बुंदेलखंड में ‘जय भीम-जय मीम’ का नारा
बांदा | समाचार डेस्क: बुंदेलखंड में ‘जय भीम-जय मीम’ का नारा कई धुरंधरों का खेल बिगाड़ेगा. ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लमीन के प्रमुख और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी अपने ‘जय भीम-जय मीम’ नए नारे के साथ उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव-2017 लड़े तो 19 सीटों वाले बुंदेलखंड में इस नारे का सबसे ज्यादा असर पड़ेगा.
‘मुस्लिम’ और ‘दलित’ गठजोड़ मजबूत होने से कम से कम आधा दर्जन सीटें ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लमीन के खाते में जा सकती हैं और कई राजनीतिक धुरंधरों का खेल बिगड़ जाएगा.
उत्तर प्रदेश के हिस्से वाला बुंदेलखंड बहुजन समाज पार्टी का गढ़ माना जाता रहा है. बसपा संस्थापक कांशीराम अस्सी के दशक में अपने संगठन ‘डीएस-4’ की शुरुआत इसी धरती से की थी और वर्ष 1985 में पार्टी गठन में यहां के कई लोगों को संस्थापक सदस्य के रूप में जगह भी मिली थी.
अगर चैनसुख भारती (पूर्व मंत्री), दद्दू प्रसाद (पूर्व मंत्री, अब निष्कासित), शिवचरण प्रजापति (पूर्व मंत्री, अब सपा में) विशंभर निषाद (पूर्व मंत्री, अब सपा में), बाबूलाल कुशवाहा (पूर्व मंत्री, अब निष्क्रिय), बाबू सिंह कुशवाहा (पूर्व मंत्री, अब निष्कासित) के.आर. शशि (निष्कासित), घनश्याम कोरी (निष्कासित), महेंद्र निषाद (पूर्व सांसद, अब निष्क्रिय) जैसे नेताओं को छोड़ भी दिया जाए तो अब भी विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष नसीमुद्दीन सिद्दीकी (बसपा में मुस्लिम चेहरा) और पूर्व मंत्री गयाचरण दिनकर (कद्दावर दलित नेता) बसपा में बुंदेली ‘रीढ़’ माने जाते हैं.
बावजूद इसके अब यहां बसपा की राजनीतिक जमीन खिसकती नजर आ रही है, पिछले विधानसभा चुनाव में 19 में से सात सीटें ही बसपा जीत सकी थी.
बसपा के निष्क्रिय नेता और पूर्व मंत्री बाबूलाल कुशवाहा पार्टी के कमजोर प्रदर्शन के पीछे जो कारण गिनाते हैं, वह काफी दमदार हैं. वह कहते हैं, “शुरुआती दौर में बसपा एक मिशन के रूप में काम करती थी, अब अन्य दलों की भांति काम कर रही है. पहले अनुसूचित वर्ग और पिछड़े वर्ग के मजबूत गठजोड़ से चुनाव लड़ा जाता था, अब अनुसूचित वर्ग में एक विशेष कौम के अलावा इस वर्ग से ताल्लुक रखने वाली कोरी, धोबी, मेहतर, खटिक, कुछबंधिया, भाट और पिछड़े वर्ग की कहार, काछी, कुम्हार, केवट, आरख जैसी कई जातियां राजनीतिक हिस्सेदारी न मिलने से बसपा से अलग हो रही हैं.”
बकौल कुशवाहा, “साहब (कांशीराम) के न रहने पर बसपा इन कौमों से सिर्फ वोट लेने और मीटिंग में दरी बिछवाने का काम लेती है. राजनीतिक रूप से उपेक्षित इन जातियों को बसपा जिला पंचायत और क्षेत्र पंचायत का चुनाव लड़ने तक का मौका नहीं देती है, एमपी-एमएलए की बात कौन करेगा?”
तिंदवारी-फतेहपुर संसदीय क्षेत्र से बसपा सांसद रहे महेंद्र निषाद कहते हैं, “हम अपने नेता पर भरोसा करते हैं, जब उन्हें जरूरत होगी, बुला लेंगी, तब तक आराम कर रहे हैं. अभी नए लोग काम कर रहे हैं, पुरानों की जरूरत नहीं है.”
पूर्ववती मायावती सरकार में कद्दावर मंत्री रहे और एनआरएचएम घोटाले में करीब चार साल तक डासना की जेल में बंद रहे बाबू सिंह कुशवाहा का बसपा प्रमुख मायावती के खिलाफ आग उगलना लाजमी है. अभी हाल ही में अपने स्वयंभू संगठन ‘जन अधिकार मंच’ के बैनर तले बुंदेलखंड की ‘जन संपर्क यात्रा’ के दौरान उन्होंने कई जनसभाओं में आरोप लगाया कि बसपा टिकट बेचने वाली इकलौती पार्टी है.
उनके इस आरोप की पुष्टि एक जिला स्तरीय बसपा नेता हरीराम कबीरवेदी करते हैं. उन्होंने कहा कि वह करीब बीस साल से बसपा के लिए काम कर रहे हैं, इस बार के जिला पंचायत चुनाव में नरैनी क्षेत्र के वार्ड से पहले टिकट दिया गया, बाद में पार्टी फंड न जमा कर पाने का आरोप लगाकर अनुसूचित जाति की एक विशेष कौम के व्यक्ति को मुफ्त में चुनाव लड़ा दिया गया.
असदुद्दीन ओवैसी बसपा के इन असंतुष्टों, निष्कासित और निष्क्रिय नेताओं को अपने पाले में कर पाने में कामयाब रहे तो बुंदेलखंड में राजनीतिक उपेक्षा के शिकार दलित और पिछड़ों के अलावा समाजवादी पार्टी की मौजूदा सरकार में धोखा खाए मुस्लिम वर्ग का एक मजबूत गठबंधन उभरकर सामने आएगा.
इन 19 में से करीब आधा दर्जन दलित व मुस्लिम बहुल सीटें, जैसे बांदा सदर, नरैनी, बबेरू, राठ, महोबा सदर व उरई उनके खाते में जा सकती हैं, साथ ही ‘जय भीम-जय मीम’ का उनका नारा कई राजनीतिक धुरंधरों को धूल में मिलाने में भी सफल हो सकता है.