तलवार की धार पर अमित शाह
नई दिल्ली | विशेष संवाददाता: ऐन महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के पहले भाजपा-शिवसेना गठबंधन गुरुवार को खत्म हो गया. उल्लेखनीय है कि पिछले 25 वर्षो से भारतीय राजनीति में भाजपा-शिवसेना का गठबंधन राजनीतिक रूप से सक्रिय तथा एकबद्ध था. इससे महाराष्ट्र की राजनीति में नये समीकरण उभरने के संकेत मिल रहें हैं. शुक्रवार को भाजपा द्वारा गठबंधन को सीटों के बंटवारे के लिये शिवसेना द्वारा अपनाए गये रवैये के कारण समाप्त किये जाने की घोषणा करने के बाद से शिवसैनिक मीडिया के सामने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के खिलाफ गरियाते दिखाई दे रहें थे.
इससे आसानी से अंदाज लगाया जा सकता है कि महाराष्ट्र के चुनाव प्रचार में शिवसेना तथा भाजपा के बीच टकराव के बीज बो दिये गये हैं. पूरी राजनीतिक स्थिति शुक्रवार को साफ होगी कि महाराष्ट्र में चारों राजनीतिक दल भाजपा, शिवसेना, कांग्रेस तथा एनसीपी का अगला कदम क्या होगा.
उल्लेखनीय है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को महाराष्ट्र में 27 फीसदी, शिवसेना को 21 फीसदी, कांग्रेस को 18 फीसदी तथा एनसीपी को 16 फीसदी मत मिले थे. जाहिर है कि विधानसभा के चुनाव के समय यह स्थिति बदल गई है तथा भाजपा एवं शिवसेना के बीच में वोटों का बंटवारा नये तरीके से होंगे.
भाजपा द्वारा लोकसभा का समर जीतने के बाद उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती महाराष्ट्र में होगी क्योंकि इस विधानसभा चुनाव में उनके 25 वर्ष पुराने साथी शिवसेना उन्हीं के खिलाफ ताल ठोकती नजर आयेगी. जाहिर सी बात है कि भाजपा के नये-नवेले अध्यक्ष तथा गुजरात राजनीति के मंजे हुए रणनीतिकार अमित शाह के सामने यह सबसे बड़ी चुनौती होगी कि किस प्रकार से भाजपा की नैया को पार लगाया जाये.
अमित शाह को 2014 के लोकसभा चुनाव के पूर्व भाजपा का महासचिव बनाकर उत्तरप्रदेश की कमान सौंप दी गई थी. इसमें कोई दो मत नहीं कि 2014 के लोकसभा चुनाव के समय उत्तरप्रदेश ने यदि भाजपा की झोली में 80 में से 71 सीट न डाले होते तो मोदी का मिशन 272+ कभी भी 300 का आकड़ा पार न कर पाता. गौरतलब है कि अमित शाह ने उत्तरप्रदेश में भाजपा का झंडा अपने दम पर लहराकर, पार्टी तथा भारतीय राजनीति में अपने नये मुकाम को हासिल किया है.
अब अमित शाह के पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद होने वाले पहले विधानसभा चुनाव चुनाव में उनके सामने पहली चुनौती है कि महाराष्ट्र में पिछले 15 सालों से सत्ता पर काबिज कांग्रेस-एनसीपी के शासन के स्थान पर भाजपा गठबंधन को सत्तारूढ़ करवायें. ठीक ऐसे समय पर जब भाजपा को महाराष्ट्र में अपने वोट बैंक को बढ़ाने के लिये पुराने साथी की जरूरत है, 25 वर्ष पुराना गठबंधन टूट गया. हालांकि, गठबंधन के छोटे-छोटे पार्टियां भाजपा के साथ ही हैं. उन्होंने शिवसेना के साथ जाने में अपनी भलाई नहीं देखी है.
उधर, शिवसेना के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे की भी अपनी मजबूरी तथा रणनीति है जिसे आसानी से समझा जा सकता है. महाराष्ट्र में शिवसेना के सामने उसी से अलग हुए धड़े महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना चुनौती पेश कर रहा है. राज ठाकरे के नेतृत्व में एमएनएस ने उग्र प्रांतीयतावादी आंदोलन के द्वारा, शिवसेना के राजनीतिक जमीन को छीनने की कोशिश की जा रही है.
दूसरी तरफ, उद्धव ठाकरे के सामने शिवसैनिकों के बीच में अपने पिता बाला साहेब ठाकरे के समान कद हासिल करने के लिये अड़ियल रवैया अपनाना जरूरी था. जाहिर है कि पिछले हफ्ते भर की गतिविधियों से शिवसैनिकों में उत्साह का संचार हुआ है तथा उद्धव ठाकरे उसके निर्विवाद नेता के तौर पर उभरे हैं. इसी के परिणाम स्वरूप, गुरुवार को शिवसैनिक मीडिया के कैमरे के जद में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के खिलाफ नारे लगाते दिखाई दिये थे या कहना चाहिये कि जानबूझकर नारे लगा रहें थे.
वैसे, कानाफूसी यह भी है कि भाजपा का एनसीपी के साथ नया गठबंधन बन सकता है. महाराष्ट्र की राजनीति के जानकारों का मानना है कि एनसीपी के शरद पवार को कम करके आंकना राजनीतिक भूल होगी. गौरतलब है कि यूपीए के साथ रहते हुए भी लोकसभा चुनाव के समय कयास लगाये जा रहे थे कि वह एनडीए की सीट कम होने पर उसके साथ जा सकते हैं. आखिरकार सत्ता भी कोई चीज होती है परन्तु भाजपा द्वारा आशा से ज्यादा सीट हासिल करने से वह बात धरी की धरी रह गई थी.
अब, जब भाजपा-शिवसेना का गठबंधन टूट गया है तो महाराष्ट्र की राजनीति कौन सा करवट लेती है यह देखना है. इसके बावजूद भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह के लिये हर कदम तलवार को धार पर चलने जैसे है क्योंकि उनसे पार्टी उम्मीद लगाई बैठी है कि वह लोकसभा चुनाव के समान ही करिश्मा इस बार भी दिखाने जा रहें हैं.