स्तन कैंसर को समर्पित अक्टूबर
रायपुर | सुदेशना रुहान: 1985 के मध्य की बात है. ख़बर आई कि अक्टूबर का पूरा महीना अमरीका में स्तन कैंसर जागरूकता माह के रूप में मनाया जायेगा. इसे अमेरिकन कैंसर सोसायटी और इम्पीरियल केमिकल इंडस्ट्रीज की साझेदारी के तहत शुरू किया जाना था.
इम्पीरियल इंडस्ट्रीज एक ब्रिटिश कंपनी थी, जो उन दिनों कीमोथेरेपी में उपयोग होने वाली दवा ‘टमोक्सिफ़ेन’ का निर्माण कर रही थी. दोनों समूहों का उद्देश्य महिला कैंसर के प्रति जागरूकता बढ़ाना और मैमोग्राफी को शुरुआती जांच में बढ़ावा देना था.
साल 1992 के आते तक गुलाबी रिबन स्तन कैंसर जागरूकता का प्रतीक बन गया.
इसे व्यापक पहचान तब मिली जब एस्टे लॉडर नामक फ्रेंच कंपनी ने अपने कॉस्मेटिक काउंटरों पर ‘पिंक रिबन’ बांटना शुरू किया, ताकि इस कैंसर के बारे में लोगों की जागरूकता बढ़ाई जा सके. आगे चलकर संयुक्त राष्ट्र ने इसे आधिकारिक रूप से अपनाया और पूरी दुनिया में अक्टूबर महीना स्तन कैंसर जागरूकता माह के रूप में मनाया जाने लगा.
दशा, दिशा और भारत
आज दुनिया के ज़्यादातर देश इस मुहीम में शामिल हैं, लेकिन हर देश और समाज की चुनौतियाँ थोड़ी अलग हैं.
भारत में हर 4 मिनट में एक महिला को स्तन कैंसर का पता चलता है. देश में सभी कैंसर मरीज़ों की संख्या में 13.5% हिस्सेदारी स्तन कैंसर रोगियों की है.
कैंसर के कारण होने वाली मृत्यु में स्तन कैंसर से जुड़े मामले 10.6 फ़ीसदी है.
छत्तीसगढ़ में पिछले दस सालों में स्तन कैंसर से होने वाली मौत की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है. राज्य में 2014 में स्तन कैंसर से 1,358 मौतें हुई थीं, वहीं 2023 में यह संख्या बढ़कर 1,717 हो गई, जो लगभग 26% की वृद्धि को दर्शाता है.
व्यापकता के मामले में भी इसमें 50% तक की वृद्धि देखी जा रही है.
शोध बताते हैं कि पश्चिमी देशों की तुलना में भारतीय महिलाओं में अब यह कम उम्र में ही होने लगा है. 1990 में भारत में सर्विकल कैंसर (गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर) सबसे आम था, उसके बाद था स्तन कैंसर. लेकिन साल 2000-2003 के बीच स्थिति बदल गई और तब से ब्रेस्ट कैंसर ने अधिकतर कैंसर रजिस्ट्री संस्थानों में सर्विकल कैंसर को पीछे छोड़ दिया.
नए शोध और आविष्कार
हालिया वर्षों में स्तन कैंसर के इलाज में कई ज़रूरी परिवर्तन हुए हैं. पहले, इलाज के लिए मुख्य रूप से मास्टेक्टॉमी (स्तन हटाना) और उसके बाद कीमोथेरेपी का उपयोग किया जाता था. वर्तमान में, सर्जरी और रेडिएशन थेरेपी की मदद से सिर्फ ट्यूमर को निशाना बनाया जा रहा है. साथ में ऐसी सुलभ कीमोथेरपी दी जा रही है, जिससे शरीर में होने वाले दुष्प्रभाव कम और अस्थायी हो.
ब्रेस्ट कैंसर के रेडिएशन उपचार में 2D से 3D कंफॉर्मल रेडियोथेरेपी और एक्सेलरेटेड पार्शियल ब्रेस्ट इर्रेडिएशन तक की प्रगति हुई है. इसका उद्देश्य सामान्य ऊतकों पर होने वाले दुष्प्रभाव को कम करना और पूरे इलाज के समय को घटाना है.
सर्जरी के क्षेत्र में भी ज़रूरी बदलाव की वजह से ब्रेस्ट कंज़र्वेशन थेरेपी और ऑनकोप्लास्टिक सर्जरी तक का विकास हुआ है. ऑनकोप्लास्टिक ब्रेस्ट सर्जरी आर्थिक रूप से किफायती है और कम संसाधन वाले देशों, जैसे कि भारत, के लिए उपयुक्त है.
