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छत्तीसगढ़ में सूखा राहत 40 पैसे!

रायपुर | विशेष संवाददाता: छत्तीसगढ़ के कटघोरा में एक किसान को 40 पैसे फसल के मुआवजे के रूप में मिला है! मीडिया की खबरों के अनुसार रंगबेल गांव के किसान दिलराज सिंह को 5 हेक्टेयर से ज्यादा की जमीन होने के बावजूद बीमा कंपनी ने मात्र 40 पैसे मुआवजे का भुगतान किया है. वहीं कटघोरा के खैरभवना के एक किसान को ढ़ाई एकड़ भूमि में फसल बर्बाद होने का मुआवजा 18 रुपये दिया गया है.

इसी गांव के एक किसान भैयालाल को 301 रुपये फसल बीमा का मिला है. फसल बीमा मिलने के बाद भैयालाल ने समाचारों के हवाले से बताया कि इससे उन्हें राहत की जगह हैरत ज्यादा हो रही है.

मिली जानकारी के अनुसार कोरबा जिले में अधिकांश किसानों को फसल बीमा के रूप में हजार रुपये से ज्यादा नहीं मिला है.

किसान को मुआवजे रूप में मात्र 40 पैसे मिलने की खबर पर किसान नेता नंदकुमार कश्यप ने सीजीखबर को बताया कि यह कैसे संभव हो सकता है. सरकारी तौर पर पैसे में लेनदेन बंद हो चुका है. बिजली का बिल, पानी का बिल, बैंक का ब्याज भी रुपये के फ्रैक्शन में नहीं होता है तो एक बीमा कंपनी कैसे फसल बीमा का भुगतान पैसे में कर सकती है?

किसान नेता नंदकुमार कश्यप ने कहा किसानों को बीमा कंपनियां प्रीमियम के आधार पर मुआवजा दे रही है जबकि इसी फसल से किसान की आजीविका जुड़ी हुई है. किसानों को जीवित रखने के लिये मुआवजा उसकी जरूरतों के आधार पर तय करना चाहिये. बीमा कंपनियां तो औद्योगिक हिसाब से मुआवजा देती है. जहां, उद्योग के बंद हो जाने पर उद्योगपति को कोई फर्क नहीं पड़ता है परन्तु किसान तो फसल खराब होने पर तबाह हो जाता है.

इससे पहले कोरिया जिले में किसानों को 5 रुपया से 25 रुपया तक का मुआवजा मिलने की खबर आई थी. जाहिर है कि सरकारी दावे तथा जमीनी हकीकत में जमीन-आसमान का फर्क है.

इसी तरह से कोरिया जिले में केवल छींदडांड़, धौराटिकरा, पटना और कंचनपुर गाँवों के आंकड़ों को देखें तो इन गाँवों के 3,429 किसानों को 25 रुपए प्रति हेक्टेयर की दर से 1 लाख़ 27 हज़ार 336 रुपए 75 पैसे का भुगतान किया गया.

असल में 2014-15 में सरकार की मौसम आधारित फ़सल बीमा योजना के तहत छत्तीसगढ़ में सरकार ने बीमा करने का ज़िम्मा निजी क्षेत्र की सात बीमा कंपनियों को सौंपा था.

इसके तहत राज्य के क़रीब 10 लाख़ किसानों ने फसलों का बीमा कराया. बदले में इन बीमा कंपनियों को 3 अरब 35 करोड़ रुपए से अधिक की रक़म प्रीमियम के तौर पर मिली.

इस बीमा योजना के तहत कम या अधिक बारिश होने और फ़सल के बर्बाद होने पर किसानों को मुआवज़ा दिए जाने का प्रावधान था. लेकिन फ़सल बर्बादी के नाम पर किसानों को जो मुआवज़ा मिला, वह चौंका देने वाला है.

एक दूसरे किसान नेता आनंद मिश्रा का कहना है कि राज्य बनने के बाद से ही फ़सल बीमा के नाम पर अंधाधुंध लूट मची हुई है. मिश्रा का दावा है कि अगर पिछले 16 सालों में लागू इस तरह की फ़सल बीमा योजनाओं की जाँच करवा ली जाए तो कई अरब रुपए का घोटाला सामने आएगा.

आनंद मिश्रा कहते हैं, “किसानों की फ़सल बीमा मामले की जाँच एसआईटी से करवाई जानी चाहिए. अगर सरकार यह पहल नहीं करेगी तो हम अदालत का सहारा लेंगे.”

छत्तीसगढ़ में साल 2014-15 में कुल 97,4199 किसानों ने क़रीब 17 लाख़ हेक्टेयर भूमि की फ़सल का बीमा कराया था, जिस पर सात बीमा कंपनियों को 3.35 अरब रुपए से ज़्यादा राशि का भुगतान प्रीमियम के तौर पर किया गया था.

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