भाजपा का तिलिस्म तोड़ेंगे लालू-नीतीश!
पटना | एजेंसी: क्या लालू प्रसाद-नीतीश कुमार की जोड़ी भाजपा का तिलिस्म तोड़ पायेगी. बिहार की राजनीति के दो दिग्गज और एक-दूसरे के धुर विरोधी रहे राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद और जनता दल यूनाइटेड के वरिष्ठ नेता नीतीश कुमार ने सोमवार को न केवल एक साथ मंच साझा किया, बल्कि जनसभा को संबोधित भी किया.
ऐसा माना जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी को चुनौती देने के लिए राजद-जदयू गठबंधन अस्तित्व में आया है.
लोकसभा चुनाव 2014 में दोनों ही दलों को मिली करारी हार के बाद जब राजद और जदयू में गठबंधन की बात सामने आई, तो राजनीति के जानकारों को इसकी संभावना पर संदेह था. लेकिन बिहार विधानसभा की 10 सीटों के लिए हो रहे उपचुनाव में ही राजद, जदय और कांग्रेस ने गठबंधन कर कयासों पर विराम लगा दिया. लालू और नीतीश सोमवार को करीब 20 वर्ष बाद वैशाली जिले में सार्वजनिक मंच साझा करते नजर आए.
बिहार में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में नए गठबंधन के लिए उपचुनाव को सेमीफाइनल की तरह देखा जा रहा है. वर्ष 2014 के आम चुनाव में बिहार में भाजपा और उसके सहयोगी दलों लोक जनशक्ति पार्टी और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी को करीब 39 प्रतिशत वोट मिले थे. इसकी तुलना में राजद, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकंपा) गठबंधन को 30 प्रतिशत और जदयू-भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी गठबंधन को 17 प्रतिशत वोट मिले थे. इस तरह नए गठबंधन के बाद कुल मिलाकर अब आंकड़ा 47 प्रतिशत के करीब पहुंचने की उम्मीद है.
उपचुनाव में अहम सवाल यह है कि क्या लोकसभा चुनाव में जो वोट भाजपा गठबंधन को मिले थे, वही वोट उसे विधानसभा चुनाव में भी मिलेंगे? यही बात लालू-नीतीश गठबंधन के लिए भी लागू होती है.
राजनीति के जानकारों का मानना है कि लालू-नीतीश गठबंधन सीटों के मामले में भले ही पीछे है, लेकिन प्राप्त वोटों की संख्या के मामले में भाजपा से कहीं आगे है.
राजनीति के विशेषज्ञ अनिल प्रकाश कहते हैं, “राजद-जदयू और कांग्रेस गठबंधन अगर चुनाव में अपने-अपने वोट बैंक एक दूसरे के लिए शिफ्ट करते हैं, तो यह गठबंधन भाजपा गठबंधन के लिए चुनौती साबित हो सकता है.” उन्होंने कहा कि मुस्लिम बहुल मतदाता वाले क्षेत्रों में तो वोटों का बिखराव रुकना लगभग तय है, जो इस गठबंधन के लिए शुभ संकेत है.
कुछ जानकारों का यह भी मानना है कि राजद-जदयू गठबंधन निराशा और पराजय के बोध से उपजा गठबंधन है. यदि उप चुनाव में इस गठबंधन को कामयाबी मिली तो यह अगले साल विधानसभा चुनाव के लिए और पुख्ता होकर उभरेगा और सत्ता का प्रबल दावेदार होगा. लेकिन, यदि मतदाताओं ने इस गठबंधन को नकार दिया तो नए गठबंधन के औचित्य पर ही सवालिया निशान लग जाएंगे.
वैसे भाजपा इस गठबंधन को ‘सत्ता के लिए गठबंधन’ कह रही है. जबकि, राजद और जदयू में ही इस गठबंधन को लेकर विरोध के संकेत मिल रहे हैं.
वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह ने कहा, “नए गठबंधन से बिहार की राजनीति में नए समीकरणों का उभरना तय है, लेकिन दोनों दलों के लिए अपने-अपने संगठन में एकजुटता बनाए रखना भी चुनौती है.” उन्होंने कहा कि कागजी तौर पर यह गठबंधन भले ताकतवर लगता हो, लेकिन जातीय समीकरण और अपने वोट बैंक को बनाए रखना इनके लिए वास्तविक चुनौती होगी.