संकट में बस्तर का सल्फी पेड़
रायपुर | बीबीसी: छत्तीसगढ़ के बस्तर का पेड़ सल्फी इन दिनों अपने अस्तित्व के संकट से गुजर रहा है. बीमारी के कारण सल्फी के पेड़ शूखते जा रहें हैं जिससे बस्तर का आदिवासी हैरान है. आखिरकार सर्फी का पेड़ उनके संस्कृति से जुड़ा हुआ है. छत्तीसगढ़ में बस्तर के आदिवासियों के लिए सल्फी का पेड़ वाकई एक पैसे का पेड़ है.
इस पेड़ का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि बस्तर के आदिवासी सल्फी का पेड़, अपनी बेटियों को दहेज में देते रहे हैं.
ताड़ प्रजाति के कारयोटा यूरेंस यानी सल्फी के पेड़ से निकलने वाले रस को छत्तीसगढ़ में ‘बस्तर बीयर’ कहा जाता है.
लेकिन अब बस्तर में सल्फी के पेड़ सूखते जा रहे हैं. छत्तीसगढ़ सरकार ने कभी सल्फी को काजू से तैयार होने वाली फेनी की तर्ज़ पर बेचने की योजना बनाई थी कभी इसकी टॉफ़ी बनाने की बात कही. ये योजनाएं तो दूर की बात हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार सल्फी के पेड़ों को बचाने को लेकर भी बेपरवाह दिखती है.
राज्य के आबकारी मंत्री अमर अग्रवाल कहते हैं, “सल्फी आदिवासी समाज की परंपरा का एक महत्वपूर्ण अंग है. इसकी बीमारी पर शोध चल रहा है और मुझे उम्मीद है कि इससे निपटने में भी हम कामयाब होंगे.”
आदिवासी आम तौर पर आंगन और खेत की मेड़ों पर सल्फी के पेड़ लगाते हैं. 40 फीट ऊंचा यह पेड़ नौ-दस साल का होने के बाद रस देना शुरू करता है. स्थानीय बाज़ार में सल्फी का रस 40 से 50 रुपए लीटर बिकता है.
जगदलपुर से लगे हुये बकावंड के प्रहलाद कहते हैं- “आप सुबह अगर सल्फी पीएं तो आपका पेट भर जाता है. लेकिन जैसे-जैसे दिन चढ़ता है, सल्फी के रस में खमीर उठना शुरू होता है. इसके बाद जब आप पीएंगे तो नशा चढ़ना शुरू हो जाता है.”
कुछ आदिवासी सल्फी के रस से गुड़ भी बनाते हैं.
सतलावंड गांव के पास सल्फी पीते रामा कवासी कहते हैं, “एक पेड़ से एक मौसम में 20 से 25 हज़ार रुपए की कमाई हो जाती है. अगर 10 पेड़ हैं तो समझो ढाई-तीन लाख रुपये तो चित्त होने ही हैं.”
लेकिन यह सब बताते हुये वे रुआंसे हो जाते हैं. उनके सल्फी के तीन पेड़ पिछले साल भर में सूख गये. वे कहते हैं, “अब जीवन में कुछ नहीं बचा.”
बस्तर कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक राजाराम भंवर पिछले कई सालों से सल्फी के पेड़ों पर शोध कर रहे हैं. उनका मानना है कि ऑक्सीस्पोरम फिजियोरियम नाम के फंगस के कारण सल्फी के पेड़ सूख रहे हैं.
राजाराम भंवर कहते हैं, “यह फंगस पेड़ की उन जड़ों को अवरुद्ध कर देता हैं, जो पेड़ को खाना-पानी पहुंचाती हैं. संकट ये है कि मिट्टी के कारण होने वाली इस बीमारी का इलाज नहीं हो पा रहा है.”