छत्तीसगढ़ का नाम कार्पोरेटगढ़ कर देना चाहिये
रायपुर | संवाददाता: कृषि और खाद्य विशेषज्ञ देविंदर शर्मा ने तंज कसते हुये कहा है कि छत्तीसगढ़ का नाम बदल कर कार्पोरेटगढ़ कर देना चाहिये. उन्होंने कहा कि सरकारों ने यहां की नदियां बेच दी, जिलों को औद्योगिक घरानों के हवाले कर दिया, किसानों के पानी पर रोक लगा दी, यह सब भयावह है. उन्होंने कहा कि अगर राज्य सरकार को किसानों की थोड़ी भी चिंता है तो उसे एक किसान आय आयोग का गठन करना चाहिये.
किसान संकल्प सम्मेलन में रायपुर पहुंचे अर्थशास्त्री देविंदर शर्मा ने कहा कि छत्तीसगढ़ में भी स्विटजरलैंड जैसी संभावनायें थीं. स्विटजरलैंड की धरती में भी कम खनिज नहीं थे. लेकिन वहां उस संपदा का दोहन करने के बजाये दूसरे तरीके से विकास का रास्ता अख्तियार किया गया. उन्होंने कहा कि 90 के दशक में वर्ल्ड बैंक ने जो डिजायन तैयार किया था, पूरा देश उसी व्यवस्था में ढलता चला गया है. छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की जमीन को लेकर राज्य सरकार द्वारा लाये गये नये नियम को लेकर उन्होंने चिंता जताई और इसे एक अलोकतांत्रिक कदम बताया. उन्होंने किसानों को धान के लिये पानी पर रोक को लेकर कहा कि कार्पोरेट के हित के लिये सरकार जिस तरह से काम कर रही है, उससे तो यही लगता है कि इसका नाम कार्पोरेटगढ़ कर देना चाहिये. उन्होंने तंज कसते हुये कहा कि CG को कार्पोरेटगढ़ कहने से शार्ट फॉर्म भी नहीं बदलेगा.
देविंदर शर्मा ने कहा कि किसान महज वोट बैंक और लैंड बैंक बना हुआ है. उन्होंने कहा कि किसान इसलिये आज भी उपेक्षित है क्योंकि वह जब भी खड़ा हुआ है, उसे किसी जाति, संप्रदाय या वर्ग के नाम पर लड़ाई के लिये खड़ा किया गया है. किसान जिस दिन केवल किसान की तरह खड़ा होगा, देश की राजनीति को सोचने पर बाध्य होना पड़ेगा.
गुजरात चुनाव परिणाम को लेकर देविंदर शर्मा ने कहा कि एक ‘नया गुजरात मॉडल’ हमारे सामने आया है, जिसमें सौराष्ट्र के इलाके में गांव के लोगों ने सत्ता पर काबिज भाजपा को नकार दिया. अगर आने वाले दिनों में कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनाव में भी यही हाल रहा तो सरकारों को सोचना पड़ेगा कि आखिर किसान हमसे नाराज क्यों हैं. किसानों के आक्रोश के इस ‘नया गुजरात मॉडल’ से बहुत उम्मीदें हैं.
उन्होंने कहा कि 2016 का आर्थिक सर्वेक्षण बताता है कि भारत में एक किसान की औसतन आय 20 हजार रुपये सालाना है. अगर आप किसान की लागत और उसके श्रम का आंकलन करें तो पता चलता है कि सरकार हर साल किसानों का 12 लाख 80 हजार करोड़ रुपये खा जाती है. उन्होंने कहा कि देश के महज 6 प्रतिशत किसानों को ही न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ मिलता है.
श्री शर्मा ने कहा कि सरकार अगर किसानों के लिये कुछ करना चाहती है तो उसे फौरन एक किसान आय आयोग बनाना चाहिये, जो किसान पैदावार और भौगोलिक क्षेत्र को जोड़ कर किसान की एक समुचित आय की व्यवस्था करे, जिसमें प्रति किसान कम से कम प्रतिमाह 18 हजार रुपये की व्यवस्था हो सके.
किसानों की आय की व्यवस्था को लेकर होने वाले खर्च पर उन्होंने कहा कि देश के महज एक प्रतिशत सरकारी कर्मचारियों के लिये सरकार सातवें वेतन आयोग का प्रावधान करती है, जिसमें 1.02 लाख करोड़ रुपये सालाना खर्च होंगे. हालांकि कहा जा रहा है कि यह खर्च 4.80 लाख करोड़ रुपये तक हो सकता है. देविंदर शर्मा ने कहा कि जहां से एक फीसदी कर्मचारियों के लिये पैसे आयेंगे, वहीं से देश में 50 फीसदी से अधिक किसानों के लिये भी आय की व्यवस्था सरकार कर सकती है.