महाराष्ठ्र: भाजपा-शिवसेना का ‘महाभारत’
मुंबई | समाचार डेस्क: महाराष्ट्र में सीटों के बंटवारे को लेकर भाजपा-शिवसेना गठबंधन टूटने के कगार पर है. हालांकि अभी तक किसी कृष्ण ने पांचजन्य शंख में फूंक नहीं मारी है इसलिये गठबंधन के बने रहने की पूरी संभावना है. उल्लेखनीय है कि भाजपा जहां उन 59 विधानसभा की सीटों पर भी चुनाव लड़ना चाहती है जिस पर कभी शिवसेना ने जीत हासिल नहीं की. वहीं, शिवसेना, भाजपा को केवल 126 सीटें तथा अपने लिये 155 सीटों का प्रस्ताव दिया है. दोनों ही पार्टियां अपने प्रस्तावों पर अंगद के समान पैर जमाये बैठी हैं. इसलिये यह कयास लगाये जा रहें हैं कि कहीं भाजपा-शिवसेना का 25 साल पुराना गठबंधन न टूट जाये.
जाहिर है कि लोकसभा चुनाव में अपने दम पर पहली बार बहुमत हासिल करने वाली भाजपा के तेवर अपनी जगह पर उचित नजर आते हैं. वहीं शिवसेना का मानना कि दिल्ली तुम्हारी तथा मुंबई हमारी का तर्क भी गले उतरने लायक है. शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के माध्यम से भाजपा नेताओं को संदेश दिया है कि लोकसभा चुनाव में तुम्हारे मिशन 272 के लिए तन-मन-धन लगाकर काम किया. अब विधानसभा में हमारा भी मिशन 150 है.
गौरतलब है कि शिवसेना के बाल ठाकरे ने उस समय भी मोदी का समर्थन किया था जब गुजरात के मुख्यमंत्री रहते उन पर दंगों का आरोप लग रहा था तथा भाजपा के ही कई नेताओं ने उनसे दूरी बना ली थी. न कहने की बात होते हुए भी शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने एक सभा को संबोधित करते हुए इसकी याद दिलाई.
वैसे महाराष्ट्र विधानसभा के सीटों के बंटवारे को लेकर कांग्रेस तथा एनसीपी में भी तनातनी की खबरें बाहर आ रहीं है. एनसीपी जहां महाराष्ट्र में बड़े भाई की भूमिका निभाना चाहती है वहीं, कांग्रेस अपने अस्तित्व को बचाये रखने के लिये ज्यादा से ज्यादा सीटों से लड़ना चाहती है.
महाराष्ट्र में सीटों को लेकर भाजपा-शिवसेना के मतैक्य पर अभी तक संघ तथा प्रधानमंत्री मोदी ने हस्तक्षेप नहीं किया है. इसलिये यह माना जा रहा है कि भाजपा की ओर से जो कुछ भी किया जा रहा है उसे फायनल नहीं माना जाना चाहिये. इस मोर्चे पर शिवसेना की कमान जहां उद्धव ठाकरे ने संभाल रखी है वहीं, भाजपा की ओर से पार्टी के नये अध्यक्ष अमित शाह प्रमुख रणनीतिकार हैं. इसको लेकर भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक भी हो चुकी है उसके बाद भी माना जा रहा है कि भाजपा या शिवसेना में से कोई भी गठबंधन तोड़ने की जिम्मेदारी अपने उपर लेने को तैयार नहीं है. जब तक संग्राम या सुलह की घोषणा न हो जाये तब तक महाराष्ट्र में कमल खिलेगा या बाघ दहाड़ेगा इस पर कयास लगते रहेंगे.