छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ में विकास का वितरण जरूरी

रायपुर | समाचार डेस्क: छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह को अपने तीसरे पारी में विकास का वितरण करना होगा. यदि विकास का वितरण नही किया गया तो छत्तीसगढ़ का विकास चंद हाथों में सिकुड़ कर रह जायेगा. यही कारण है कि
भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र को प्रशासन को सौंपने के दूसरे दिन ही आदेश दिया गया है कि 1 जनवरी 2014 से करीब 42 लाख परिवारों को 1 रुपये किलो की दर से चावल वितरित किया जाये. कैसी विडंबना है कि एक ओर तो विकसित छत्तीसगढ़ के दावे किये जाते हैं तथा दूसरी तरफ उन्हें सस्ते में चावल वितरण करने की नौबत आन खड़ी हुई है. दोनों कथनों में विरोधाभास है.

छत्तीसगढ़ विधानसभा में बजट पेश करने के पूर्व स्वयं मुख्यमंत्री रमन सिंह ने जो आर्थिक सर्वेक्षण प्रस्तुत किया था उसके अनुसार छत्तीसगढ़ में प्रति व्यक्ति औसत आय 46,743 रुपये है. यह आकड़ा 2011-12 का है जो 2012-13 में 52,689 रुपये होने जा रहा है. यदि छत्तीसगढ़ में प्रति व्यक्ति औसत आय 46,743 का है तो 4 आदमियों के औसत परिवार की आय 1,86,972 रुपये हो जाती है. इसी आकड़े के अनुसार प्रति व्यक्ति प्रति प्रतिदिन की आय होती है 129 रुपये. ऐसे व्यक्ति को 1 रुपये किलो की दर से चावल देने का क्या औचित्य है.

इसका तो यही अर्थ होता है कि सरकार को मालूम है कि यह औसत आय है जो 42 लाख परिवारों तक नहीं पहुंच पा रहा है. तभी तो उन्हें 1 रुपये की दर से पेट भरने के लिये चावल दिया जा रहा है. हम हरगिज भी 1 रुपये की दर से चावल दिये जाने के खिलाफ नहीं हैं परन्तु हमारा सवाल है कि छत्तीसगढ़ में आय के वितरण में भयंकर असमानता है जिसे तत्काल दूर किये जाने की जरूरत है. गौर तलब है कि छत्तीसगढ़ का सकल घरेलू उत्पादन 1,39,515 करोड़ रुपये का है. जिसका सीधे-सीधे अर्थ यह है कि उत्पादन करने वाले हाथों तक उपज की पहुंच नहीं है.

वर्ष 2010-11 की तुलना में 2011-12 में छत्तीसगढ़ का विकास दर रहा है 8.14 फीसदी. लेकिन जनता की हालत को देखते हुए लगता नही कि उसका भी विकास हुआ है. जब आकड़े बयां कर रहें हैं तो विकास तो जरूर हुआ होगा लेकिन फिर सवाल उठता है कि इतना विकास गया कहां पर है. कोई भी कूदकर इस नतीजे पर पहुंच सकता है कि छत्तीसगढ़ का विकास चंद मुठ्ठियों में कैद होकर रह गया है.

बजट के पूर्व पेश आर्थिक सर्वेक्षण में यह बताया गया है कि 1011-12 में कृषि, वानिकी, मछली पकड़ने में तथा खदान के क्षेत्र में 3.87 फीसदी का विकास हुआ था. निर्माण, उत्पादन, बिजती, गैस तथा पानी के सप्लाई के क्षेत्र में 9.09 फीसदी का विकास हुआ था. सेवा के क्षेत्र में सबसे ज्यादा 10.72 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी.

अब इन सरकारी आकड़ो पर गौर करेगें तो आसानी से समझ में आ जायेगा कि जिस क्षेत्र में सबसे कम विकास हुआ है 3.87 फीसदी का उसमें अधिसंख्य जनता की भागीदारी है. दूसरे तथा तीसरे क्षेत्र में जहां 9.09 फीसदी तथा 10.72 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है वहां आम जनता की पकड़ कम है. सेवा के क्षेत्र में कौन है, बिजली, गैस, उत्पादन के क्षेत्र में बड़े घरानों का आधिपत्य है.

इस प्रकार स्वयं आर्थिक सर्वेक्षण के आकड़े बतलाते हैं कि छत्तीसगढ़ में धन्ना सेठों का विकास हुआ है आम छत्तीसगढ़ियों का नहीं. इसलिये आवश्यकता यह है कि विकास का ठीक से वितरण करना सरकार की प्राथमिकता में होनी चाहिये न कि 1 रुपये किलो की दर से चावल देना.

हम फिर से इस बात को स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि हम हरगिज से भी इस बात के खिलाफ नहीं हैं कि गरीबों को सस्ता चावल दिया जाये वरन् हम तो चाहते हैं कि छत्तीसगढ़ की जनता को गरीबी से छुटकारा मिले.

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