क्या महज़ सांसद रह जाएंगे बृजमोहन अग्रवाल ?
रायपुर | संवाददाता: रायपुर शहर के प्रभात टॉकिज के पास एक नौजवान ने बरसों पहले पंखे की एक दुकान खोली थी. लेकिन उधार और अनुभवहीनता के कारण पंखे की दुकान नहीं चल पाई.
घरवालों ने फिर दबाव बनाया तो उस नौजवान ने लोहे की दुकान खोली. अफ़सोस कि लोहे की दुकान भी नहीं चल पाई.
लेकिन इन सबके बाद, राजनीति के क्षेत्र में उस नौजवान बृजमोहन अग्रवाल ने जो पारी खेली, उसकी कोई दूसरी मिसाल छत्तीसगढ़ में नहीं है.
ये और बात है कि लगभग 40 सालों तक राजनीति में अपना लोहा मनवाने वाले बृजमोहन अग्रवाल के राजनीतिक भविष्य को लेकर, अब सवाल उठने लगे हैं.
33 सालों तक लगातार रायपुर का विधायक और मंत्री रहने वाले बृजमोहन अग्रवाल विधानसभा और मंत्रीमंडल से इस्तीफ़े के बाद अब महज सांसद हैं.
उनके समर्थक भले दावा कर रहे हैं कि उन्हें केंद्र में अच्छी जगह मिलेगी लेकिन कम से कम मंत्रीमंडल में तो अभी कोई गुंजाइश नहीं है.
रही बात भाजपा के भीतर किसी महत्वपूर्ण पद की, तो अध्यक्ष को छोड़ कर लगभग अधिकांश पदों पर छत्तीसगढ़ के ऐसे लोग रह चुके हैं, जिन्होंने बृजमोहन अग्रवाल के बरसों बाद अपना राजनीतिक करियर शुरु किया.
छात्र राजनीति
लगभग 65 की उम्र के बृजमोहन अग्रवाल का परिवार व्यवसाय से जुड़ा रहा है.
कॉमर्स और कला में स्नातकोत्तर और विधि की पढ़ाई करने वाले बृजमोहन अग्रवाल, शुरु से विद्यार्थी परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे और रायपुर के दुर्गा कॉलेज में छात्र संघ के अध्यक्ष भी चुने गए.
उन्हें कॉलेज के दिनों से जानने वाले एक सामाजिक कार्यकर्ता कहते हैं-“पढ़ाई छोड़ कर मोहन सब कुछ करते थे. स्कूल में एक बार ट्यूशन नहीं पढ़ने के कारण फेल कर देने पर धरना देने वाले बृजमोहन कॉलेज में पहुंच कर स्थाई प्रदर्शनकारी बन गए. कॉलेज प्रबंधन परेशान हो गया था. यही कारण है कि उन्हें कॉलेज में प्रतिबंधित कर दिया गया. इसके बाद उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए भिलाई के कल्याण कॉलेज में दाखिला लेना पड़ा.”
पढ़ाई के दौरान ही बृजमोहन अग्रवाल, भारतीय जनता पार्टी के युवा मोर्चा में सक्रिय हो गए और उन्हें 1986 में प्रदेश मंत्री और 1988 में प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया गया.
लेकिन 1988 में अर्जुन सिंह को काला झंडा दिखाने की घटना ने उन्हें चर्चा में ला दिया.
किस्सा अर्जुन सिंह का
छत्तीसगढ़ तब मध्यप्रदेश का हिस्सा था.
तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह रायपुर आने वाले थे और भाजपा ने मुख्यमंत्री के विरोध की घोषणा की थी.
लेकिन अधिकांश भाजपा नेताओं को पुलिस ने नज़रबंद कर लिया था या उन्हें हिरासत में ले लिया था.
अर्जुन सिंह एक खुली जीप में सवार होकर रायपुर के मालवीय रोड से गुजर रहे थे, उसी समय कोतवाली चौक के पास बृजमोहन अग्रवाल ने काला कपड़ा अर्जुन सिंह की तरफ़ फेंका, जो सीधे अर्जुन सिंह को लगा.
पुलिस ने बृजमोहन अग्रवाल और उनके साथियों पर लाठीचार्ज किया और फिर बृजमोहन अग्रवाल को गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया गया.
जेल से बाहर निकले बृजमोहन अग्रवाल ने रायपुर से लेकर सरगुजा तक के दौरे शुरु किए और दो साल बाद पार्टी ने जब उन्हें रायपुर से टिकट दी तो उन्होंने कांग्रेस के दस सालों से विधायक स्वरूपचंद जैन को हरा कर, हमेशा के लिए रायपुर की राजनीति बदल कर रख दी.
