छत्तीसगढ़ के सिम्स में मौतों का सिलसिला
रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के सिम्स अस्पताल में 1 सप्ताह में 15 नवजातों की मौत हो गई. इससे पहले यह आकड़ा 5 दिनों में 12 नवजातों के मरने का था. जाहिर है कि छत्तीसगढ़ की न्यायधानी बिलासपुर के छत्तीसगढ़ आयुर्विज्ञान संस्थान में नवजातों की मौत का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है. हालांकि इनमें समय से पहले प्रसव से होने वाले नवजात शिशु हैं, इसके बाद भी सवाल उठता है कि यदि इन बच्चों के माता-पिता के पास अपने बच्चों को बिलासपुर के ही निजी क्षेत्र के कॉर्पोरेट अस्पताल अपोलो हास्पिटल्स में ले जाने का पैसा होता तो भी क्या नवजातों की मौतों की संख्या इतनी ही होती? जाहिर है कि इस सवाल का जवाब व्यवस्था को देना है जिसने अलग-अलग वर्गो के लिये अलग-अलग अस्पताल बनाये हैं.
छत्तीसगढ़ आयुर्विज्ञान संस्थान, बिलासपुर के अधीक्षक रमणेश मूर्ति ने मीडिया को बताया कि, ” पिछले 8 दिनों में 14 नवजातों की मृत्यु हुई है जिसमें से 12 नवजातों को गंभार हालत में छत्तीसगढ़ आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती कराया गया था.” उन्होंने यह भी बताया कि 12 बच्चों का जन्म छत्तीसगढ़ आयुर्विज्ञान संस्थान में नहीं हुआ था.
वहीं, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने नवजातों की मृत्यु पर शोक व्यक्त करते हुए कहा, “राज्य सरकार ने इस बारे में मिली सूचनाओं को गंभीरता से संज्ञान में लिया है. सिम्स प्रबंधन से रिपोर्ट मांगी गई है.”
उन्होंने कहा कि मासूम बच्चों की मौत निश्चित रूप से काफी दुःखद है. सिम्स बिलासपुर जिले का और छत्तीसगढ़ का भी एक प्रमुख शासकीय अस्पताल है, जहां राज्य के कई क्षेत्रों के अस्पतालों से गंभीर अवस्था के मरीज भी रेफर होकर आते हैं. सिम्स के डॉक्टरों को वहां आने वाले बीमार बच्चों का बेहतर से बेहतर इलाज सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए हैं.
उधर, कुछ जानकारों ने सवाल उठाया है कि कहीं सिम्स के नवजातों को जिस न्यूनेटल केयर यूनिट में रखा जाता है वहां पर किसी तरह का जानलेवा ‘नोसोकोमियल इंफेक्शन’ तो नहीं है, जिससे बच्चों की मौते हो रहीं हैं.
इसके अलावा यह भी देखने की बात है कि छत्तीसगढ़ आयुर्विज्ञान संस्थान, सिम्स में इन नवजातों की जान बचाने के लिये आवश्यक उपकरण पर्याप्त मात्रा में हैं या नहीं. विशेषकर समय पूर्व प्रसव वाले नवजातों को लगने वाले जीवनरक्षक उपकरण.
वहीं, छत्तीसगढ़ आयुर्विज्ञान संस्थान, सिम्स के डीन एसके मोहंती ने मीडिया के हवाले से बताया है कि “दिसंबर माह में 56 नवजातों को अस्पताल में भर्ती कराया गया था जिनमें से 14 की मौत हो गई है. उनमें से भी 12 बच्चों का जन्म सिम्स में नहीं हुआ था.”
उल्लेखनीय है कि तमाम दावे और कोशिशों के बाद भी छत्तीसगढ़ में शिशु मृत्युदर में कमी नहीं आ रही है. राष्ट्रीय औसत के मुकाबले अभी भी छत्तीसगढ़ में शिशु मृत्यु दर अधिक है. भारत के जनगणना आयुक्त द्वारा जारी एस आर एस बुलेटिन 2012 के अनुसार प्रति 1000 जीवित जन्म पर शिशु मृत्यु दर छत्तीसगढ़ में 48 है, जबकि राष्ट्रीय औसत 44 का है.
भारत सरकार के इन आंकड़ों के अनुसार देश भर में शिशु मृत्युदर रोकने के लिये 34 राज्यों में छत्तीसगढ़ 26 वें पायदान पर है या कह सकते हैं कि शिशु मृत्युदर रोकने में छत्तीसगढ़ अंतिम 6 में है.
गृह मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले जनगणना विभाग द्वारा यह सर्वेक्षण किया गया है. आंकड़े 2011 में किये गये सर्वे पर आधारित हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में शिशु मृत्यु दर राष्ट्रीय स्तर पर 48 है, जो छत्तीसगढ़ में 49 है. वहीं शहरी क्षेत्रों में यह आंकड़ा अत्यंत भयावह है. शहरी क्षेत्रों में शिशु मृत्यु दर राष्ट्रीय स्तर पर केवल 29 है, जबकि छत्तीसगढ़ में यह 41 है. यानी छत्तीसगढ़ के शहरों में तमाम स्वास्थ्य सुविधायें होने के बाद भी शिशुओं की अधिक मौत हो रही है. शहरो में चिकित्सा सुविधा गांवों की तुलना में बेहतर होने के बावजूद छत्तीसगढ़ के शहरो का पिछड़ापन हैरान कर देने वाला है.