मर गये सरकारी बैल
दंतेवाड़ा | समाचार डेस्क: छत्तीसगढ़ में कृषि के क्षेत्र में पिछड़े आदिवासी इलाके के गरीब किसानों को कृषि के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए शासन ने बैल बांटे थे, लेकिन अधिकांश सरकारी बैल चार साल में मर गए.
बास्तानार विकासखंड के 18 पंचायतों में भी लगभग 6 सौ जोड़े बैल बांटे गए थे. इनमें से कुछ जोड़े ही जिंदा बचे हैं. नाम नहीं छापने की शर्त पर आयतूपारा के ग्रामीणों ने बताया कि शासन द्वारा प्रदत्त कमजोर बैल कृषि योग्य नहीं थे, इसलिए कई लोग इन बैलों को पशु बाजार में में बेच आए.
वर्ष 2010 -11 में विकासखंड बास्तानार के 18 पंचायतों के किसानों को करीब 12 सौ नग बैलों का नि:शुल्क वितरण किलेपाल और आयतूपारा के मध्य नाला किनारे शासन द्वारा किया गया था. बैल पाकर ईरपा बोदेनार, किलेपाल, आयतूपारा, कोड़ेनार, पालानार, कुम्हारटाडरा, कोलूपारा, बांडापारा, बास्तानार, किसकेपारा, बागमुंडी पनेड़ा आदि गांवों के किसान खुश थे, लेकिन इनकी खुशी ज्यादा दिन नहीं रही.
कांकेर और जगदलपुर के बैल दलालों द्वारा उपलब्ध कराए गए थे और खेती योग्य नहीं थे. कुछ किसानों ने इन्हें सिखाकर कृषि योग्य बनाने की कोशिश भी की, लेकिन बैल कमजोर होने के कारण ये उपयोगी साबित नहीं हुए. महज दो-तीन साल के भीतर ही अधिकांश बैलों की मौत हो गई.
किसके पारा के आयतू, महंगू और बंडा ने बताया कि बाहर से लाए गए बैल इतने कमजोर थे कि पहली बारिश में ही काफी बैलों की मौत हो गई थी. जिन किसानों ने इनके प्रति ज्यादा ध्यान दिया उनके बैल ही बच पाए. जिन्हें सिखाकर वे कृषि कर रहे हैं.
इस संदर्भ में इरपा बोदेनार की जनपद सदस्य प्रिया मुचाकी ने बताया कि किसानों को शासन द्वारा करीब 6 सौ जोड़ी बैल वितरित किए गए थे. मौसम की मार के कारण बैल मर गए हैं. इन्हें बेचे जाने की बात गलत है. बहरहाल जानबूझकर कमजोर बैल दिए जाने का यह मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है.