छत्तीसगढ़ में पेड़ों की कटाई ने बढ़ाई जानलेवा कार्बन गैस
रायपुर | संवाददाता: अपनी समृद्ध जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ पेड़ों की कटाई के मामले में चिंताजनक स्थिति से गुजर रहा है. छत्तीसगढ़ के घटते जंगल को लेकर ग्लोबल फॉरेस्ट वाच की रिपोर्ट राज्य की भयावह तस्वीर पेश कर रही है.
इस रिपोर्ट के अनुसार राज्य में एक तरफ़ प्राकृतिक और प्राथमिक वन तेज़ी से घटे हैं. वहीं राज्य में कार्बन डाइऑक्साइड समान CO₂e गैसों का उत्सर्जन बढ़ा है.
छत्तीसगढ़ में प्राकृतिक वनों और प्राथमिक वन क्षेत्र की कमी से जैव विविधता के नुकसान, आवास विखंडन और बढ़े हुए कार्बन उत्सर्जन, गंभीर चिंताएं पैदा करने वाला है.
ये पर्यावरणीय प्रभाव न केवल स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को खतरे में डालने वाला है, बल्कि वैश्विक जलवायु परिवर्तन में भी योगदान कर रहा है.
तेज़ी से बढ़ी हैं कार्बन गैसें
2010 में, छत्तीसगढ़ में 1.88 मिलियन हेक्टेयर प्राकृतिक वन था, जो इसके 17% भूमि क्षेत्र को कवर करता था.
लेकिन 2023 तक इसमें से 2.73 हजार हेक्टेयर प्राकृतिक वनों को ख़त्म कर दिया गया.
वनों की इस कटाई के कारण छत्तीसगढ़ में 1.58 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड CO₂ का उत्सर्जन हुआ.
प्राथमिक वन में गिरावट
2001 से 2023 तक, छत्तीसगढ़ में 308 हेक्टेयर आर्द्र प्राथमिक वन की हानि हुई, जो इसके कुल वृक्ष आवरण हानि का 0.57% है.
यह गिरावट राज्य के भीतर आर्द्र प्राथमिक वनों के क्षेत्र में लगभग 1.5% की कमी को दर्शाती है.
वृक्ष आवरण में हानि
इसी अवधि (2001-2023) में, छत्तीसगढ़ में 53.5 हजार हेक्टेयर ट्री कवर यानी वृक्ष आवरण की कमी देखी गई, जो 2000 के बाद से 2.0% की कमी के बराबर है.
यह हानि 25.3 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड CO₂ के उत्सर्जन में तब्दील हो गई.
वृक्ष आवरण का लाभ
वृक्ष आवरण हानि की चिंताजनक प्रवृत्ति के बावजूद, छत्तीसगढ़ ने 2000 से 2020 तक 57.8 हेक्टेयर वृक्ष आवरण बढ़ाने की उल्लेखनीय कोशिश भी की है.
अगर भारत के दूसरे हिस्सों की बात करें तो 2000 से 2020 तक बढ़े यह देश के कुल वृक्ष आवरण का 3.1 फ़ीसदी है.
रास्ता किधर है?
ग्लोबल फॉरेस्ट वाच ने कहा है कि चूँकि छत्तीसगढ़ विकास और पर्यावरण संरक्षण को संतुलित करने की चुनौती से जूझ रहा है.
इसलिए वृक्षों के नुकसान को रोकने और महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है.
इसके लिए वनों की कटाई के प्रभावों को कम करने और स्थायी भूमि प्रबंधन की परंपरा को बढ़ावा देने के लिए सरकारी एजेंसियों, वनों के संरक्षण में जुटी संस्थाएं और स्थानीय समुदायों को मिलजुल कर काम करने की आवश्यकता है.