कांग्रेस उम्मीदवार मंतूराम पार्टी से बाहर
कांकेर | संवाददाता:अंतागढ़ उपचुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार मंतूराम पवार ने नामांकन वापस ले लिया है. उनके इस कदम के बाद उन्हें कांग्रेस पार्टी ने संगठन से निकालने की घोषणा की है. दूसरी ओर खबर है कि वे भाजपा में शामिल हो गये हैं.
कांग्रेस पार्टी ने मंतूराप पवार को अंतागढ़ विधानसभा चुनाव में अपना उम्मीदवार बनाया था. उन्होंने नामांकन भी दाखिल कर दिया था.30 अगस्त को नाम वापस लेने की अंतिम तारीख थी. उससे एक दिन पहले ही मंतूराम ने नामांकन वापस ले लिया. अब इस सीट पर भोजराज नाग भारतीय जनता पार्टी, जयप्रकाश पदमाकर पक्ष शिवसेना, रूपधर पुड़ो अम्बेडकराईट पार्टी ऑफ इंडिया, देवनाथ हिड़को निर्दलीय, महादेव मंडावी निर्दलीय, भोजराज नाग निर्दलीय, वीरेन्द्र कुमार हिड़ामी निर्दलीय, भीमसिंह उसेण्डी निर्दलीय, शंकरलाल नेताम निर्दलीय, अनिल नेताम निर्दलीय, रघुनाथ कुमेटी निर्दलीय तथा परासूराम पवार निर्दलीय ही मैदान में बचे हैं.
अंतागढ़ सीट पर मतदान 13 सितंबर को है, जबकि मतगणना 16 सितंबर को की जाएगी.
अब नाम वापसी के अंतिम दिन से ठीक पहले उन्होंने अपना नाम वापस ले कर एक तरह से भाजपा को वाक ओवर दे दिया है. उनके इस कदम से कांग्रेस पार्टी सकते में है.
पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल कांकेर पहुंच गये हैं और अब कांग्रेस के पास इसके अलावा कोई चारा नहीं है कि वह किसी और उम्मीदवार का समर्थन करे.
इधर खबर है कि मंतूराम भाजपा में शामिल हो गये हैं. हालांकि अभी तक इस बात की पुष्टि नहीं हो पाई है.
गौरतलब है कि मंतूराम पवार तीन-तीन बार थोड़े-थोड़े अंतर से विधानसभा चुनाव हारते रहे हैं. इस बार जब उन्हें टिकट दी गई तो पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने कहा कि वे मंतूराम को पार्टी उम्मीदवार बनाने के पक्ष में नहीं हैं. जोगी के अनुसार उन्होंने मंतूराम को चुनाव न लड़ने का सुझाव दिया था.
अब बदले घटनाक्रम में जोगी ने भी आश्चर्य जताया है. अजीत जोगी ने कहा कि मंतूराम ने किन परिस्थितियों में नामांकन वापस लिया है, यह तो उनसे बात करके ही पता चलेगा.
अंतागढ़ विधानसभा क्षेत्र 2008 में बना और पहले चुनाव में विक्रम उसेंडी महज 109 वोटों से चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचे थे. जाहिर है, मंतूराम पवार के लिये यह किसी भयानक हादसे से कम नहीं था. लेकिन इसके बाद 2013 में विक्रम उसेंडी ने फिर से चुनाव में मंतूराम पवार को 5171 वोटों से हरा दिया. इसके बाद विक्रम उसेंडी लोकसभा का चुनाव जीत कर संसद पहुंच गये.