कैग का छत्तीसगढ़ पर निशाना
नई दिल्ली: कैग ने कहा है कि छत्तीसगढ़ आंगनवाड़ी केंद्र खोलने के मामले में फिसड्डी साबित हुआ है. पूरे देश में आंगनवाड़ी खोलने को लेकर जो लक्ष्य रखा गया था, उसमें छत्तीसगढ़ सबसे पीछे है. राज्य को जो लक्ष्य दिया गया था, उसमें राज्य ने 39 प्रतिशत आंगनवाड़ी कम खोले. बिहार जैसे राज्यों में आंगनवाड़ी खोलने की यह असफलता केवल 13 प्रतिशत है.
कैग ने 5 मार्च को संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में एकीकृत बाल विकास सेवाओं यानी आईसीडीएस की जो रिपोर्ट पेश की है, उसमें छत्तीसगढ़ की प्रशंसा भी है. कैग ने लेखा-जोखा रखने में छत्तीसगढ़ का उदाहरण देते हुये दूसरे राज्यों को इससे प्रेरणा लेने के लिये भी कहा है. मतलब ये कि कैग की ताजा रिपोर्ट छत्तीसगढ़ सरकार के लिये खट्टी-मीठी कही जा सकती है.
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि देश भर में केंद्र सरकार ने 31 मार्च 2011 तक 13.67 लाख आंगनवाड़ी खोलने को मंजूरी दी थी लेकिन छत्तीसगढ़ में लक्ष्य से 39 प्रतिशत आंगनवाड़ी कम खुले. इसी तरह एकीकृत बाल विकास सेवा केंद्र के लक्ष्य में भी छत्तीसगढ़ 26 प्रतिशत कम रहा.
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक विनोद राय और महानिदेशक एसीए राज मथरानी द्वारा जारी रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ के बस्तर, बिलासपुर और रायपुर के एकीकृत बाल विकास सेवाओं के सर्वे का हवाला देते हुये कहा गया है कि 2006-07 में 45.61 करोड़ रुपये अनुमोदित किये गये थे लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार ने इस पर 70.46 करोड़ रुपये खर्च कर दिये. इसी तरह 2007-08 में 94.98 करोड़ रुपये के मुकाबले 83.68 करोड़, 2008-09 में 89.92 करोड़ के मुकाबले 122.89 करोड़, 2009-10 में 142.94 करोड़ की तुलना में 143.81 करोड़ रुपये और 2010-11 में 120.65 करोड़ की तुलना में 162.33 करोड़ रुपये खर्च किये.
लेकिन इतनी लंबी-चौड़ी रकम खर्च करने के बाद भी योजनाओं का हाल देखने लायक है. 2006 से 2011 तक 23,345 आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण का लक्ष्य रखा गया था लेकिन 14,324 आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को ही प्रशिक्षण दिया गया. इसी तरह 36250 आंगनवाड़ी सहायिकाओं को प्रशिक्षण देने के लक्ष्य से लगभग आधे 18,873 को ही प्रशिक्षित किया गया. आंगनवाड़ी सुपरवाइजरों का हाल तो और भी बुरा है. आंकड़े बताते हैं कि राज्य में केवल 2 प्रतिशत सुपरवाइजर ही प्रशिक्षित हैं.
एकीकृत बाल विकास सेवाओं में प्रति हितग्राही खर्च का आंकड़ा 2006-7 के 1 रुपये 11 पैसे की तुलना में 2010-11 में 3 रुपये 46 पैसे तो हुआ है. यह उत्तराखंड के 1.58 की तुलना में तो अधिक है लेकिन तमिडनाडु के 5 रुपये 15 पैसे, सिक्किम के 5 रुपये 89 पैसे और अरुणाचल के 5 रुपये 3 पैसे की तुलना में काफी कम है.
छत्तीसगढ़ में बच्चों में कुपोषण की मात्रा 2006-07 की तुलना में थोड़ी बढ़ गयी है. 2006-07 में छत्तीसगढ़ में अति कुपोषित बच्चों की संख्या 1.19 प्रतिशत थी. 2007-08 में .74 प्रतिशत, 2008-09 में .68 प्रतिशत और 2009-10 में .67 प्रतिशत थी. लेकिन 2010-11 में राज्य में अति कुपोषित बच्चों की संख्या दुगनी से भी अधिक हो गयी. यह आंकड़ा 1.97 प्रतिशत पहुंच गया.
हालांकि गेहूं आधारित पौष्टिकता कार्यक्रम के तहत अनाज देने के मामले में छत्तीसगढ़ ठीक स्थिति में रहा है. 2010-11 में प्रति हितग्राही प्रतिदिन छत्तीसगढ़ में 69 ग्राम अनाज दिया गया है. 2007-08 में यह आंकड़ा 82 ग्राम था. देश के दूसरे राज्यों का बुरा हाल था और राजस्थान में 5 ग्राम, हरियाणा में 2 ग्राम और महाराष्ट्र में 11 ग्राम अनाज जैसे आंकड़े भी इस रिपोर्ट में हैं.
कैग ने लेखा-जोखा, रिपोर्टिंग, हितग्राहियों को ऊर्जावान खाद्य पदार्थ देने के मामले में छत्तीसगढ़ और गुजरात की जम कर सराहना करते हुये दूसरे राज्यों को सीख लेने के लिये कहा है. कैग की इस रिपोर्ट में अलग-अलग आंगनवाड़ियों में दुरुस्त रजिस्टर और कागजातों के लिये भी छत्तीसगढ़ को सराहा है.