चेन्नई से मुक्त छत्तीसगढ़ के बंधुआ
नई दिल्ली | संवाददाता: छत्तीसगढ़ के 52 आदिवासी बंधुआ मजदूरों को चेन्नई से शनिवार को मुक्त कराया गया. इनमें से 17 की उम्र 18 वर्ष से भी कम है. इन्हें तमिलनाडु के अवादी के पांच बोरवेल कंपनियों में बंधुआ बनाकर रखा गया था. जहां उन्हें ठीक से खाना तक नसीब होता था तथा रात को बोरवेल के ट्रकों में ही सोना पड़ता था.
इनसे तमिलनाडु के नमक्कल, सलेम, इरोर तथा अटूर इलाकों में बोरवेल खुदाई का काम कराया जाता था. 500 फीट के बोरवेल को खोदने के लिये इनसे लगातार 15 घंटे तक बिना खाना खाये तथा सोये काम कराया जा रहा था.
बोरवेल कंपनियों ने न तो उन्हें ठीक से तन्खा दी थी न ही छोड़ने के लिये राजी हो रहे थे. इन्हें छोड़ने के लिये शर्त रखी गई थी कि पहले अपने बदले में काम करने वाले मजदूर लाकर दो. जाहिर है कि छत्तीसगढ़ के भोले-भाले आदिवासियों से अमानवीय परिस्थितियों में काम कराया जा रहा था.
इसका खुलासा तब हुआ जब छत्तीसगढ़ के बाल संरक्षण अधिकारी एक 40 वर्षीय व्यक्ति की खोज में वहां गये थे. इन पांचों बोरवेल कंपनियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जा रही है.
इन बंधुआ छत्तीसगढ़ी आदिवासियों से 3 से 15 माह तक लगातार घरेलू तथा कृषि के कार्य के लिये बोरवेल का काम कराया जाता था. यहां तक की इन्हें अपने परिजनों से संपर्क करने तक की छूट नहीं थी.
छत्तीसगढ़ से इन आदिवासियों को तमिलनाडु ले जाने वाले दलाल को प्रति व्यक्ति तीन से पांच हजार रुपये तक दिये गये थे.