सलवा जुड़ूम पर कांग्रेस लुढकी
जगदलपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी सलवा जुड़ूम के साथ है और सलवा जुड़ूम के खिलाफ भी. बस्तर के चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने सलवा जुड़ूम के कट्टर विरोधी कवासी लखमा को कोंटा से तो सलवा जुड़ूम का नेतृत्व करने वाले विक्रम मंडावी को बीजापुर से मैदान में उतारा है.
जाहिर है, चुनाव से पहले सलवा जुड़ूम को लेकर मंदोदरी विलाप करने वाली कांग्रेस पार्टी पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान भी सलवा जुड़ूम पर चुप्पी साध गई थी. माना जा रहा है कि इस बार भी कांग्रेस इस मामले में चुप रहेगी.
मई 2005 में जब सलवा जुड़ूम शुरु हुआ था तो उसका नेतृत्व बस्तर के कद्दावर कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा ने संभाला था. उसके बाद भाजपा की सरकार के संरक्षण और समर्थन में सलवा जुड़ूम का आंदोलन परवान चढ़ा.
नक्सलियों के नाम पर सैकड़ों लोगों के घर जलाये गये और नक्सलियों का भय दिखा कर अविभाजित दंतेवाड़ा के 644 गांव पूरी तरह से खाली करा दिये गये और 50 हजार से अधिक आबादी को सरकारी कैंपों में रखा गया. हालांकि इन 644 गांवों से ढ़ाई लाख से अधिक लोग विस्थापन की मार झेलते हुये आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के जंगलों में अब भी भटक रहे हैं. बड़ी संख्या में आदिवासी नक्सलियों के साथ हो गये.
मामला जब सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा तो सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में रमन सिंह की भाजपा सरकार को इसे तत्काल बंद करने को कहा. सलवा जुड़ूम को ‘जंगल की आग’ और ‘बारीश के बाद ही इसके रुकने’ की बात कहने वाले मुख्यमंत्री रमन सिंह को इस पर रोक लगानी पड़ी.
जिस दौर में कांग्रेस के महेंद्र कर्मा भाजपा की सरकार के संरक्षण में सलवा जुड़ूम चला रहे थे, उस समय भी कांग्रेस नेता और राज्य के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी इसके खिलाफ थे. जाहिर है, उसके समर्थक और कोंटा के विधायक कवासी लखमा भी जोगी के साथ थे. लेकिन धड़ों में बंटी हुई कांग्रेसी इस मामले में अलग-अलग रहे.
कई अवसरों पर केंद्र की कांग्रेस सरकार ने सलवा जुड़ूम के प्रति अपनी नाराजगी जाहिर की. लेकिन महेंद्र कर्मा नक्सलियों से लड़ने में इसे सबसे कारगर उपाय बताते हुये लगातार मुखर रहे. यहां तक कि मई 2013 में महेंद्र कर्मा की हत्या के पीछे नक्सलियों ने सबसे बड़ी कारण सलवा जुड़ूम को ही गिनाया था.
अब, जबकि सलवा जुड़ूम पूरी तरह से बंद होने का सरकार का दावा है, महेंद्र कर्मा मारे जा चुके हैं, लाखों की संख्या में आदिवासी अभी भी विस्थापित हैं और नक्सलियों का आतंक जारी है तो बस्तर की आम जनता इस बात की प्रतीक्षा में थी कि कांग्रेस का रुख इस बार कैसा रहेगा?
कांग्रेस ने बेहद चालाकी के साथ इस विधानसभा चुनाव में भी ‘इसकी भी हां’ और ‘उसकी भी हां’ के तर्ज पर सलवा जुड़ूम को एक साथ साधने की कोशिश की है. विक्रम शाह मंडावी को टिकट दिये जाने को लेकर पार्टी में अभी से सवाल खड़े होने लगे हैं. ऐसे में पार्टी को लाभ होगा या नुकसान यह देखने लायक होगा. देखने लायक तो यह भी होगा कि कांग्रेस के नेता बस्तर में सलवा जुड़ूम के खिलाफ बात करेंगे या उसके पक्ष में राग अलापेंगे.