रमेश बैस से बातचीत
दिवाकर मुक्तिबोध
सरकार जब क्लीनचिट दे तो भ्रष्टाचार कैसा? मय के एक लंबे अंतराल के बाद रमेश बैस से मुलाकात हुई. औपचारिक-अनौपचारिक बातचीत भी.
रायपुर संसदीय सीट से लगातार सातवीं बार चुनाव जीतने वाले बैस छत्तीसगढ़ के वरिष्ठतम भाजपा सांसद हैं. वे केन्द्र में मंत्री रहे हैं और संगठन के विभिन्न पदों पर भी अपनी भूमिका का उन्होंने निर्वहन किया है. 68-69 के हो चुके हैं. फिलहाल प्रदेश भाजपा की राजनीति में उनकी पूछ-परख घटी है. किनारे लगा दिए गए हैं. सांकेतिक भाषा में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने उन्हें मार्गदर्शक के विशेषण से नवाजा है जिसका अर्थ है आप चुपचाप बैठे रहें. पार्टी जब जरूरत समझेगी आपकी राय ली जाएगी.
बैस सीधे, सरल निष्कपट व्यक्ति हैं. लोकसभा में उनका सातवां कार्यकाल चल रहा है. यानी लगभग 32 वर्ष हो चुके. संसद सदस्य के रूप में तीन दशक में उन्होंने छत्तीसगढ़ के मुद्दों पर शायद 30 सवाल भी नहीं पूछे होंगे. इसलिए उन पर निष्क्रियता का ठप्पा लगा हुआ है. यह माना जाता है कि राज्य के विकास के सन्दर्भ में छोटे-मोटे कार्यों को अंजाम देने के अलावा उनकी कोई विशेष भूमिका नहीं है. यानी भाजपा की राजनीति में उनका महत्व केवल संख्याबल बढ़ाने का रहा है. लोकसभा चुनाव में भाजपा की कोई सीट यदि पक्की मानी जाती रही है तो वह रायपुर संसदीय सीट है, रमेश बैस की सीट. लिहाजा यदि अगले लोकसभा चुनाव में जिसमें विजित सीटों का गणित अहम होगा, रमेश बैस पर फिर दांव खेला जाएगा बशर्तें विरोधी टांग न अड़ाएं. बकौल बैस मोदी मंत्रिमंडल में इसी टांग की वजह से उनका नाम सूची से हटा दिया गया था. उनके विरोधियों में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह एवं राष्ट्रीय संगठन मंत्री सौदान सिंह जिनका छत्तीसगढ़ की राजनीति में अभी भी दखल है, प्रमुख माने जाते हैं. इन्हीं की वजह से वे हाशिए पर हैं.
पर एक बात तो स्पष्ट है. बैस यद्यपि निष्क्रियता के आरोप से घिरे हुए हैं लेकिन भ्रष्टाचार का उन पर कोई दाग नहीं है. कम से कम मीडिया में तो ऐसी कोई बात नहीं उछली. भ्रष्ट राजनीति में इतने लंबे समय तक स्वयं को बेदाग रखना एक बड़ी बात है.
तो ऐसे रमेश बैस से मुलाकात बरसों बाद हुई. संक्षिप्त मुलाकात में बातचीत भी कुछ सवालों तक सीमित रही. कार्यकर्ताओं का जत्था उनके निवास पर मौजूद था, प्रतीक्षारत था.
एक चर्चित सवाल है – संसद में आपका प्रदर्शन इतना कमजोर क्यों है? नए-नवेले सांसद दर्जनों सवाल पूछते हैं, छत्तीसगढ़ के मुद्दों को उठाते हैं और आप इतने अनुभवी, इतने पीछे क्यों?
जवाब देते-देते बैस की आंखों में आंसू आ गए. ये आंसू सवाल को लेकर नहीं थे. पिछले डेढ़-दो वर्षों में परिवार पर, उन पर जो विपत्ति आई, उस वजह से थे. सवाल पर उनका जवाब था – आप संसदीय कार्रवाई का रिकार्ड देख लें, आपको पता चल जाएगा कि मेरा परफार्मेंस कैसा था. लेकिन हां, विगत दो वर्षों से मैं विशेष कुछ नहीं कर पाया. दरअसल इस अवधि में मैंने अपने आधा दर्जन परिजनों को खोया है. आप समझ सकते हैं एक-एक करके परिवार के 5-6 सदस्य चले जाएं तो दु:ख का कैसा सैलाब उमड़ता है. युवा दामाद के गुजरने से मुझे गहरा सदमा लगा. बदहवास जैसी स्थिति थी. यहां तक सोचने लग गया था कि राजनीति छोड़ दूं. जैसे-तैसे अपने को संभाला है.