कैंसर की दवाइयां और आम आदमी की दुश्वारियां
भारत में स्तन कैंसर के उपचार के बाजार का आकार 2022 में लगभग $331 मिलियन था और इसके 2030 तक 15.9% की सालाना बढ़त के साथ $1,078 मिलियन तक पहुंचने का अनुमान है. 2024 में भारत में ऑन्कोलॉजी दवाओं के लिए अनुमानित राजस्व US$1.83 बिलियन है.
साल 2023 में टार्गेटेड थेरेपी सबसे ज़्यादा राजस्व उत्पन्न करने वाली थेरेपी थी. मगर फिर भी मध्यम और निम्न मध्यम वर्गीय रोगियों के लिए यह इलाज लेना इतना सरल नहीं. यह एक बड़ा कारण है कि बार-बार आग्रह करने के बाद भी दूर दराज़ से आयी महिलाएं कीमोथेरेपी कोर्स पूरा करने के लिए नहीं लौटती हैं.
कम आय वाले घरों के आधे से ज़्यादा लोग ब्रेस्ट कैंसर के इलाज पर अपने वार्षिक घरेलू खर्च का 20% से अधिक खर्च कर देते हैं, जिसका असर उनकी घरेलू बजट पर पड़ता है. 2018 में भारत में कैंसर के इलाज के लिए तीन सार्वजनिक बीमा योजनाओं का एक विश्लेषण किया गया था, जिसमें पाया गया कि रिअम्बरसमेंट (प्रतिपूर्ति) के लिए चयनित इलाज में फ़र्क है. आमतौर पर रिइम्बर्समेंट की राशि कुल कीमोथेरेपी लागत के लिए अपर्याप्त थी, जिससे ब्रेस्ट कैंसर के इलाज के लिए औसत बजट में 43% तक की कमी हो गई.
समय पर जांच, मगर कहाँ?
कैंसर में प्रारंभिक अवस्था की जांच, जीवन और उसकी गुणवत्ता बनाए रखने के लिए सबसे मुफ़ीद है. लेकिन समय पर जांच तब संभव है जब स्वास्थ्य सुविधाएँ मरीज़ के 10 किलोमीटर के दायरे में हों. यानि उसके प्राथमिक उपचार केंद्र में.
लेकिन स्तन और गर्भाशय ग्रीवा की समस्याओं में ऐसा नहीं है.
छत्तीसगढ़ के 837 प्राथमिक उपचार केंद्रों में अधिकतर में महिलाओं की शुरुआती जांच की सुविधाएँ नहीं हैं. उन्हें ज़िला अस्पताल के महिला विभाग में जाने की सलाह दी जाती है. लेकिन अधिकतर सरकारी महिला रोग विभाग, इतने अधिक कार्य बोझ से दबे होते हैं कि जांच के लिए कई दिनों का समय लग जाता है. प्रारंभिक अवस्था में हतोत्साहित होने पर महिलाएं ऐसे स्वास्थ्य सेवाओं से परहेज़ करने लगती हैं.
देरी और जोखिम
प्राथमिक उपचार केंद्रों में मूल जांच और अन्य सुविधाओं का न होना, स्तन कैंसर की अवस्था को तेज़ी से अगले चरणों में ले जाता है. मरीज़ की हालत बिगड़ने लगती है. औसतन, 23% मरीजों में निदान और उपचार में 12 हफ्ते से ज्यादा की देरी होती है. अध्ययन बताते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में औसत 80 दिन और शहरी क्षेत्रों में 66 दिन की देरी होती ही है.
इसका सीधा असर उपचार के परिणाम पर पड़ता है. इसकी वजह से प्रथम चरण में इलाज के बजाय 60% भारतीय महिलाएं तृतीय और चौथे चरण के कैंसर के साथ डॉक्टर के पास पहुँच पाती हैं.
जागरूकता, जांच और उल्टी सड़क
स्तन कैंसर के मामले पिछले दो दशक में तेजी से बढ़े हैं. इसकी रोकथाम के लिए अगर सामाजिक जागरूकता ज़रूरी है, तो शासकीय और प्रशासनिक प्रतिबद्धता और भी ज़रूरी.
स्वास्थ्य सुविधाओं को प्राथमिक उपचार केंद्र और जांच सुविधाओं को प्राथमिक स्वास्थ्य कर्मियों तक लेकर आना होगा. गाँव से शहर नहीं, वरन शहर से गाँव तक स्वास्थ्य सुविधा पहुंचे, इसे भी राज्य स्तर पर सुनिश्चित करने की ज़रूरत है.
इसके बग़ैर किसी भी जागरूकता अभियान और कैंसर स्क्रीनिंग कार्यक्रम की सफलता की उम्मीद बेमानी होगी.