धन्यवाद रघुराम राजन
जेके कर
रघुराम राजन को जनता की ओर से धन्यवाद दिया जाना चाहिये कि उन्होंने देश के बड़े घरानों द्वारा सरकारी बैंकों के लाखों करोड़ रुपयों को दबा देने के मुद्दे को सतह पर ला दिया. रघुराम राजन का कार्यकाल 4 सितंबर को समाप्त हो गया है. अपने तीन साल के कार्यकाल में उन्होंने क्रोनी पूंजीवाद के वास्तविकता से आम जनता को परिचित कराया है. रघुराम राजन ने दूसरा सबसे दिलेरी का काम किया कि कॉर्पोरेट घरानों के दबावों के बावजूद भी ब्याज की दर को कम नहीं किया. ब्याज की दरों को कम करने से बाजार में पैसा आता जिससे उद्योगपतियों को फायदा पहुंचता. रघुराम राजन अपने इन दोनों साहसिक कदमों के कारण भारतीय मौद्रिक तथा अर्थव्यस्था के इतिहास में अपना नाम सदा के लिये दर्ज करके चले गये हैं.
बेशक, रघुराम राजन कोई वामपंथी दर्शन को मानने वाले अर्थशास्त्री नहीं थे. परन्तु उन्होंने ही 2008 की वैश्विक मंदी के पहले से ही आगाह कर दिया था कि ‘सबप्राइम मार्टगेज’ किस तरह से दुनिया को एक भयानक मंदी की ओर ले जा रही है. 2008 में एक के बाद अमरीकी तथा यूरोपीय बैंक तथा अन्य संस्थान धड़ाधड़ दिवालिये के कगार पर पहुंच गये. जो वास्तव में आंख बंद करके दी जा रही कर्ज का परिणाम था. बाद में उस मंदी ने पूरी दुनिया को अपनी जकड़ में ले लिया. जिससे, शायद आज तक पूरी तरह से उबरा नहीं जा सका है. उस मंदी के दौर में भारत ने अपने-आप को बचा लिया था क्योंकि यहां पर क्रोनी पूंजीवाद उस तरह से ‘मृत्यु नृत्य’ न कर सका था जो उसने पश्चिमी देशों में किया था. हालांकि, उस समय रघुराम राजन रिजर्व बैंक के गवर्नर नहीं थे.
भारतीय रिजर्व बैंक ने रघुराम राजन के गवर्नर रहते मार्च 2016 में फिर से अपनी रिपोर्ट में बताया कि सभी सार्वजनिक बैंकों के गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां 8 लाख 55 हजार 551 करोड़ रुपये हैं. दरअसल, ये वे कर्ज हैं जिन्हें बैंकों से देश के बड़े-बड़े घरानों ने कर्ज के रूप में लिया तथा दबाकर बैठ गये. नतीजन जनता की गाढ़ी कमाई के बैंकों में जमा पैसे डूबने की स्थिति में आ गये हैं.
उल्लेखनीय है कि 1 जुलाई 2016 को देश के सीएजी शशिकांत शर्मा ने बैंकों के द्वारा दी गई इन कर्जो के बड़े हिस्से के देश से बाहर जाने की आशंका जताई थी. इसके बावजूद सरकार रिजर्व बैंक के पूंजी से 4 से 5 लाख करोड़ रुपये निकालकर गैर-निष्पादित परिसंपत्ति के बोझ के तले दबे बैंकों का हालत सुधारना चाहती थी.
गौरतलब है कि क्रेडिट सुइस की रिपोर्ट के अनुसार देश के दस बड़े औद्योगिक घरानों ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से करीब 7 लाख करोड़ रुपयों का कर्ज ले रखा है. जिनमें से अदानी समूह ने 96 हजार 31 करोड़, एस्सार समूह ने 1.01 ट्रिलियन, जीएमआर समूह ने 47 हजार 976 करोड़, जीवीके समूह ने 33 हजार 102 करोड़, जेपी समूह ने 75 हजार 163 करोड़, जेएसडब्लू समूह ने 58 हजार 171 करोड़, लैंको ने 47 हजार 102 करोड़, रिलायंस समूह ने 1.25 ट्रिलियन, वेदांता समूह ने 1.03 ट्रिलियन तथा विडियोकान ने 45 हजार 405 करोड़ रुपयों का कर्ज ले रखा है.
इतना ही नहीं, रघुराम राजन को देश में सख्त मौद्रिक नीति को लागू करने के लिये भी लंबे समय तक जाना जायेगा. उन्होंने मुद्रस्फीति की ऊंची दर के कारण नीतिगत ब्याज की दरों को कम करने से इंकार कर दिया था. जबकि, उनपर दबाव था कि नीतिगत ब्याज की दरों को कम किया जाये. बाद में राजन इसीलिये आलोचनाओं का शिकार हुये परन्तु उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था की खातिर नहीं झुकने का फैसला लिया.
रघुराम राजन को उनके कार्यकाल में साहसिक कदम उठाने के लिये धन्यवाद तो जरूर दिया जाना चाहिये. खासकर, बैंकों में जमा जनता के पैसों को देश के बड़े उद्योगपतियों द्वारा दबाये जाने की.