जीतन राम हवाई सर्वेक्षण करेंगे
पटना | एजेंसी: बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी रविवार को बाढ़ संभावित कोसी क्षेत्र का हवाई सर्वेक्षण करेंगे और स्थिति का जायजा लेंगे. इस दौरान वह सुपौल में अधिकारियों के साथ विचार-विमर्श करेंगे. इस दौरान वह संभावित बाढ़ क्षेत्रों का सर्वेक्षण करेंगे. मुख्यमंत्री बाढ़ राहत शिविरों का भी जायजा लेंगे तथा वहां तैनात अधिकारियों के साथ विचार-विमर्श करेंगे.
बिहार में कोसी नदी के जलस्तर में रविवार को वृद्धि देखी गई. नेपाल से सुबह छह बजे 1.12 लाख क्यूसेक पानी और आठ बजे 1.17 लाख क्यूसेक पानी पहुंचने के बाद आशंका जतायी जा रही है कि दोपहर के बाद कोसी का जलस्तर और बढ़ सकता है. बीरपुर बैराज के अधीक्षक अभियंता विष्णुकांत पाठक ने रविवार को बताया कि कोसी का जलस्तर बढ़ा जरूर है, लेकिन इसके विशाल जल क्षेत्र को देखते हुए ज्यादा परेशानी की बात नहीं है. बराह क्षेत्र में सुबह 10 बजे कोसी का जलस्तर 1.30 लाख क्यूसेक था और अब जलस्तर बढ़ रहा है.
मुख्यमंत्री सचिवालय के एक अधिकारी के मुताबिक मुख्यमंत्री दोपहर के बाद सुपौल जिले के बीरपुर जाएंगे और कोसी में संभावित बाढ़ को लेकर की गई तैयारियों का जायजा लेंगे. उनके साथ जल संसाधन मंत्री विजय कुमार चौधरी भी साथ रह सकते हैं.
उल्लेखनीय है कि नेपाल के सिंधुपालचक जिले में भूस्खलन के कारण कोसी नदी का प्रवाह अवरुद्ध हो गया है और नदी का प्रवाह बहाल करने के लिए वहां बम गिराने की योजना है. ऐसी स्थिति में बिहार में कोसी नदी में बड़ी मात्रा में एकसाथ पानी आने की संभावना है. इससे बिहार के आठ जिले सुपौल, सहरसा, मधेपुरा, अररिया, पूर्णिया, भागलपुर, खगड़िया, मधुबनी की डेढ़ लाख आबादी के प्रभावित होने की आशंका है.
इसमें सबसे अधिक सुपौल जिले की 22 पंचायतों की लगभग 50 हजार आबादी के प्रभावित होने का अनुमान है.
सरकार द्वारा राहत एवं बचाव कार्य के लिए सुपौल, मधेपुरा, तथा सहरसा में कुल आठ एनडीआरएफ की टीमें तथा खगड़िया, मधुबनी, भागलपुर एवं पूर्णिया में एसडीआरएफ की एक-एक टीम तैनात की गई है, तथा कोसी तटबंध के दायरे में रहने वालों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने का कार्य चल रहा है.
गौरतलब है कि छह वर्ष पूर्व 18 अगस्त 2008 को नेपाल-बिहार सीमा पर स्थित कुसहा बांध के टूट जाने से अचानक आई बाढ़ से बिहार के 247 गांव की करीब सात लाख आबादी प्रभावित हुई थी. इस बाढ़ में 217 लोगों की जानें गईं थी और 5,445 पशु मारे गए थे. इन सबके अलावा बहुत बड़े भूभाग पर लगी फसल भी तबाह हुई थी.