दिग्गी के दौरे के दांव-पेंच
रायपुर | स्वामी क्रांति: कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह के छत्तीसगढ़ दौरे से फिर हलचल शुरु हो गई है. दिग्विजय सिंह 5 सितंबर से छत्तीसगढ़ प्रवास पर थे और 7 सितंबर की शाम लौट गए हैं. दिग्विजय सिंह कांग्रेस आलाकमान के चहेते नेताओं में गिने जाते हैं और छत्तीसगढ़ में लगभग पूरा कांग्रेस संगठन उनके अपने लोगों से बना है. ऐसे में दिग्विजय सिंह का छत्तीसगढ़ आना सामान्य लग सकता है पर हकीकत ये है कि दिग्विजय यहां सियासी समीकरण बिठाने के लिए आए थे और परिस्थितियों को देखकर तो यही लगता है कि वे कांग्रेस को एक नई तरह की जंग के लिए तैयार कर रहे हैं.
ये वो जंग है, जिसमें जो कल तक अपने थे वो अब पराए नजर आ सकते हैं. बदली परिस्थितियों में किस तरह क्या करना है ? कौन से मोहरे इसमें किस तरह की चाल चलेंगे ? दिग्विजय यही समझाने यहां आए थे और उनके दौरे के बाद कांग्रेस संगठन के नेताओं के चेहरे तो चीख चीखकर यही कह रहे थे कि वे अब किसी भी तरह की बदली परिस्थिति के लिए तैयार हैं.
कौन सी परिस्थितियां कांग्रेस के सामने आने वाली हैं, इसकी चर्चा के पहले हमें ये देखना होगा कि पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी को दिग्विजय सिंह का छत्तीसगढ़ आना क्यों पसंद नहीं है. जोगी राज्य में कांग्रेस पर अपनी वैसी ही पकड़ चाहते हैं, जैसी पिछले 2 चुनावों के दौरान रही है. लेकिन अब मामला बदल चुका है.
जोगी से अलग लेकिन…
2008 के चुनाव में हार के बाद से अजीत जोगी हाशिए पर जाने लगे हैं. दो-दो हार के बाद संगठन में मन मसोसकर जोगी समर्थक बने बैठे नेताओं ने आलाकमान को ये समझाने में कामयाबी पायी है कि जोगी के कारण कांग्रेस हारती है. यही वजह थी कि कांग्रेस ने महेंद्र कर्मा की हार के बाद रविंद्र चौबे को नेता प्रतिपक्ष का पद सौंपा. अजीत जोगी ये पद अपने पाले में रखना चाहते थे पर ऐसा नहीं हुआ.
नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद चौबे ने जो पहला काम किया, वो ये था कि उन्होंने जोगी के आसपास मंडराने वाले विधायकों को अपने पाले में किया. उनकी इस कोशिश में शहीद का दर्जा पा चुके पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल का भी साथ उन्हें मिला.
चौबे ऐसे विधायकों को ये समझाने में कामयाब हुए कि जोगी से कुछ दूरी बना लेने पर भी उनका कोई अहित नहीं होगा, अब ये अलग बात है कि जोगी को छोड़कर आए विधायक अभी भी जोगी को अनदेखा नहीं कर पाते. जोगी के एक फोन पर वे उनके घर पहुंच जाते हैं और जोगी को ये दिखाने का मौका मिल जाता है कि उनके साथ कितने विधायक हैं.
दिग्विजय सिंह जब 25 मई को जीरम घाटी नक्सली हमले में शहीद हुए अपने पुराने सहयोगी नेताओं को श्रद्धांजलि देने कांग्रेस भवन पहुंचे थे तो जोगी के विरोधी स्वर सभी ने सुने. ये स्वर दिग्विजय सिंह के खिलाफ थे. किसी ने सोचा न था कि इस मौके पर उन्हें ये सब सुनने मिलेगा, पर ऐसा हुआ.
इसके बाद जोगी ने एक बार फिर प्रदेश अध्यक्ष के शहीद होने के बाद खाली हुआ ये पद अपने पाले में करने की कोशिश की पर इस बार भी दिग्विजय सिंह समर्थक चरणदास महंत को ये पद दे दिया गया. हाल ही में जोगी ने सतनामी समाज की सभाओं में जिस तरह से अपने प्रत्याशी की तरह कुछ समर्थकों को पेश किया उससे भी संगठन खेमा उनसे नाराज है और हाईकमान को संगठन के नेताओं ने शिकायत भी भेजी है.
पिछले करीब दस दिनों से जोगी दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं और इस दौरान जिस तरह के घटनाक्रम हो रहे हैं, उनसे साफ दिख रहा है कि अब जोगी या तो कांग्रेस में ताकत के साथ वापस लौटेंगे या फिर कांग्रेस ही छोड़ देंगे. बहुत से जोगी समर्थक ऐसा मानते हैं कि जोगी खोई हुई ताकत वापस पाएंगे पर संगठन के नेताओं को ऐसा नहीं लगता.
दिग्गी के दांव
दिग्विजय सिंह अजीत जोगी की गैर मौजूदगी में छत्तीसगढ़ में करीब ढाई दिनों तक घूमते रहे हैं. जानकार ऐसा नहीं मानते कि दिग्विजय एक दो कार्यक्रमों के लिए ही आए थे. दिग्विजय हाईकमान के प्रमुख ताकतवर नेताओं में गिने जाते हैं और ऐसा लगता है कि हाईकमान ने ही उन्हें छत्तीसगढ़ में बिसात बिछाने के लिए भेजा है.
ये बिसात कैसी है और क्या चालें वे चल गए हैं इसके संकेत अगले कुछ दिनों में मिलने लगेंगे. फिलहाल तो यही लग रहा है कि दिग्विजय अपने समर्थक संगठन के नेताओं को जोगी की ताकतवर वापसी की स्थिति में कौन सी राह लेनी है ये सिखा गए हैं या फिर जोगी के बिना किस राह चलना है, ये बता गए हैं. इसमें दूसरी संभावना ही सबसे प्रबल नजर आ रही है.
तो क्या कांग्रेस कल के साथी को विपक्षी के रूप में मात दे पाएगी ? जरा कुछ दिनों तक इंतजार करें छ्त्तीसगढ़ की राजनीति अब नए रंग में नजर आने वाली है और जो रंग इस बार चुनावी हवा में घुलेंगे वे मुख्यमंत्री रमन सिंह के लिए इंद्रधनुषी तो नहीं ही होंगे.