* बकौल मुख्यमंत्री आप तो मार्गदर्शक की भूमिका में हैं?
– ठीक है लेकिन मार्गदर्शन भी कहां लेते हैं. अब तक किसी भी मुद्दे पर मुझसे बातचीत की जरूरत नहीं समझी गई. रमन सरकार के पहले व दूसरे कार्यकाल में सब कुछ ठीक चल रहा था. राज्य के हितों पर, समस्याओं पर, योजनाओं पर, सरकार के कामकाज पर विचार विमर्श दिया जाता था लेकिन अब यह सब कुछ बंद है. सरकार ने कभी किसी विषय पर विचार-विमर्श की जरूरत नहीं समझी.
* राज्य में भ्रष्टाचार बेइंतिहा माना जाता है? मुख्यमंत्री जीरो टालरेंस की बात करते हैं.
-राज्य में भ्रष्टाचार है कहां? करोड़ों के नान घोटाले के आरोपी आई.ए.एस. अफसरों को जब सरकार क्लीनचिट दे दे तो कैसे कहेंगे कि राज्य में भ्रष्टाचार है. सरकार ने हाईकोर्ट में लिखित दिया कि नान घोटाले में आई.ए.एस. अनिल टूटेजा व आलोक शुक्ला का हाथ नहीं है. भ्रष्टाचार नीचे के अफसरों-कर्मचारियों ने किया है.
* लेकिन एंटी करप्शन ब्यूरो ने छापों का रिकार्ड बनाया है. बड़े-बड़े मगरमच्छ पकड़े गए हैं जिसमें वरिष्ठ अधिकारियों की संलिप्तता पाई गई है. केस रजिस्टर्ड है फिर आप कैसे कहेंगे कि नौकरशाही भ्रष्ट नहीं है.
– सरकार नहीं मानती कि अधिकारी भ्रष्ट हैं.
दरअसल भ्रष्टाचार पर रमेश बैस की टिप्पणी- दोहरे अर्थ में थी. बाद में उन्होंने कहा – सरकार के कुछ मंत्री महाभ्रष्ट हैं. एक मंत्री तो सप्लाई में 50 फीसदी कमीशन लेता है. पटवारियों के बारे न पूछिए. सबसे छोटे दर्जे के ये सरकारी कर्मचारी अब लाखों-करोड़ों के आसामी हैं. भ्रष्ट एक-दो पटवारियों को मैं सस्पेंड करा चुका हूं.
* आप मुख्यमंत्री से असंतुष्ट है. सरकार के कामकाज से असंतुष्ट हैं.
– कौन कहता है. मुख्यमंत्री के नेतृत्व में पिछले 13 वर्षों में राज्य ने तेज प्रगति की है. इस मामले में तीन नए बने राज्यों में छत्तीसगढ़ अव्वल है. लिहाजा हमारी सरकार के ऐसे मुखिया से असंतोष कैसा?
* आपकी टिकिट संकट में दिख रही है?
-पार्षद से लेकर अब तक मैंने जितने भी चुनाव लड़े, पार्टी से कभी टिकिट नहीं मांगा. अगले लोकसभा चुनाव में भी टिकिट नहीं मांगूंगा. दें तो ठीक अन्यथा कार्यकर्ता की हैसियत से पार्टी का काम करता रहूंगा.
* अगले विधानसभा चुनाव में आप पार्टी की जीत की संभावना कितनी देखते हैं?
– शतप्रतिशत. चौथी बार भी हमारी सरकार बनेगी.
* लेकिन इस बार अजीत जोगी की पार्टी की वजह से त्रिकोणीय संघर्ष है, कड़ा मुकाबला है. फिर राज्य में सत्ता विरोधी लहर भी है.
– कोई फर्क नहीं पड़ता. व्यवस्था का विरोध तो विपक्ष राजनीति की तासीर है. यह हर सरकार के खिलाफ होती है. इसके बावजूद हमने तीन चुनाव जीते, चौथी भी रमन सिंह के नेतृत्व में जीतेंगे.
इस जवाब के साथ ही बैस से चर्चा खत्म हो गई. बाहर कार्यकर्ता इंतजार कर रहे थे. बैस ने यद्यपि सत्ता और संगठन के खिलाफ अपना असंतोष जाहिर नहीं किया लेकिन यह अहसास पुख्ता कर गए कि असंतोष गहरा है. कार्यकर्ताओं की कोई पूछ-परख नहीं है. पार्टी की जीत कार्यकर्ताओं के दम पर होती है, उनकी सक्रियता से होती है. बैस के मुताबिक कार्यकर्ता नाराज हैं और यदि स्थिति ऐसी ही बनी रही तो अगला चुनाव पार्टी को भारी पड़ सकता है.