….. मैं सम्राट बनना नहीं चाहता
रायपुर | अन्वेषा गुप्ता: आज महान कालजयी फिल्मकार चार्ली चैपलिन की 137वीं जयंती है. आज के ही दिन उनका जन्म हुआ था. सिनेमा के इतिहास में कई कलाकारों ने दर्शकों को जमकर हंसाया परन्तु चार्ली चैपलिन इन सबसे अलग है. चार्ली चैपलिन इस मायने में अन्यों अलग है क्योंकि उन्होंने प्रथम विश्वयुद्ध के समय में रोते हुये को हंसाना शुरु किया था.
एक असमानता पर टिके हुए वर्गीय समाज में विसंगतियों, त्रासदियों और मानवीय उल्लास के पलों को अपनी फिल्मों में दिखाने वाले इस कलाकार के बारे में जितना कुछ लिखा और कहा गया, और जिसे दुनिया भर की जनता का जितना प्यार मिला शायद ही किसी दूसरे फिल्मी कलाकार को वैसा प्यार मिला हो.
चार्ली को उऩकी फिल्म ‘ग्रेट डिक्टेटर’ के दौरान अमरीका में कम्युनिस्ट कह कर प्रताड़ित किया गया था. चार्ली को कम्युनिस्ट होने के आरोप में अमरीका में इस तरह सताया गया कि चालीस साल उस देश में बिताने के बाद उन्हें हार कर स्विटजरलैंड में जाकर बसना पड़ा.
अपने कालजयी फिल्म ‘द ग्रेट डिक्टेटर’, जो हिटलर के ऊपर बनाई गई थी, के अंतिम अंश में हिटलर भाषण देता है. पर भाषण देने वाला यह यहूदी व्यक्ति (चार्ली चैपलिन), असली हिटलर (चार्ली चैपलिन) के ऐन वक्त पर गुम हो जाने के कारण हमशक्ली की वजह से हिटलर के मंच पर आता है. फासीवादी दमन का शिकार यह ‘हमशक्ल’ यहूदी अपने भाषण में जो कहता है वह विश्व मानवता की विजय का, उसकी सदाकांक्षा का अद्भुत कलात्मक सार है.
किंतु वैश्विक मनुष्यता की विरोधी शक्तियों को, जो फासीवाद से लड़ने का दिखावा करती रहीं हैं, यह भाषण पसंद नहीं आया था. और आज भी बहुतों को पसंद नहीं आएगा.
खुद चैपलिन ने इसके बारे में लिखा है– ‘लेकिन समीक्षाएं जो थीं, वे मिली–जुली थीं. अधिकतर समीक्षकों को अंतिम भाषण पर एतराज़ था. द‘ न्यूयार्क डेली न्यूज ने लिखा कि मैंने दर्शकों की तरफ साम्यवाद की उंगली उठायी है. हालांकि अधिकांश समीक्षकों ने भाषण पर ही एतराज़ किया था और कहा कि ये चरित्र में नहीं था. आम तौर पर जनता ने इसे पसन्द किया, और मुझे उसकी तारीफ में कई खत मिले.
“द ग्रेट डिक्टेटर” फिल्म में चार्ली चैपलिन का भाषण
…..माफ कीजिये, मैं सम्राट बनना नहीं चाहता, यह मेरा धंधा नहीं है. मैं किसी पर हुकूमत नहीं करना चाहता, किसी को हराना नहीं चाहता. मुमकिन हो तो हर किसी की मदद करना चाहूँगा. हम सब एक दूसरे की मदद करना चाहते हैं, इंसान की फितरत यही है. हम सब एक दूसरे के दुख की कीमत पर नहीं, बल्कि एक दूसरे के साथ मिल कर खुशी से रहना चाहते हैं. हम एक दूसरे से नफरत और घृणा नहीं करना चाहते. इस दुनिया में हर किसी के लिए गुंजाइश है और धरती इतनी अमीर है कि सब कि जरूरतें पूरी कर सकती है.
जिन्दगी जीने का सलीका आजाद और खूबसूरत हो सकता है. लेकिन हम रास्ते से भटक गये हैं.
लालच ने इन्सान की जमीर को जहरीला बना दिया है, दुनिया को नफ़रत की दीवारों में जकड़ दिया है; हमें मुसीबत और खून-खराबे की हालत में धकेल दिया है.
हमने रफ़्तार पैदा किया, लेकिन खुद को उसमें जकड़ लिया-
मशीनें बेशुमार पैदावार करती है, लेकिन हम कंगाल हैं.
हमारे ज्ञान ने हमें सनकी बना दिया है,
चालाकी ने कठोर और बेरहम.
