खबरों के प्रसार का शास्त्र और लदाख में बौद्ध बनाम मुस्लिम
अभिषेक श्रीवास्तव | फेसबुक पर
खबरों के प्रसार का शास्त्र अजीब है।मैं हफ्ते भर लदाख में हज़ारों किलोमीटर घूमते हुए दर्जनों किस्म के लोगों से मिला लेकिन किसी को इस बात की खबर नहीं थी कि दिल्ली एक पत्रकार की हत्या पर उबल रही है। वहां सोशल मीडिया से जुड़े लोगों का नेटवर्क ऐसा है कि उसमें ऐसी खबर का प्रवेश ही नहीं हो पाता। फिर मैंने जानने की कोशिश की कि सामाजिक रूप से सक्रिय दिल्लीवासियों के नेटवर्क में क्या कहीं लेह बंद की खबर है। यहां भी निराश होना पड़ा।
आइए, गौरी लंकेश की राष्ट्रीय खबर के बरक्स लेह की स्थानीय खबर को एक बार देखें। जम्मू में एक कारगिल निवासी मुसलमान लड़के ने एक बौद्ध लड़की से प्रेम कर लिया। दोनों भाग गए। इस घटना के खिलाफ लेह शहर 8-9 सितंबर को बंद रहा। उस दौरान मैं तुरतुक से पैंगोंग के रास्ते में था। लौटकर 9 को पता चला कि 14 तारीख का अल्टीमेटम लेह में काम करने वाले कारगिल वासी मुसलमानों को दिया गया है कि वे शहर छोड़ कर चले जाएं। स्थानीय बौद्ध निवासियों ने 14 को लेह चलो का नारा दिया है।
लदाख में बौद्ध बनाम मुस्लिम की फांक पड़ चुकी है। बौद्धों में भयंकर असुरक्षा है कि उनकी आबादी कम हो रही है और कारगिल के मुसलमान उनके रोजगार हथिया कर संख्या और संसाधन में बढ़ते जा रहे हैं। बीजेपी इस भावना पर खेल रही है। एक स्थानीय सज्जन किसी समझौते का हवाला देते हैं जो लदाखी बौद्धों और कारगिल के मुसलमानों के बीच 1948 में हुआ था जिसके मुताबिक दोनों के बीच बेटी का रिश्ता वर्जित था।
बीते तीन-चार साल में मुस्लिम लड़के और बौद्ध लड़की के बीच प्रेम की ऐसी कुछ घटनाएं सामने आई हैं। आज लेह में लोगों की ज़बान पर इसके लिए एक शब्द आम हो चला है- लव जिहाद। उनके मन में इस बात को भर दिया गया है कि कारगिल का मुसलमान बौद्ध लड़की से प्यार करे तो उसे लव जिहाद कहते हैं। जिन्हें रोहिंग्या मुसलमानों की फ़िक्र है, उन्हें लेह के इस टाइम बम की टिकटिकाती घड़ी को सुनना चाहिए।
कुछ हत्याएं हो चुकी हैं। कुछ नरसंहार होने के इंतज़ार में हैं। दोनों का टारगेट ऑडियंस एक-दूसरे से बेख़बर और बेपरवाह है। एक पत्रकार होने के नाते मैं केवल दोनों तरफ़ आगाह कर सकता हूं। सूचना प्रसार में ऐसे असंतुलन का इलाज क्या होगा, मैं नहीं जानता।