छत्तीसगढ़ में पत्रकार खतरे में-एडिटर्स गिल्ड
नई दिल्ली | संवाददाता: एडिटर्स गिल्ड ने छत्तीसगढ़ में पत्रकारों के खिलाफ हो रही कार्रवाई पर चिंता जताई है. `एडिटर्स गिल्ड’ की जांच टीम ने छत्तीसगढ़ के जगदलपुर, बस्तर, रायपुर और केन्द्रीय कारागार का दौरा कर पत्रकारों के उत्पीड़न की खबरों को सही पाया. जांच टीम के प्रकाश दुबे और विनोद वर्मा ने 13 से 15 मार्च के बीच इन इलाकों का दौरा किया. पीड़ित पत्रकारों, वरिष्ठ पत्रकारों और संपादकों से बात की. जगदलपुर और रायपुर में कई सरकारी अफसरों से मिले और रायपुर में मुख्यमंत्री रमन सिंह से मुलाकात की.
मुख्यमंत्री से मुलाकात के दौरान राज्य के कई पदाधिकारी, गिल्ड की कार्यकारिणी के सदस्य रुचिर गर्ग और एक स्थानीय दैनिक के संपादक सुनील कुमार भी मौजूद थे. मुख्यमंत्री ने दावा किया कि उनकी सरकार स्वतंत्र और निष्पक्ष मीडिया की पक्षधर है. गिरफ्तार किए गए पत्रकार प्रभात सिंह एवं संतोष यादव के मामले को लेकर उन्होंने उच्च स्तरीय मॉनिटरिंग कमेटी बनाई है. यह कमेटी इन पत्रकारों के मामलों को रिव्यू करेगी.
जांच दल की रिपोर्ट के अनुसार, छत्तीसगढ़ में मीडिया बेहद दबाव में है. जगदलपुर और दूर-दराज के कई आदिवासी इलाकों में पत्रकारों को समाचार संग्रह करने में दिक्कतें हो रही हैं. प्रशासन, खासकर पुलिस खबरों को लेकर बेहद दबाव बनाती है. पत्रकारों पर माओवादियों का भी दबाव होता है. आम धारणा है कि हर पत्रकार पर सरकार निगाह रखे हुए है. फोन पर कोई बात नहीं करना चाहता, क्योंकि पुलिस हर बात सुनती है. कई पत्रकारों का कहना है कि विवादास्पद संगठन सामाजिक एकता मंच को बस्तर के पुलिस मुख्यालय से फंडिंग मिलती है.
पिछले साल पुलिस ने माओवादियों से संबंध रखने के आरोप में दो लोगों को पकड़ा. इनमें से पत्रकार संतोष यादव को सितंबर में गिरफ्तार किया गया. वे नवभारत और दैनिक छत्तीसगढ़ में स्ट्रींगर थे. उनपर टाडा लगाया गया. अब वे केन्द्रीय कारागार में हैं. संतोष यादव और अन्य एक पत्रकार सोमारु नाग के खिलाफ पुलिस ने आरोप पत्र दाखिल कर दिया है. संतोष यादव ने जांच टीम को बताया कि उसे पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने रकम दी और माओवादियों के बारे में जानकारी मांगी. उसने नहीं दी, जिसका नतीजा रहा उसका उत्पीड़न.
इसी तरह वेबसाइट स्क्रोल.इन की कॉन्ट्रीब्यूटर मालिनी सुब्रमण्यिम जगदलपुर में रह रही थी. इससे पहले वे रेड क्रॉस के साथ काम कर रही थीं. पहले तो उन्हें कुछ लोगों ने धमकियां दीं. फिर, आठ फरवरी 2016 को उनके घर में तोड़फोड़ की गई. सरकारी अधिकारियों का मानना है कि मालिनी की रिपोर्ट्स हमेशा माओवादियों की तरफदारी वाली होती थीं. जगदलपुर के कलेक्टर अमित कटारिया के अनुसार, वे प्रेस कान्फ्रेंस में भी माओवादियों के समर्थन वाले प्रश्न पूछा करती थीं. उनके लेखन को लेकर सामाजिक एकता मंच ने आपत्ति जताई और कलेक्टर से शिकायत की थी.
बीबीसी के आलोक पुतुल ने जांच टीम को बताया कि जब वे माओवादियों के आत्मसमर्पण और कानून-व्यवस्था की स्थिति को लेकर स्टोरी कर रहे थे, तब बस्तर के आईजी शिवराम प्रसाद कल्लुरी और एसपी नारायण दाश की प्रतिक्रिया जाननी चाही. दोनों ने उन्हें एसएमएस भेजा कि देशहित के कार्यों में वे व्यस्त हैं और एकतरफा रिपोर्ट लिखने वाले पत्रकार के लिए उनके पास समय नहीं है. बाद में आलोक पुतुल को इलाका छोड़ना पड़ा.
जांच टीम के अनुसार, वहां के पत्रकारों सुरक्षा बलों और माओवादियों के बीच पिस रहे हैं. कोई पक्ष पत्रकारों पर भरोसा नहीं करता. पत्रकारों की जासूसी के सवाल पर प्रमुख सचिव (गृह) बीवीके सुब्रमण्यिम ने कहा, इसके लिए अनुमति मैं ही देता हूं. जहां तक मैं जानता हूं, सरकार ने किसी पत्रकार के फोन टेप करने के आदेश नहीं दिए हैं.