हम बहुत ज्यादा सोचते और बहुत कम महसूस करते हैं-
मशीनों से ज्यादा हमें इंसानियत की जरूरत है;
चालाकी की बजाय हमें नेकी और भलमनसाहत की जरूरत है.
इन खूबियों के बिना जिन्दगी वहशी हो जायेगी और सब कुछ खत्म हो जाएगा.
हवाई जहाज और रेडियो ने हमें एक दूसरे के करीब ला दिया. इन खोजों की प्रकृति इंसानों से ज्यादा शराफत की माँग करती है, हम सब की एकजुटता के लिए दुनिया भर में भाईचारे की माँग करती है. इस वक्त भी मेरी आवाज दुनिया भर में लाखों लोगों तक पहुँच रही है, लाखों निराश-हताश मर्दों, औरतों और छोटे बच्चों तक, व्यवस्था के शिकार उन मासूम लोगों तक, जिन्हें सताया और कैद किया जाता है. जिन लोगों तक मेरी आवाज पहुँच रही है, मैं उनसे कहता हूँ कि “निराश न हों.”
जो बदहाली आज हमारे ऊपर थोपी गयी है वह लोभ-लालच का, उस आदमी के नफ़रत का नतीजा है जो इंसानी तरक्की के रास्ते से डरता है- लोगों के मन से नफरत खत्म होगा, तानाशाहों की मौत होगी और जो सत्ता उन लोगों ने जनता से छीनी है, उसे वापस जनता को लौटा दिया जायेगा. और (आज) भले ही लोग मारे जा रहे हों, मुक्ति नहीं मरेगी.
सिपाहियो: अपने आप को धोखेबाजों के हाथों मत सौंपो. जो लोग तुमसे नफरत करते हैं और तुम्हें गुलाम बनाकर रखते हैं, जो खुद तुम्हारी ज़िंदगी के फैसले करते हैं, तुम्हें बताते हैं कि तुम्हें क्या करना है, क्या सोचना है और क्या महसूस करना है, जो तुमसे कवायद कराते हैं, तुम्हें खिलाते हैं, तुम्हारे साथ पालतू जानवरों और तोप के चारे जैसा तरह सलूक करते हैं.
अपने आप को इन बनावटी लोगों, मशीनी दिल और मशीनी दिमाग वाले इन मशीनी लोगों के हवाले मत करो. तुम मशीन नहीं हो. तुम पालतू जानवर नहीं हो. तुम इन्सान हो. तुम्हारे दिलों में इंसानियत के लिए प्यार है. तुम नफरत नहीं करते, नफरत सिर्फ वे लोग करते हैं जिनसे कोई प्यार नहीं करता, सिर्फ बेमुहब्बत और बेकार लोग. सिपाहियों: गुलामी के लिए नहीं आजादी के लिए लड़ो.
तुम ही असली अवाम हो, तुम्हारे पास ताकत है, ताकत मशीन बनाने की, ताकत खुशियाँ पैदा करने की, तुम्हारे पास जिन्दगी को आजाद और खूबसूरत बनाने की, इस जिन्दगी को एक अनोखा अभियान बना देने की ताकत है. तो आओ, लोकतंत्र के नाम पर इस ताकत का उपयोग करें, हम सब एक हो जाएं. एक नई दुनिया के लिए संघर्ष करें, एक खूबसूरत दुनिया, जहाँ इंसानों के लिए काम का अवसर हो, जो हमें बेहतर आनेवाला कल, लंबी उम्र और हिफाजत मुहय्या करे. धोखेबाज इन्हीं चीजों का वादा करके सत्ता पर काबिज हुए थे, लेकिन वे झूठे हैं. वे अपने वादे को पूरा नहीं करते और वे कभी करेंगे भी नहीं. तानाशाह खुद तो आजाद होते हैं, लेकिन बाकी लोगों को गुलाम बनाते हैं. आओ हम इन वादों को पूरा करवाने के लिए लड़ें. कौमियत की सीमाओं को तोड़ने के लिए, लालच को खत्म करने के लिए, नफरत और कट्टरता को जड़ से मिटने के लिए, दुनिया को आजाद कराने के लिए लड़ें. एक माकूल और मुकम्मिल दुनिया बनाने की लड़ाई लड़ें. एक ऐसी दुनिया जहाँ विज्ञान और तरक्की सबकी जिन्दगी में खुशहाली लाए.
सिपाहियो! आओ, लोकतंत्र के नाम पर हम सब एकजुट हो जायें!
“The Great Dictator” speech by Charlie Chaplin