत भी घट कर 4.27 पर जा पहुंचा. लेकिन बसपा तीन सीटों पर दूसरे नंबर पर रही और 9 सीटों पर तीसरे नंबर पर पार्टी ने अपनी जगह बनाई.

राजनीतिक विश्लेषक इन्हीं सीटों पर कांग्रेस पार्टी और बसपा के गठबंधन के लिये संभावनायें देखते हैं. पिछले चुनाव में कम से कम 11 सीटें ऐसी थीं, जहां कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी के वोट जोड़ दिये जायें तो भाजपा वहां हार जाती. 2013 के चुनाव में राज्य की 90 विधानसभा सीटों में से भाजपा ने 49 सीटें जीती थीं. जबकि कांग्रेस को 39 और बसपा को 1 सीट मिली थी. कांग्रेस और बसपा मिलकर चुनावी समर में उतरतीं तो नतीजे अलग होते. बीजेपी को 11 सीटों का नुकसान उठाना पड़ता और 38 सीटें मिलतीं. जबकि कांग्रेस-बसपा गठबंधन 51 सीटों के साथ सत्ता पर काबिज हो सकता था.

इस तरह पिछले चुनाव के वोट प्रतिशत देखें तो भाजपा को कुल 41.04 प्रतिशत वोट मिले थे. वहीं कांग्रेस और बसपा को क्रमशः 40.29 और 4.27 प्रतिशत वोट मिले थे. दोनों पार्टियों का गठबंधन होता तो यह आंकड़ा 44.56 हो जाता और महज 0.75 प्रतिशत के अंतर से जीतने वाली भाजपा की स्थिति क्या होती, यह केवल अनुमान लगाया जा सकता है.

हालांकि बहुजन समाज पार्टी का जिस तरह का इतिहास रहा है, उसमें इस तरह के गठबंधन होने की संभावनायें कम ही हैं लेकिन राजनीति में असंभव जैसी चीज़ कहां होती है?

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