छत्तीसगढ़बस्तर

मामा का सल्फी पेड़ भांजे का ATM

रायपुर | एजेंसी: छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल बस्तर अंचल में हल्बा समाज में मामा का दिया हुआ सल्फी पेड़ भांजे के लिए ताउम्र एटीएम की तरह होता है. जब कभी उसे पैसे की जरूरत होती है, वह मामा के घर जाकर बिकी हुई सल्फी के पैसे ले आता है. बस्तर बीयर के नाम से देश में प्रचलित सल्फी के कई नाम हैं. आदिवासी इसे ताड़ी भी कहते हैं. बस्तर की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में इसकी एक अहम भूमिका है.

मादक रस देने वाले इस वृक्ष को गोंडी बोली में गोरगा कहा जाता है तो बस्तर के ही बास्तानार इलाके में ये आकाश पानी के नाम से जाना जाता है. एक दिन में करीब बीस लीटर तक मादक रस देने वाले इस पेड़ का अंग्रेजी में सामान्य नाम फिश टेल पाम है तो इसका वैज्ञानिक नाम केरियोटा यूरेन्स है. एक पेड़ से साल में छह से सात माह तक मादक रस निकलता है. एक लीटर की कीमत करीब 10 रुपये होती है.

सूबे के नारायणपुर जिलांतर्गत सोनपुर गांव की रहने वाली हल्बा जनजाति की युवती संगीता लाल बताती हैं कि उनकी जनजाति में इसे भांजे को दान में देने की परंपरा रही है.

जब बहनोई की मौत हो जाती है तो मामा अपने खेत या आंगन में लगे सल्फी के पेड़ को दान में भांजे को दे देता है. बहनोई की मौत के बाद भांजे को पांच-छह दिनों बाद क्रियाकर्म हो जाने पर सल्फी पेड़ के अलावा थाली, लोटा और गाय देता है. परंपरा के मुताबिक मामा अपने भांजे को सल्फी पेड़ का स्पर्श करवाता है. इसके साथ ही पेड़ पर भांजे का हक हो जाता है.

भांजा सल्फी पेड़ को तो अपने घर नहीं ले जा सकता है, लेकिन इसकी कमाई को वह जिंदगीभर ले जाता है. जब कभी उसे पैसे की जरूरत होती है वह अपने हिस्से की सल्फी की कमाई ले जाता है. एक पेड़ से रोजाना दो सौ रुपये तक की सल्फी निकलती है.

सोनपुर गांव की ही युवती ललिता मंडावी बताती हैं कि छह से सात माह तक हर रोज सल्फी की अच्छी बिक्री होती है. इसे कहीं ले जाकर बेचना नहीं पड़ता है. पीने वाले खुद आ जाते हैं. सल्फी दिन में दो बार निकाली जाती है. ये खत्म हो जाती है, क्योंकि गांव में इसके ‘रसियों’ की कमी नहीं है. इसे रखा भी नहीं जा सकता है क्योंकि ये कुछ घंटों बाद खराब हो जाती है.

बस्तर में हर गांव में सल्फी के पेड़ दिखते हैं. किसी व्यक्ति के घर पांच पेड़ हैं तो समझ लो कि उसके घर रोजाना हजार रुपये अपने आप आते हैं. दो परिवारों की जमीन के बीच पेड़ झगड़े का सबब भी बन जाता है. दोनों परिवार इसे अपना कहते हैं और कभी-कभार नौबत कत्ल तक की आ जाती है. सल्फी बस्तर के अलावा असम और श्रीलंका में भी मिलता है. बड़े शहरों में इसे आजकल ‘ओर्नामेंटल ट्री’ के रूप में लगाया जाने लगा है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!