आदिवासी समाज के विरोध के बाद सरकार बैकफुट पर
रायपुर। संवाददाता: भू-राजस्व संहिता में संशोधन करने का फैसला वापस ले लिया गया है. आदिवासियों के विरोध को देखते हुए यह विरोध वापस लिया गया. लेकिन कुछ राजनीतिक और सियासी कारण भी थे, जिसके कारण भू राजस्व संहिता में संशोधन को वापस लेना फिलहाल सरकार के लिए जरूरी दिख रहा था.
पहला तो आदिवासी समाज के तीखे विरोध के चलते सरकार दबाव में आई. जिस तरह पूरे प्रदेश में इस आंदोलन को गति मिल रही थी, सरकार इसे नहीं बढ़ाना चाहती थी, हाल ही में वह शिक्षाकर्मियों के आंदोलन को खत्म कर बाहर निकली है, ऐसे में आदिवासी समाज की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहती थी.
ऐसे समय में जब खुद भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेता खुलकर इस संशोधन विधेयक का विरोध कर चुके थे, सरकार खुद अपनों से घिरी हुई नजर आ रही थी.
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष नंदकुमार साय ने पहले ही इसका विरोध दर्ज करा दिया था और कहा कि इस संबंध में काफी शिकायतें हैं और इसके लिए वे सरकार को नोटिस देंगे. इसी तरह राज्यसभा सांसद रामविचार नेताम भी इस मसले पर खुलकर अपना विरोध जता चुके थे.
बस्तर में पिछली बार भाजपा की स्थिति अच्छी नहीं थी और 12 में से 8 सीटें कांग्रेस को मिली थी. ऐसे समय में कवासी लखमा को उपनेता की कमान सौंपने के बाद उन्हें बस्तर के नेता के रूप में स्थापित करने का बड़ा मौका कांग्रेस को िमल जाता और भाजपा यह कभी नहीं चाहेगी.
कांग्रेस संगठन की एका से भी कहीं न कहीं सरकार घबराई होगी. जिस वक्त सरकार आदिवासियों की जमीन से संबंधित कानून उनके विरोध के बावजूद पास करने पर तुली थी, उस वक्त कांग्रेस संगठन ने आदिवासी नेताओं को बड़े अहम पद संगठन में देकर आदिवासी हित का कार्ड खेल दिया. यदि यह संशोधन हो जाता, संदेश सरकार के खिलाफ जाता. आदिवासी समाज जिस तरह एक जुट होकर सरकार के आदिवासी मंत्रियों के कार्यक्रम का बहिष्कार कर रहा था, उससे भी संदेश गलत जा रहा था. राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रामलाल की बैठक में भी यह मुद्दा उठा था और इसे वहां भी सही नहीं माना जा रहा था.
कांग्रेस इस मुद्दे को जमकर भुना रही थी. राज्यपाल से दस्तखत न करने की अपील करके उसने मौके को भुना लिया था. अगर संशोधन हो जाता तो आदिवासी कांग्रेस के साथ संघर्ष करते दिखते.
कांग्रेस ने बताया आदिवासियों की जीत
कांग्रेस ने इसे आदिवासियों की जीत बताया है. प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भूपेश बघेल, विधायक दल के नेता टीएस सिंहदेव, पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ. चरणदास महंत, आदिवासी समाज से प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष रामदयाल उईके, उप नेता प्रतिपक्ष कवासी लखमा, बोधराम कंवर, देवती कर्मा, मनोज मंडावी, अमरजीत भगत, श्यामलाल कंवर, शिशुपाल सोरी वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि यह आदिवासी समाज की बड़ी जीत है.
वहीं राजस्व मंत्री प्रेम प्रकाश पांडेय ने कहा कि ये अच्छा संशोधन था. यह भी कहा कि यह अनुसूचित जनजाति क्षेत्र के विकास के लिए है. संशोधन वापस लेने के बाद उन्होंने कहा कि कभी कभी अच्छी दवाई भी रिएक्शन कर जाती है, ऐसे मेें दवाई वापस ले लेना चाहिए. उन्होंने कहा कि ऐसे रिएक्शन की कल्पना नहीं थी. लेकिन आदिवासी समाज यह चाहता था, इसलिए यही हुआ.
भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष धरमलाल कौशिक ने कहा कि लोकतंत्र की यही खूबसूरती है कि प्रतिक्रिया के आधार पर काम होते हैं. इस फैसले को वापस लेने पर उन्होंने कहा कि यह संवेदनशील सरकार होने का प्रमाण है. उधर, रामविचार नेताम जो इस संशोधन से नाखुश थे, उन्होंने भी खुशी जाहिर की है.