कालेधन पर मन काला क्यों?
जेके कर
कालेधन को लेकर ‘स्वच्छ भारत’ की तरह साफ-सफाई की आवश्यकता है. कालेमन से कालेधन को उजागार नहीं किया जा सकता है. पिछले दिनों सर्वोच्य न्यायालय में केन्द्र सरकार की ओर से महान्यायवादी ने पक्ष रखते हुए बताया था कि विदेशों के संधि होने के कारण कालेधन को विदेशी बैंकों में ऱखने वालों के नाम सार्वजनिक नहीं किये जा सकते हैं. जाहिर है कि इससे जनता में रोष फैल गया.
काला धन के नाम पर कांग्रेस की लानत-मलामत करने वाली भाजपा का यह रुख जनता के लिये चकित करने वाला था. आखिर सत्ता की कुर्सी संभालने में काला धन ही तो भाजपा और रामदेव बाबा से लेकर श्रीश्री रविशंकर तक के लिये सबसे बड़ा अस्त्र था. ऐसे में भाजपा सरकार के ताज़ा रुख से जनता में जब नाराजगी नज़र आई तो शाम को वित्तमंत्री अरूण जेटली ने डैमेज कंट्रोल के तहत साफ किया कि विदेशी बेंकों में काला धन रखने वाले भारतीयों के नाम सरकार को बताया जा रहा है परन्तु उसे उजागार नहीं किया जा सकता. हां, अदालती प्रक्रिया के दौरान इन नामों को सार्वजनिक किया जा सकेगा.
विदेशी बैंको में जमा काले धन से तात्पर्य है कि जिस रकम को आयकर से बचाना है उसे भारत के बाहर के बैंकों में जमा करवा दिया जाये. इस बात की पूरी आशंका है कि इन धनों को अवैध तरीकों से कमाया गया है अर्थात् भ्रष्ट्राचार इसके मूल में है. काले धन को लेकर सबसे बड़ी मुहिम समाजसेवी अन्ना हजारे से शुरु की थी जिसे व्यापक जनसमर्थन मिला. देश की जनता भी चाहती है कि विदेशों में जमा भारत के कालेधन को वापस लाया जाये.
गौरतलब है कि भाजपा ने अपने चुनाव प्रचार में देश की जनता से वादा किया था कि सत्ता में आने पर इन कालेधन को वापस लाकर देश के विकास में लगाया जायेगा. बेशक, मोदी सरकार ने इसके लिये टास्क फोर्स का गठन किया है. जनता विदेशों से संधियों तथा कानून के पचड़े में पड़ने के बजाये चाहती है कि कालेधन को देश में वापस लाया जाये. खबरों के अनुसार, केंद्र सरकार अगले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट में विदेशों में कालाधन जमा करने वालों के नाम उजागर करने जा रही है.
सूत्रों के मुताबिक, सरकार के पास ऐसे खाताधारकों के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं जिन्होंने देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाकर स्विस बैंक में बड़ी धनराशि जमा कर रखी है. सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक, अगले सोमवार सरकार की ओर से सप्लीमेंट्री एफीडेविट फाइल करेगी, जिसमें खाताधारकों के नामों की लिस्ट बंद लिफाफे में प्रस्तुत की जाएगी. इसके बाद कोर्ट आगे की सुनवाई करेगा.
कालेधन को लेकर वित्तमंत्री ने कांग्रेस पर कटाक्ष भी किया है. इन सब के बीच यह स्पष्टता रखनी चाहिये कि काला धन केवल राजनीतिज्ञयों की बपौती नहीं है. निश्चित तौर पर इसमें कारोबारियों के अकूत कालेधन भी शामिल होंगे. यह कैसा संभव है कि राजनीतिज्ञयों को कथित तौर पर धन देने वाले कारोबारी स्वंय अपने सारे धन को सफेद करके रखें हुए हैं. वास्तव में कालेधन को गोपनीय रखकर स्विटजरलैंड ने अपने देश के बैंकों को इस बात के लिये बढ़ावा दिया है कि कालेधन को सुरक्षित रखे.
दुनिया भर में कालेधन के खिलाफ चल रहें मुहिम तथा जनता के दबाव के फलस्वरूप कई सरकारों ने इन कालेधनों तथा उनके खातेदारों के नाम जानने के लिये स्विस सरकार के साथ समझौता किया है. जिसमें यह शर्त लगा दी गई है कि इन नामों को सार्वजनिक न किया जाये. जाहिर सी बात है कि स्विस बैंक तथा सरकार कभी नहीं चाहेगी कि उनके बैंकों की तिजोरी से धन निकलकर अपने मातृभूमि वापस लौटे.
स्पष्ट है कि कालेधन पर स्विस सरकार का मन काला है लेकिन इसका कदापि भी यह अर्थ नहीं निकलता है कि हमारी सरकार भी कालेधन के मालिकों का नाम जनता से छुपाये.