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ब्रा, बूब्स, हेमांगी, नानगेली, बेला और इतर महिलाएं

शताली शेडमाके | फेसबुक
महिलाएं क्या पहनें क्या न पहनें इसका निर्णय हमेशा समाज के लोग ही लेते हैं. सबसे ज्यादा महिलाएं ही एक दूसरे के पहनावे को लेकर कई बातें करती है, नियम बनाती हैं. जब हम लोकतांत्रिक समाज की बात करते हैं तो व्यक्ति स्वतंत्रता के हिसाब से सबको अपनी तरह से जीने का, व्यक्त होने का अधिकार हैं.

हालांकि यह बातें सिर्फ लिखी हुई, या सुनने सुनाने में अच्छी लगती हैं, जब इसको वास्तविकता में लाने की बात हो तो लोग चेहरे बनाने लग जाते हैं.

महाराष्ट्र में पिछले 2-3 दिनों से ‘ब्रा, बूब्स आणि बाई’ इस टॉपिक पर बहस छिड़ी हुई है. ब्रा पहने या न पहनें, कैसे पहने पब्लिक प्लेस में बिना ब्रा के नहीं जाओ या वो कहीं से भी न दिखे, इसका ध्यान दो, इन बातों पर चर्चाएं हो रही हैं.

मराठी अभिनेत्री ‘हेमांगी कवि’ की एक फेसबुक पोस्ट के बाद इस टॉपिक पर बात रखनेवालों की बाढ़ आ गयी हैं. अख़बार में बड़े बड़े लेख लिखे गए, tv, सोशल मीडिया पर दिन-रात चर्चा हुई और हो रही है. कुछ लोग सपोर्ट कर रहे हैं, कुछ हेमांगी को ट्रोल करने में लगे हैं तो कुछ memes बनाकर मजे ले रहे हैं. पर ‘ब्रा’ पहनने का मुद्दा इतना गंभीर क्यो हैं? उसको सेक्सुअलिटी की नज़रों से ही क्यों देखा जाता है?

ब्रा के इतिहास की बात करें तो 16 वीं सदी की शुरुआत में फ्रांस में महिलाओं के लिए कॉर्सेट (corset) बनाया गया. महिलाओं को सुंदर और फिट फिगर दिखाने के लिए इस कॉर्सेट को पहनाते वक़्त उसमें लगी बेल्ट या डोरी से खूब कसते थे.

इसी कॉर्सेट को बाद में दो हिस्से में करके corselet gorge नाम से बेचा जाने लगा. ऊपर के हिस्से को strap और कमर को कवर करनेवाले हिस्से को corset for waists कहकर बेचा जाने लगा.

यह दोनों चीजें शुरुआत में एक सेट की तरह बेची जाते थे. 19 वीं सदी की शुरुआत में यह दो हिस्से अलग-अलग बेचे जाने लगे. और कॉर्सेट के ऊपरी हिस्से को ब्रा की पहचान मिली. उस दौर में कॉर्सेट पहनकर भले ही महिला फिट और खूबसूरत दिखती हो लेकिन उसे पहनना किसी सजा से कम नहीं था.

19 वीं सदी में केरल राज्य में कथित लोअर कास्ट की महिलाओं को स्तन ढकने के लिए टैक्स चुकाना पड़ता था. उसे ‘ब्रेस्ट टैक्स’ कहते थे. इसी ब्रेस्ट टैक्स के खिलाफ केरल में एक बहुत बड़ा आंदोलन हुआ. केरल की nangeli नामक एक दलित महिला ने ‘ब्रेस्ट टैक्स’ के खिलाफ आंदोलन किया था. उस वक्त स्तन ढकने पर टैक्स लगाया जाता था, सिर्फ ऊंचे घर की महिलाओं को अपने स्तन ढकने का अधिकार था.

नानगेली ने अपने स्तन ढके तो ब्रिटिश अधिकारी ने उस पर टैक्स लगाया लेकिन नानगेली ने अपने स्तन ढके रखा और ‘टैक्स भी नहीं भरूँगी’ पर कायम रही.

जब उस अधिकारी को यह बात पता चली तो वह उससे टैक्स वसूलने के लिए गया मगर नानगेली ने टैक्स भरने से मना कर दिया. अब बात आपे से बाहर हो रही थी, ब्रिटिश अधिकारी के सामने एक दलित महिला अपने अधिकारों के लिए लड़े, ये उनसे बर्दाश्त कहा हो !

अधिकारी अड़ गया तो नानगेली ने टैक्स नहीं भरा पर अपने दोनों स्तन काटकर उस अधिकारी के सामने रख दिये. खून के अतिरिक्त रिसाव के कारण नानगेली की मृत्यू हो गयी.

