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छत्तीसगढ़: चिलगोजा खाने को नहीं मिला!

रायपुर | समाचार डेस्क: छत्तीसगढ़ में बस्तर की जलवायु पाइन के लिए अनुकूल बताई जाती है. यहां उत्पादित पाइन से बेहतर गुणवत्ता का कागज बनाया जाएगा, जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा. वहीं ग्रामीणों को चिलगोजा भी खाने मिलेगा. यह कहकर वर्ष 1971 से 1979 के मध्य करीब सात सौ हेक्टेयर में खड़े साल वृक्षों को जड़ सहित उखाड़ कर केरेबियन पाइन रोपा गया था परन्तु पाईन रोपण के 38 साल बाद भी बस्तर में न कागज कारखाना लगा न ही लोगों को चिलगोजा खाने मिला.

दूसरी तरफ बस्तर वन वृत्त के प्रधान संरक्षक एमटी नंदी बताते हैं कि 38 साल पहले रोपे गए पाइन को लेकर वन विभाग के पास फिलहाल कोई प्रोजेक्ट नहीं है.

केन्द्र सरकार की अनुशंसा पर वन विकास निगम द्वारा वर्ष 1971 से 1979 के मध्य जगदलपुर वन परिक्षेत्र के लामनी, माचकोट वन परिक्षेत्र के कुरंदी और गणेश बहार नाला क्षेत्र, भानपुरी के घोड़ागांव में तथा गीदम वन परिक्षेत्र में करीब सात सौ हेक्टेयर में पाइन रोपा गया था.

योजना के तहत साल के वृक्षों को जड़ सहित उखाड़ा गया और जमीन समतल किया गया था. विशेष तौर पर कैरेबिया से मंगवाए गए पाइन बीजों से पौधे तैयार कर इन्हें रोपा गया था. उन दिनों स्थानीय ग्रामीणों और शहर के प्रबुद्ध जनों ने साल वृक्षों को गिरा कर पाइन रोपण का विरोध किया था.

बस्तर प्रकृति बचाओ समिति के संरक्षक एस. सी. वर्मा बताते हैं कि वन विकास निगम के अधिकारियों ने लोगों को बताया था कि पाइन में लॉग फाइबर होता है. इसलिए अच्छी गुणवत्ता वाला कागज तैयार होता है. पाइन रोपण के बाद बस्तर में कागज कारखाना स्थापित किया जाएगा. लोगों को रोजगार तो मिलेगा ही वहीं पाइन फल से चिलगोजा नट भी खाने मिलेगा.

बस्तर में साल काट कर पाइन रोपण का विरोध सुंदर लाल बहुगुणा ने भी दिल्ली में किया था. वर्ष 1984 में दामनजोड़ी में स्थापित नाल्को एल्यूमिनियम कंपनी के एक कार्यक्रम में शामिल होने जा रही तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी कुछ समय के लिए जगदलपुर के वनविश्राम गृह में रुकी थीं.

उन्होंने पाइन रोपण का विरोध करते हुए कहा था कि प्राकृतिक समृद्ध वनों को काट कर दोहन करना गलत है. गांधी के इस व्यक्तव्य के बाद पाइन प्रोजेक्ट बंद कर दिया गया.

इधर पाइन रोपण के 38 साल बाद भी बस्तर की वनभूमि पर खड़े हजारों पाइन वृक्षों का कोई उपयोग नहीं हो पाया. करीब आठ साल पहले कुरंदी और लामनी के कुछ पाइन वृक्षों को काट कर वन विभाग ने बेचा था वहीं शेष वन स्थल को लामनी पार्क के रूप में विकसित किया गया है. बस्तर अंचल के लोगों को आज भी आस है कि यहां कागज का कारखाना लगेगा और उन्हें रोजगार मुहैया कराया जाएगा.

पाइन नट के औषधीय गुण
पाइन नट को भारत में चिलगोजा नामक से भी जाना जाता है. पाइन नट पाइन के पेड़ के बीज होते हैं और हजारों साल के लिए मूल निवासी अमरीकियों द्वारा एक खाद्य स्त्रोत के रूप में इस्तेमाल होते रहे हैं. पाइन नट का प्रसंस्करण बहुत ही मेहनत का काम है पर इसका पोषण मूल्य बहुत अधिक है. पाइन नट को घरेलू संसाधनों से विकसित किया जा रहा है. पाइन नट की 5 मुख्य प्रजातियां हैं. साइबेरियाई चीड़, कोरियाई चीड़, इतालवी पत्थर चीड़, चिलकोजा चीड़, एकल पत्ती और कोलोराडो. पाइन नट की फसल के मौसम में महत्वपूर्ण सांस्कृतिक परंपराओं की शुरूआत और पवित्र अनुष्ठानों को मनाया जाता है. पाइन नट को भोजन और तेल मालिश के रूप में उपयोग होता है. सौन्दर्य उत्पादों और सौंदर्य प्रसाधनों में उपयोग किया जाता है. भुने हुए पाइन नट सबसे स्वादिष्ट लगते हैं. पाइन नट, कुरकुरे मीठे और स्वादिष्ट होते हैं. पाइन नट दिखने में हाथी दांत रंग के, पतले और लंबे आकार के होते हैं. चिलगोजा अफगानिस्तान, पाकिस्तान, चीन और उत्तर पश्चिमी भारत 1800-3350 मीटर की ऊंचाई पर पेड़ पाये जाते हैं.

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