बस्तर

भाजपा को घर में डर

जगदलपुर | संवाददाता: बस्तर पिछले विधानसभा चुनाव के बाद भले भाजपा का घर बन गया हो लेकिन इस बार अपने घर में भाजपा डरी हुई है. पार्टी के भीतर फूट और नाराजगी के कारण सभी 12 सीटों को लेकर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व चिंता में है. जिन 11 सीटों पर भाजपा का परचम लहराया था, उनमें से 3 सीटें पहले से ही मुश्किल घोषित रही हैं, उसके अलावा कम से कम 4 सीटें इस बार कमजोर हालत में हैं.

बस्तर की 12 में से 11 विधानसभा सीटें भाजपा के कब्जे में है. केवल 1 विधानसभा कांग्रेस को मिली है. कवासी लखमा अकेले ऐसे विधायक हैं, जो भाजपा की आंधी के बाद भी बच गये. लेकिन पिछले चुनाव में ही यह बात साफ हो गई थी कि अगर कांग्रेस ने जोर लगाया होता तो बस्तर में पार्टी का हाल ये नहीं होता.

बस्तर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के डा. सुभाउ कश्यप केवल 120 मतों से जीते थे. यह कुल मतदान का 1.24 प्रतिशत के अंतर का मामला था. इसी तरह अंतागढ़ से आज के वनमंत्री मंत्री विक्रम उसेंडी 109 मतो से यह चुनाव जीत पाये थे. यह कुल जमा 0.13 प्रतिशत था. इसी तरह कोंडागॉव से लता उसेंडी 2.61 प्रतिशत से आगे थीं और कुल जमा अंतर था 2771 मतो का.

केवल 2.61 प्रतिशत से आगे होने का अर्थ है कि 1.40 प्रतिशत का बदलाव भाजपा को कोंडागॉव से हरा सकता है. उसी प्रकार अंतागढ़ में 0.07 प्रतिशत तथा बस्तर में 0.75 प्रतिशत का बदलाव भाजपा को हराने के लिये काफी है. इसके अलावा भाजपा के कमसे कम 4 विधायक ऐसे हैं, जिनसे पार्टी के नेता भी नाराज हैं.

कहा जाता है कि छत्तीसगढ़ की सत्ता बस्तर से ही निकलती है. लेकिन पिछले चुनाव के हाल और भाजपा की वर्तमान राजनीति बताती है कि इस बार बस्तर का मन डोल सकता है.

भाजपा को उबारने के लिये मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ लगातार सक्रिय है. तमाम विरोधों के बाद भी प्रवीण तोगड़िया बस्तर में सभा करके भाजपा को मदद करने की कोशिश में जुटे हुये हैं. मुख्यमंत्री रमन सिंह के एजेंडे में भी बस्तर सबसे उपर है. कहा तो यह भी जा रहा है कि बस्तर के 11 विधायकों में से 4 से 5 विधायकों का पत्ता पार्टी काटेगी. लेकिन क्या वर्तमान विधायक अपना पत्ता कटने के बाद विद्रोह की हालत में नहीं होंगे ? अगर इसका जवाब हां में है तो फिर बस्तर में भाजपा को डरना ही चाहिये.

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