बाज़ार

उर्जित पटेल के समक्ष चुनौतियां

नई दिल्ली | जेके कर: उर्जित पटेल 4 सितंबर को रिजर्व बैंक के गवर्नर का पदभार संभालेंगे. उर्जित पटेल अभी रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर हैं. उन्हें भी उन चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा जिसके कारण रघुराम राजन ने सेवावृद्धि के विकल्प से इंकार कर दिया है. खबरों के अनुसार प्रधानमंत्री राजन को सेवावृद्धि देने के पक्ष में थे परन्तु उन्होंने खुद ही उससे इंकार कर दिया था

रघुराम राजन के समान ही उर्जित पटेल की पृष्ठभूमि भी कॉर्पोरेट जगत की है. उर्जित पटेल ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप और रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के साथ काम किया हैं. रघुराम राजन के जाने के नेपथ्य में दो प्रमुख कारणों को माना जाता है. पहला उन्होंने ब्याज की दर को कम नहीं किया दूसरा राजन ने बैंकों के नॉन परफॉर्मिंग एसेट यानी डूबने के कगार पर पहुंच चुके कर्जो की वसूलने के लिये ईमानदार कोशिश की.

यह वह रघुराम राजन ही हैं जिन्होंने सबसे पहले सार्वजनिक बैंकों को उनका अकाउंट दुरस्त करने के लिये कहा था. राजन के प्रयासों के कारण ही बैंकों के उन खातेदारों के नाम कुछ हद तक लोगों की नज़र में आये जो हजारों-लाखों करोड़ रुपयों का कर्ज लेकर उसे डकार जाते हैं.

रघुराम राजन ने बैंकों से उनके एनपीए या नान परफॉर्मिंग एसेट को कम करने को कहा. जाहिर है कि इससे सबसे ज्यादा चोट उन धन्ना सेठों को पहुंची जिनका काम ही बैंकों में जमा जनता के पैसों को कर्ज के रूप में लेकर उससे अपना साम्राज्य खड़ा करना है. जगजाहिर है कि उस कर्ज को चुकता करने की बारी आने पर वे विदेश भाग जाते हैं.

दूसरा, रघुराम राजन ने ब्याज की दर को कम नहीं किया. जबकि कई उद्योगपति इसकी राह देख रहे थे कि कब ब्याज की रकम कम हो तथा लोग उससे कर्ज लेकर खरीददारी करें. आज बाजार बैठा हुआ है इसलिये उद्योगपति चाहते हैं कि उनकों खरीददार मिले. ब्याज की दर कम करने से ऐसा मुमकिन हो सकता था. जबकि राजन ने मंदी में बाजार में पैसा डालने से इंकार कर दिया था.

जाहिर है कि उर्जित पटेल इन चुनौतियों से मुंह नहीं मोड़ सकते हैं. उन्हें इनसे दो-चार होना ही पड़ेगा. एक तरफ रघुराम राजन ने बैंकों की डूबती रकम को बचाने के लिये जो कुछ भी किया है उससे एनपीए जनता का मुद्दा बन गया है. जनता चाहती है कि उनके जमा धऩ से दिये गये कर्ज को बैंक बड़े व्यापारिक घरानों से वसूले. न चाहते हुये भी उर्जित पटेल बैंकों का कितना कर्ज डूबने से बचा सकते हैं यह भी एक मापदंड बन गया है उनकी सफलता या असफलता को तय करने का.

दूसरा, रघुराम राजन के जाने के बाद उद्योग समूहों का दबाव रहेगा कि ब्याज की दरों को कम किया जाये ताकि बाजार में पैसा आये जिससे राजन ने मना कर दिय था. याद रखिये कि रघुराम राजन न तो गरीबों के मसीहा हैं और न ही वह देश में कोई रामराज्य लाने वाले थे. रघुराम राजन दुनिया के वह अर्थशास्त्री हैं जिन्होंने 2008 के भयानक आर्थिक मंदी के तीन साल पहले ही उसके बारें में आगाह कर दिया था. रघुराम राजन कॉर्पोरेट जगत को प्रिय एक अर्थशास्त्री रहें हैं जो क्रोनी पूंजीवाद की खिलाफ़त करते हैं.

दरअसल, रिजर्व बैंक के नये गवर्नर उर्जित पटेल के समक्ष चुनौती क्रोनी पूंजीवाद का विरोध करते हुये महंगाई पर नियंत्रण पाना है.

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