बस्तर दशहरा: रथ न खीचने पर जुर्माना
रायपुर | एजेंसी: छत्तीसगढ़ के बस्तर में 75 दिनों तक चलने वाले विश्व प्रसिद्ध दशहरा के लिए इन दिनों किलेपाल परगना के 34 गांवों में खासा उत्साह है. यहां रथ खींचने का अधिकार केवल किलेपाल के माड़िया लोगों को ही है. रथ खींचने के लिए जाति का कोई बंधन नहीं है.
माड़िया मुरिया, कला हो या धाकड़, हर गांव से परिवार के एक सदस्य को रथ खींचने जगदलपुर आना ही पड़ता है. इसकी अवहेलना करने पर परिवार की आर्थिक स्थिति को देखते हुए जुर्माना लगाया जाता है.
बस्तर दशहरा में किलेपाल परगना से दो से ढाई हजार ग्रामीण रथ खींचने पहुंचते हैं, इसके लिए पहले घर-घर से चावल नकदी तथा रथ खींचने के लिए सियाड़ी के पेड़ से बनी रस्सी एकत्रित की जाती थी.
जगदलपुर के ऐतिहासिक बस्तर दशहरा पर्व का काछनगादी पूजा विधान 12 अक्टूबर की रात संपन्न हुआ. जहां बेल कांटो के झूले पर बैठी काछनदेवी ने दशहरा पर्व मनाने एवं फूल रथ संचालन करने की अनुमति दे दी. काछनगादी पूजा विधान के बाद गोल बाजार में जाकर रैला देवी की विधिवत पूजा-अर्चना की गई. छत्तीसगढ़ के बस्तर में 75 दिनों तक मनाए जाने वाला दशहरा पूरे विश्व में विख्यात है. इसमें शामिल होने बड़ी संख्या में विदेशों पर्यटक भी पहुंचते हैं.
काछनगादी पूजा एवं रैला देवी पूजा के दौरान बस्तर के सांसद एवं दशहरा कमेटी के अध्यक्ष दिनेश कश्यप, उपाध्यक्ष डॉ. सुभाऊ कश्यप, राजपरिवार के सदस्य कमलचन्द भंजदेव, जिला पंचायत अध्यक्ष जबिता मंडावी, लच्छू कश्यप, श्रीनिवास मद्दी, किरण देव, कुमार जयदेव, योगेंद्र पांडे, राजगुरु एवं मांझी चालकी उपस्थित थे.
बस्तरा दशहरा की ख्याति सबसे लंबे समय तक चलने वाले दशहरा के लिए तो है ही, साथ ही यह एक अनूठा पर्व है, जिसमें रावण का वध नहीं किया जाता. 13 दिनों तक बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी सहित अन्य देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना की जाती है. 75 दिनों तक चलने वाले दशहरा की तैयारियां तीन महीने पहले से ही शुरू हो जाती है.
माना जाता है कि यहां का दशहरा 500 वर्षो से अधिक समय से परंपरानुसार मनाया जा रहा है. पचहत्तर दिनों की इस लंबी अवधि में प्रमुख रूप से काछनगादी, पाट जात्रा, जोगी बिठाई, मावली जात्रा, भीतर रैनी, बाहर रैनी तथा मुरिया दरबार मुख्य रस्में होती हैं.
बस्तर दशहरा का आकर्षण होता है यहां लकड़ी से निर्मित होना वाला विशाल दुमंजिला रथ. बताया जाता है कि बिना किसी आधुनिक तकनीक या औजारों की सहायता से एक निश्चित समयावधि में आदिवासी उक्त रथ का निर्माण करते हैं. फिर रथ को आकर्षण ढंग से सजाया जाता है. रथ पर मां दंतेश्वरी का छत्र सवार होता है. स्थानीय निवासियों का कहना है कि जब तक राजशाही जिंदा थी, राजा स्वयं सवार होते थे.
छत्तीसगढ़ के बस्तर के ऐतिहासिक विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा में दूसरी महत्वपूर्ण पूजा विधान डेरी गड़ाई पिछले महीने संपन्न हुई थी. इस विधान के बाद दशहरा में चलने वाले रथ का निर्माण बस्तर के आदिवासियों द्वारा शुरू किया गया. डेरी गड़ाई के अवसर पर दंतेश्वरी मंदिर के प्रधान पुजारी बस्तर दशहरा समिति के अध्यक्ष बस्तर सांसद दिनेश कश्यप तथा सदस्यों सहित बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे.
बस्तर दशहरे के लिए निर्माण किया गया फूल रथ, चार चक्कों का तथा विजय रथ आठ चक्कों का बनाया जाता है. बस्तर दशहरा के संबंध में जगदलपुर के नरेंद्र पाणिग्रही ने बताया कि स्थानीय सिरहासार भवन में ग्राम बिरिंगपाल से लाई गई साल की टहनियों को गड्ढे में पूजा विधान के साथ गाड़ने की प्रक्रिया को डेरी गड़ाई कहा जाता है.
12 अक्टूबर की शाम काछनगादी पूजा हुई. वहीं 14 अक्टूबर को जोगी बिठाई और 15-20 अक्टूबर तक रथ परिचालन होगा. 21 अक्टूबर को महाष्टमी की निशाजात्रा, 22 अक्टूबर को जोगी बिठाई, कुंवारी पूजा और मावली परघाव की रस्म पूरी की जाएगी. 23 को भीतर रैनी और रथ परिचालन और चोरी होगी. दूसरे दिन 24 अक्टूबर को बाहर रैनी पर कुम्हड़ाकोट में विशेष पूजा और शाम को रथ वापसी होगी.
25 अक्टूबर को काछन जात्रा और मुरिया दरबार लगेगा. 26 अक्टूबर को कुटुंब जात्रा के साथ देवी-देवताओं को विदाई. इसके दूसरे दिन 27 अक्टूबर को दंतेवाड़ा की माईजी की डोली की विदाई के साथ पर्व का समापन होगा.