प्रसंगवश

‘अच्छे दिन’, अभी नहीं…

रायपुर | अन्वेषा गुप्ता: अच्छे दिन की आस जगाकर सत्ता पर आई सरकार का बजट ‘खराब दिन’ का ट्रेलर दिखाता है. आम आनता को अच्छा दिन कैसे नसीब होगा जब बजट से महंगाई बढ़ जाये, आयकर में छूट की सीमा को न बढ़ाया जाये उलट बड़े मगरमच्छों को कॉर्पोरेट टैक्स में छूट देकर एक प्रकार से उन्हें सब्सिडी का एलान कर दिया गया हो. जाहिर है कि सपना जब केवल नौ माह में ही धाराशायी होना शुरु हो गया हो तो जनता को अचंभित तथा आहत हुई है.

शनिवार को खबरिया हिन्दी चैनलों में जिस तरह से लोगों की प्रतिक्रिया दिखाई जा रही थी उससे तो यही आभास होता है की उसे छला गया है. ज्यादातर लोगों ने या कहना चाहिये करीब-करीब सभी लोगों ने सेवा कर को 12 फीसदी से बढ़ाकर 14 फीसदी किये जाने की आलोचना की. आज के जमाने में उद्योग सेवा का दूसरा नाम हो गये है जाहिर है कि इससे जिंसों के दाम बढ़ना निश्चित हैं.

कॉर्पोरेट जगत को उनके करों में 5 फीसदी की कमी करके निवेश जारी रखने के लिये दिलासा दिया गया है. साल 2005-06 से अब तक जो रक़म माफ़ की गई है वो 36.5 लाख करोड़ से ज़्यादा है. यानी सरकार ने 365 खरब रुपए माफ़ किए हैं.

मशहूर लेखक और वरिष्ठ पत्रकार पी साईनाथ ने लिखा है सरकार ने पिछले नौ सालों में कंपनियों को 365 खरब रुपए की टैक्स छूट दी है. इसका एक बड़ा हिस्सा तो हीरे और सोने जैसी चीज़ों पर टैक्स छूट में दिया गया. साईनाथ का कहना है कि सरकार अगर ये रक़म टैक्स छूट में नहीं देती तो इससे लंबे समय तक मनरेगा और सार्वजनिक वितरण प्रणाली का ख़र्च उठाया जा सकता था.

उल्लेखनीय है 2015-16 का कुल बजट ही 17.77 लाख करोड़ रुपयों का है इससे आप कल्पना कर सकते हैं कि पिछल कुछ सालों में उन्हे 36.5 लाख करोड़ रुपयों की माफी देना देश का कितना बड़ा नुकसान करना है. इन पैसों से जन कल्याण के कई काम किये जा सकते थे जैसे मुफ्त शिक्षा, मुफ्त चिकित्सा तथा कृषि पर भारी छूट दिये जा सकते थे.

पिछला नौ साल का बजट मनमोहक सिंह के नाम जाता है परन्तु इस साल का बजट तो ‘सबका साथ, सबका विकास’ का नारा देने वाली सरकार का है. इसलिये जनता ज्यादा आहत है.

मेडिकल बिरादरी बजट को लेकर नाखुश है, क्योंकि स्वास्थ्य बजट में कम से कम 2.5 फीसदी की बढ़ोतरी की उम्मीद की जा रही थी और बीमारियों के आउट ब्रेक, रेयर बीमारियों, ग्रामीण इलाकों में डॉक्टरों की नियुक्ति और आपातकालीन और प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की निशुल्क व्यवस्था को लेकर अलग से बजट आवंटन की आशा की जा रही थी.

इसके साथ ही चिकित्सा बिरादरी स्वास्थ्य क्षेत्र को संसाधन का दर्जा देने की मांग भी कर रहा था. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, आईएमए के अध्यक्ष पद्मश्री डॉ. ए. एम. पिल्लै और महासचिव डॉ के.के. अग्रवाल ने कहा कि स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए सिर्फ 33150 करोड़ का आवंटन काफी नहीं है, इसे हेल्थ फ्रेंडली बजट नहीं कहेंगे.

उल्लेखनीय है कि लोक स्वास्थ्य में पिछले वित्त वर्ष की तुलना में इस बार बजट में 5.7 फीसदी की कमी करने की घोषणा की गई है.

इन तमाम बजटीय शब्दावली के बीच खड़ा देश का आम मतदाता सोच रहा है कि उसके ‘अच्छे दिन’ अभी आने से रहें बहरहाल उसे मनमोहक सिंह के जमाने के ‘खराब दिनों’ में ही जीना पड़ेगा क्योंकि मोदी सरकार का बजट मनमोहक सरकार के बजट का दूसरा पार्ट है.

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