तब रायपुर आज की तरह चार के बजाय दो विधानसभा क्षेत्रों में बंटा था- रायपुर शहर और रायपुर ग्रामीण.
1990 में रायपुर शहर से बृजमोहन अग्रवाल ने जीत दर्ज की और पहली ही बार में उन्हें मध्यप्रदेश सरकार में राज्य मंत्री बनाया गया.
फिर तो बृजमोहन अग्रवाल ने कभी पलट कर नहीं देखा.
वे 33 सालों तक और आठ बार रायपुर के विधायक चुने गए और मप्र के बाद छत्तीसगढ़ में भी वे भाजपा सरकार में सबसे ताक़तवर मंत्री बने रहे.
जब नरेंद्र मोदी को छुपना पड़ा
अलग राज्य बनने के बाद भाजपा के सबसे ताकतवर नेता के तौर पर उभरे बृजमोहन अग्रवाल मान कर चल रहे थे कि सबसे बड़े विपक्षी दल का नेता उन्हें ही चुना जाएगा.
13 दिसंबर 2000 को भाजपा के रजबंधा मैदान स्थित कार्यालय में नेता प्रतिपक्ष के चयन के लिए भाजपा के केंद्रीय पर्यवेक्षक नरेंद्र मोदी आए हुए थे.
अंदर कमरे में बैठक चल रही थी और बाहर बृजमोहन अग्रवाल के समर्थक जश्न की तैयारी में जुटे हुए थे.
लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ने संगठन के कद्दावर नेता लखीराम अग्रवाल के साथ मिल कर तय किया कि आदिवासी नेता नंद कुमार साय को नेता प्रतिपक्ष चुना जाए.
नंद कुमार साय के नाम का प्रस्ताव बृजमोहन अग्रवाल से ही पेश करवाया गया.
अंदर से बृजमोहन अग्रवाल के विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष नहीं चुने जाने की ख़बर आई, बृजमोहन अग्रवाल के समर्थक बेकाबू हो गए.
भाजपा कार्यालय में तोड़फोड़ शुरु हो गई, आग लगा दी गई.
भीड़ इतनी बेकाबू थी कि नरेंद्र मोदी समेत दूसरे नेताओं को भीड़ से डर कर कमरे में छुपना पड़ा.
इस घटना के बाद बृजमोहन अग्रवाल को पार्टी से निलंबित कर दिया गया.
लेकिन पार्टी की मजबूरी थी कि बृजमोहन अग्रवाल का यह निलंबन लंबा नहीं चल सका और बृजमोहन अग्रवाल फिर से पार्टी में लौट आए.
बाद के दिनों में कई-कई बार उनका नाम मुख्यमंत्री के तौर पर राजनीतिक गलियारे में आता-जाता रहा.
और लोकसभा की टिकट..
ताज़ा चुनाव में जब उन्हें लोकसभा की टिकट दी गई तो लोग चौंक गए.
यह तो तय था कि बृजमोहन अग्रवाल चुनाव जीत जाएंगे लेकिन उन्हें राज्य से हटा कर केंद्र की राजनीति का हासिल क्या होगा?
उनके समर्थक चाहते थे कि वे राज्य की राजनीति में ही रहें लेकिन उनके सामने भारी मतों से चुनाव जीतने की चुनौती भी थी.
वे चुनीव भी जीत गए और देश के उन 10 लोगों में शुमार हो गये, जिन्होंने सर्वाधिक मतों के अंतर से चुनाव जीता.
अटकलें शुरु हुईं कि उन्हें केंद्र में मंत्री बनाया जाएगा.
लेकिन छत्तीसगढ़ में पहली बार के सांसद तोखन साहू को राज्यमंत्री बना कर, बृजमोहन अग्रवाल को किनारे कर दिया गया.
गुपचुप बात करने वाले इस किनारे करने की राजनीति को, 13 दिसंबर 2000 की तारीख़ से भी जोड़ते हैं.
यारों का यार जैसी छवि
राजनीति में कोई अजातशत्रु नहीं होता लेकिन बृजमोहन अग्रवाल की छवि यारों के यार जैसी है.
राजनीतिक दल कोई भी हो, हर जगह उनके मित्र मौजूद हैं.
बृजमोहन अग्रवाल और ऐसे मित्रों के बीच के रिश्तों की थाह पाना आसान नहीं है लेकिन जानने वाले कहते हैं कि बृजमोहन अग्रवाल अपने इन मित्रों की हरसंभव मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं.