ब्रिटिश इस घटना से सकते में आ गए और उन्होंने ‘ब्रेस्ट टैक्स’ यानी स्तन ढकने पर लगने वाले टैक्स को रद्द कर दिया. बहादुर नानगेली अपने अधिकारों के लिए शहीद हो गयी और केरल के मलचिपुरम का नाम ‘लैंड ऑफ द वुमन विथ ब्रेस्ट्स’ के नाम से इतिहास में अजर अमर हो गया.

आज के दौर की बात करें तो अभी दो दिन पहले ही सम्पन्न हुए इंटरनेशनल कान्स फ़िल्म फेस्टिवल 2021 में supermodel Bella Hadid का पहना हुआ गाउन और नेकलेस खूब चर्चा में रहा. उसकी एक फोटो इस पोस्ट के साथ साझा की है.

Bella Hadid
Bella Hadid

ध्यान से देखिए, बेला ने इस पहनावे के माध्यम से क्या संदेश दिया है और खुद ही सोचें कि मांसपेशियों से बने शरीर के एक महत्वपूर्ण हिस्से को हम जबरदस्ती से फिटिंग में ढालने की कोशिशें करते हैं.

टाइट फिटिंग्स की ब्रा स्तनों में होनेवाले निरंतर रक्तप्रवाह में बाधा डालने का भी काम करती हैं. साथ ही गर्मी पसीने से होने वाले रैशेस, इचिंग से और परेशानी होती है. इसके बावजूद हम ब्रा को अपने शरीर पर जुल्म कर ढोती हैं.

कुछ लोगों को बेला का गाउन और नेकलेस गंदा या परंपरा, संस्कृति के खिलाफ लगे, पर मुझे बेला के पहनावे में खूबसूरती और सादगी के साथ ही अपने स्वस्थ शरीर को लेकर एक पॉजिटिव थॉट भी नजर आ रहा है. नानगेली, बेला और हेमांगी तीनों ही अलग अलग दौर की सशक्त महिलाएं हैं.

एक जो अपने स्तन ढकने के अधिकार को लेकर लड़ी तो वही बाकी दो अपने शरीर को लेकर सजगता का संदेश दे रही हैं. तीनों का खुद को व्यक्त करने का अंदाज़ बेहद अलग हैं पर भावना एक ही है. यह तीनों अलग अलग सदी में होकर भी, अपने शरीर की आज़ादी को लेकर अपनी बात रखते हुए दिख रही हैं.

हमारे आदिम समुदायों में पुराने समय की महिलाओं के बारे में सुनते हैं, तस्वीरे देखते हैं तब पता चलता है कि वे लोग स्तन नहीं ढकती थी, इसके बावजूद कभी उनके खुले स्तनों को लेकर वासना की नजरों से नही देखा गया.

जैसे पुरुष जरूरत के हिसाब से खुद को ढकते थे, महिलाएं भी जरूरत के हिसाब से अपने को ढकती थीं. यह बात स्त्री-पुरुष नजरिये से देखें तो इतनी कॉमन थी कि वासना के लिए कोई जगह नहीं थी.

हमारी दाई, डोकरी लोग बिना स्तन ढके आराम से अपने काम-काज करती थी. उनके खुले स्तनों को कभी वल्गर या नीची नजरों से नहीं देखा गया. जैसे पुरुष घूम सकते थे, महिलाओं को भी समान अधिकार थे. महिला-पुरुष समानता का यह एक बेहतरीन उदाहरण हैं कि जिसको जैसे जीना है जीने दो. स्तन मानवी शरीर का हिस्सा है, उसे उसी की तरह देखेंगे तो vulgarity नहीं नजर आएगी. नीचता, वासना या कमी हमारी नजरों में है, दिखाई देनेवाले स्तनों में नहीं.

आज मार्केट में अलग-अलग varity, फिटिंग्स की ब्रा आपको देखने मिलेंगी. उसकी ads में ब्रा कितनी कंफरटेबल है, आपके स्तनों को फिट रखती है, वगैरह वगैरह दिखाया जाएगा. पर फैशन के नाम पर अपनी बॉडी के साथ जुल्म करना कहां तक सही है?

जब आप 24 घंटों में से 18-19 घंटे रोज़ ब्रा पहनकर रहते हैं, उसके बाद सोते वक्त किसी अहसान की तरह ब्रा खोलकर चैन की सांस लेती हैं तो उस वक़्त की खुशी और आराम को बयां करने के लिए आपके पास शब्द नहीं होंगे या शब्द कम पड़ जाएंगे.

मुझे ब्रा पहनने से इनकार नहीं और न मैं इसके खिलाफ हूं. बस मेरा शरीर है तो उसके लिए क्या सही क्या गलत, यह चुनने की आज़ादी भी मुझे मिलनी चाहिए.

मेरे हिसाब से, स्तन जो आपके शरीर का हिस्सा है और उसे ढकने की जरूरत है न कि फैशन के नाम पर जबरदस्ती ‘ब्रा’ नाम की जेल में कैद करने की…

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