छत्तीसगढ़

नीची जात के यहां पानी, सजा 1000/-

रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ में नीची जात के यहां पानी की सजा 1000 रुपये मुकर्रर की गई है. जिस छत्तीसगढ़ को डिजीटल तथा कैशलेस बनाने का प्रयास सरकार कर रही है, उसी के पूर्व विधायक ने यह फरमान जारी किया है. छत्तीसगढ़ की सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा से ब्रिन्दानवागढ़ के विधायक रह चुके डमरुधर पुजारी राजगोड़ समाज के अध्यक्ष हैं, जिसकी ओर से यह फरमान जारी किया गया है. समाज के इस फरमान को गांव-गांव पहुंचाया भी जा रहा है.

हालांकि, मुद्दा उछलने पर उन्होंने सफाई दी है कि जो नियमावली बनाया गया है, वह अपने-अपने मांझी प्रमुखों को दिया गया है. कुछ नियमों में हमसे भी गलती हुई है.

असल में राजगोड़ समाज की ओर से समाज के लोगों के लिये एक नियमावली बनाई गई है, जिसमें इस तरह के नियम बनाये गये हैं. डमरुधर पुजारी का कहना है कि नीची जाति से संबंधित इसके 61 नंबर के नियम को सुधार के लिये समाज के लोगों से कहा गया है.

गौरतलब है कि राजभोग इलाके के राजगोड़ समाज के कर्ताधर्ता द्वारा जारी फरमान के अनुसार के लोगों के घर पानी पीने से या उनसे मित्रता करने पर बंदिश लगा दी गई है. इसका उल्लंघन करने पर 1000 रुपये का अर्थदंड का प्रावधान रखा गया है. इस नियम को लागू करने के लिये समाज के प्रमुख कथित रूप से गांव-गांव जाकर प्रशिक्षण भी दे रहें हैं.

आदिवासी राजगोड़ समाज की अंतर्राज्यीय समिति जिसके अंतर्गत झारगांव, चारगढ़ ओडिशा समाज आता है के लिये 83 बिन्दुओँ वाली नियमावली बनाई गई है. इसके नियम 61 के अनुसार मित्र या महाप्रसाद बनाना हो तो अच्छे आचरण एवं उच्च जाति के लोगों के साथ बनाये ताकि उनके घरों का पानी पीया जा सके. छोटी जाति के यहां पानी पीने से अक्षय-तृतीय के दिन पुत्र-पिता एवं देवी-देवताओं का तर्पण करना मुश्किल हो जायेगा.

समाज के इस नियम को लागू करने के लिये गांव-गांव के समाज प्रमुखों को पत्र भेजा जा रहा है. इस नियम को तोड़ने वाले को सामाजिक नियम तोड़ने का अपराधी माना जायेगा तथा उसे 1000 रुपये का जुर्माना भऱना पड़ेगा. इस नियम को लागू करवाने में समाज के अध्यक्ष डमरूधर पुजारी अहम भूमिका निभा रहें हैं.

हैरत की बात है कि आज के जमाने में भी खाप पंचायतनुमा व्यवस्था लागू है. जाति के आधार पर ऊंच-नीच का फरमान जारी किया जा रहा है. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. पिछले दो सालों में ऐसी कई घटनायें छत्तीसगढ़ में हो चुकी है.

* छत्तीसगढ़ में नवंबर 2015 में एक पंचायत का तुगलकी फरमान सामने आया था. जब दिगर जाति में प्रेम विवाह करने के बाद आत्महत्या करने पर उसके अंतिम संस्कार में भाग लेने के लिये पंचायत ने 13 हजार रुपयों का जुर्माना अदा करने को कहा था. दरअसल, दूसरी जाति में प्रेम विवाह करने के कारण युवती तथा उसका परिवार सामाजिक बहिष्कार का दंश झेल रहा था. मामला जशपुर जिले का था.

* इससे पहले भी पिछले साल छत्तीसगढ़ के सरगुजा के कोरिया जिलें में दो दलितों को वन विभाग के कहने पर हाथी का पोस्टमार्टम करने की सजा 5000 रुपये सुना दी गई थी. कोरिया जिले के सोनहत इलाके में रहने वाले दलित भैय्यालाल गांव आनंदपुर तथा रामप्रसाद गांव नौगई के रहने वालों ने इस साल 25-26 मार्च 2016 की दरमियानी रात में करेंट से मरने वाले जंगली हाथी का बाद में पोस्टमार्टम किया था.

इन दोनों ने गंडासे तथा चाकू की मदद से मृत हाथी का पोस्टमार्टम करने में मदद की थी. जाहिर है कि हाथी का पोस्टमार्टम करना अकेले पशु चिकित्सक के वश की बात नहीं थी. इसके बाद समाज की बैठक गांव कुशमहां में हुई थी तथा इन दोनों दलितों पर जुर्माना ठोक दिया गया था. हाथी के शव को काटने के लिये इन पर जुर्माना लगाया गया था.

* उसके बाद अगस्त 2016 में छत्तीसगढ़ में सतनामी समाज के पंचायत में एक 28 वर्षीय युवक अमरदास बंजारे को पीट-पीटकर इसलिये मार डाला गया था क्योंकि उसने समाज द्वारा बहिष्कृत किये गये परिवार के एक कार्यक्रम में भाग लिया था. दुर्ग के पाटन इलाके के ग्राम रूही में सतनामी समाज की पंचायत ने प्रेम विवाह करने वाले एक परिवार का बहिष्कार कर दिया था. घटना 9 अगस्त 2016 की है.

* कोरबा में एक पंच ललिता प्रसाद पिछले 6 सालों से सामाजिक बहिष्कार का दंश झेल रहा है. उसका कुसूर सिर्फ इतना है की उसने दुष्कर्म पीड़िता का हाथ थामा था. बार-बार इसकी शिकायत प्रशासन से करने के बाद पीड़ित पंच ने कोई समाधान निकलता देख प्रशासन से जुलाई 2016 में इच्छा मृत्यु की मांग की थी.

इतना ही नहीं ललिता प्रसाद के मृत पिता के कब्र को भी उखड़वा दिया गया था और उसकी विधवा मां का पेंशन भी नहीं दिया जाता रहा है. इस सब की वजह है उसका एक रेप पीड़िता युवती से शादी करना जो अब समाज के दबाव में उसके पास रहती भी नहीं है. पंच होने के बावजूद पंचायत में उसकी कोई पूछ-परख नहीं हुई.

उल्लेखनीय है कि उस समय यह बात उठी थी कि सामाजिक बहिष्कार जैसे कुरीतियों को रोकने के लिये कानून मौजूद है परन्तु छत्तीसगढ़ सरकार इसके कमियों को दूर करने के लिये एक कड़ा कानून बनाना चाहती है. छत्तीसगढ़ के गृह सचिव अरुणदेव गौतम ने इसकी पुष्टि करते हुये कहा था कि इस विषय पर एक्ट बनाने के लिये विचार चल रहा है.

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