सबै भूमि बिल्डर की
सबै भूमि गोपाल की अब पुरानी बात हो गई. भूदान के जमाने में बिनोबा भावे ने इस भाव को बहुप्रचारित किया था. छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के बिल्डर संजय बाजपेयी उस समय पैदा नहीं हुये थे. 1966 में पैदा हुये संजय बाजपेयी ने अपने तरीके से इस नारे को प्रचारित किया सबै भूमि बिल्डर की. वह भी सरकारी भूमि, धड़ल्ले से. राजधानी में महान सामाजिक कार्यकर्ता, संस्कृतिकर्मी, पर्यावरणप्रेमी, संगीतकार, फिल्मकार,
धार्मिक और जाने क्या-क्या बन कर संजय बाजपेयी सामने आये और उन्होंने दम ठोंक कर राजधानी में सरकारी जमीनों पर कब्जा करने का काम किया.
पिछले कुछ सालों में संजय बाजपेयी जिस तरह से उभर कर सामने आये और जो कारनामा संजय बाजपेयी ने कर दिखाया, उसे करने में बड़े-बड़े तीसमारखां लोगों को पसीना आ जाये. संजय पर आरोप है कि न्यू स्वागत विहार कालोनी के नाम पर कई एकड़ सरकारी जमीन को प्लाटिंग कर बेच दिया. उस व्यवस्था में जिसमें कागजात दुरस्त होने के बावजूद रजिस्ट्री करवाने में जान निकल जाती है. वकील तथा रजिस्ट्री आफिस के चक्कर लगाते लगाते जूते घिसकर चप्पल बन जाते हैं. ऐसे में संजय बाजपेयी ने सरकारी जमीन को अपना बताकर बेच डाला. उन्हें किसी ने रोका नही.
लेकिन संजय बाजपेयी इस खेल में अकेले होंगे, यह मानना चुटकुले की तरह ही होगा. यह अभी उजागार होना बाकी है कि किस-किस ने इस बहती गंगा में हाथ धोया है. सरकारी अधिकारी-कर्मचारी और बिना किसी राजनीतिक संरक्षण के यह सब कुछ हुआ होगा, यह माना नहीं जा सकता. जब बात राजनीतिक संरक्षण की हो तो फिर यह जांच अपने परवान चढ़ पायेगी, इसमें शंका के बादल अभी से छाये हुये हैं. हकीकत तो ये है कि इस तरह के जांच जब भी ईमानदारी से हुये हैं, कई बड़े चेहरे बेनकाब हुये हैं.
संजय बाजपेयी पर आरोप है कि उन्होंने छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े कालोनी बसाने का सपना दिखाकर लोगो को लूट लिया. कुछ निजी को खरीदा गया फिर सरकारी जमीन सहित उसका ले आऊट बनाया गया. नो आब्जेक्शन सर्टिफिकेट तैयार किया गया. सरकारी दफ्तरो से ही. इसके बाद जोर शोर से विज्ञापन दिये गये. तब जाकर ये जमीने बिक पाई.
लोगों ने अपनी बरसो की जमा पूजी देकर न्यू स्वागत विहार में प्लाट खरीदे. कईयों ने बैंको से कर्ज लेकर प्लाट खरीदा. अब कौन इन्हें इनके पैसे वापस दिलवायेगा. वास्तव में ठगे तो ये ही लोग गये हैं. सरकार तो अपनी जमीन देने से रही. संजय बाजपेयी पर अब कार्यवाही जरूर होगी. कार्यवाही कितनी प्रभावी होगी, यह भविष्य के गर्भ में है. लोगों ने इससे पहले भी कई कार्यवाहियां देखी हैं.
आरोप है कि संजय बाजपेयी के सत्ताधारी दल से संबंध रहें हैं. स्वभाविक है कि उन पर तभी कार्यवाही शुरु हुई जब से उसने सत्ताधारी दल का दामन छोड़ा. कहा जाता है कि संजय बाजपेयी ने सत्ताधारी दल के खिलाफ चुनाव लड़ने का मन बना लिया था. इसी कारण उन पर राज्य सत्ता का कहर टूट पड़ा है. यह भी बताया जा रहा है कि सत्ताधारी दल के एक कद्दावर मंत्री ने संजय बाजपेयी के इस पोजेक्ट में निवेश करना चाहा था. लेकिन संजय ने इंकार कर दिया था. वही मंत्री अब बदला निकाल रहा है. अफवाहें कई हैं लेकिन इन तमाम अफवाहों के बीच का सच ये है कि सैकड़ों लोगों की जीवन भर की कमाई डूबने के कगार पर है.
यह बात को बहुत साफ है कि जब से छत्तीसगढ़ एक नये राज्य के रूप में अस्तित्व में आया है, तब से जो धंधा सबसे ज्यादा चला है वह है जमीन के काम का. राजनेताओं और अफसरों के संरक्षण में रियल स्टेट का धंधा इस कदर बढ़ा कि रातों रात जमीन औऱ मकान की कीमत सौ गुना तक बढ़ गये. लूट की एक ऐसी संस्कृति विकसित होती चली गई, जहां आम आदमी अपनी जमीन और मकान के बारे में सोचना भी बंद कर चुका है.
जाहिर है, संजय बाजपेयी अकेले नहीं हैं, जिन्होंने सरकारी जमीन पर कब्जा किया, लोगों को सपने दिखाये और सपनों को चकनाचूर कर दिया. ईमानदारी से जांच की जाये तो राज्य में ऐसे हजारों मामले सामने आ जाएगे. लेकिन किसी ईमानदार जांच की बात छत्तीसगढ़ में लगभग असंभव है. कभी किसी ने कोशिश की तो उसे किनारे कर दिया गया. संभव है, आने वाले दिनों में संजय बाजपेयी इन आरोपों से मुक्त हो जायें और एक बार फिर से मैदान में हों और मैनेजमेंट के बल पर चल रहा हमारा तंत्र फिर से उनका स्वागत करे.