यही हाल बृजमोहन अग्रवाल के मित्रों का है. हालांकि राजनीति में दावं-पेंच भी इन सबके बीच चलते रहते हैं.
कांग्रेस सरकार में तो पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और बृजमोहन अग्रवाल की गहरी दोस्ती राजनीतिक गलियारे में चर्चा का विषय रहा है.
रायपुर में कहा जाता है कि दोस्ती की क़ीमत पर राजनीति करने से बृजमोहन अग्रवाल हमेशा बचते रहे हैं. लेकिन इसका नुकसान कुछ नहीं होता. दोस्ती भी बनी रहती है और राजनीति भी चलती रहती है.
यही कारण है कि भ्रष्टाचार के आरोप, जांच और रिपोर्टों के बाद भी बृजमोहन अग्रवाल के ख़िलाफ़ आज तक कभी कोई कार्रवाई नही हुई.
हालांकि एक बड़ा वर्ग तो यही मान कर चलता है कि पार्टी के भीतर के नेता ही बृजमोहन अग्रवाल ऐसे आरोपों की चक्करघिन्नी में उलझाने की कोशिश करते रहे हैं.
कहा जाता है कि वे राज्य में सर्वाधिक सुलभ उपलब्ध नेता हैं.
जनता के लिए उनकी सहज उपलब्धता का एक बड़ा प्रमाण तो यही है कि उनके घर का मुख्य द्वार हमेशा खुला रहता है और उनके बंगले पर सुबह से देर रात तक लोगों की भीड़ एकत्र रहती है.
शहर के अधिकांश पुरानी पान दुकान वाले जानते हैं कि ‘बिरजू भैया’, ‘मोहन भैया’ के पान में क्या-क्या डालना है. पुराने दोस्तों के साथ, रात की सड़क पर गप्पबाजी का दौर पिछले कई सालों से लगातार जारी है.
उनके निर्वाचन क्षेत्र में शादी-ब्याह और सुख-दुख के आयोजन में किसी ने भी उन्हें आमंत्रित किया है तो वो अनिवार्य रुप से उसमें शामिल होने की कोशिश करते हैं.
लेकिन यह सब अब अतीत की बातें हैं.
आगे क्या
चार दशकों तक रायपुर की राजनीति के केंद्र रहे बृजमोहन अग्रवाल के विधानसभा और मंत्रीमंडल के इस्तीफ़े के साथ ही यह बात तो तय हो गई कि अब छत्तीसगढ़ विधानसभा की राजनीति से उनका रिश्ता टूट चुका है.
हालांकि उन्होंने एक कोशिश तो ये की थी कि उनका मंत्री पद कम से कम अगले छह महीने तक बरकरार रहे.
अपने बयानों में भी उन्होंने इसे साफ-साफ कहा था लेकिन विधानसभा के इस्तीफ़ा देने के अगले ही दिन उन्हें मंत्री पद से भी इस्तीफ़ा देना पड़ा.
दूर की कौड़ी लाने वाले कह रहे हैं कि हो सकता है कि रमन सिंह की तरह किसी दिन बृजमोहन अग्रवाल को भी केंद्र से राज्य का मुख्यमंत्री बनने के लिए भेज दिया जाए.
कुछ लोगों की राय है कि केंद्र में सवर्ण नेताओं की कमी को पूरा करने के लिए बृजमोहन अग्रवाल जैसे नेता को सांसद बनाया गया है. लेकिन सवाल यही है कि एक सांसद भर की हैसियत, क्या विधायक और मंत्री बृजमोहन के क़द से बढ़ कर है? वह भी तब, जब मोदी शासनकाल में किसी मंत्री तक की नहीं चलती !
एक तर्क उन्हें पार्टी में बड़ा पद दिए जाने का है, जिसकी चर्चा हम ऊपर कर चुके हैं. बृजमोहन अग्रवाल को पार्टी का अध्यक्ष बनाया जाएगा, केवल यही एक बात है, जो सच हो तो बृजमोहन अग्रवाल का राज्य की राजनीति से हट कर, केंद्र की राजनीति में पहुंचने को उपलब्धि के तौर पर देखा जा सकता है.
राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं होता. कम से कम मोदी-शाह की राजनीति में तो बिल्कुल भी नहीं होता.
लेकिन ऐसा नहीं हुआ तो विधायक-मंत्री से सांसद बनना, बृजमोहन अग्रवाल के लिए घाटे का सौदा साबित होगा, जिसकी आशंका पहले दिन से व्यक्त की जा रही है.
यह अनायास नहीं है कि लोग, बृजमोहन अग्रवाल के पंखे और लोहे की दुकान के घाटे वाले धंधे को याद कर रहे हैं.