बिहार: मझधार में मांझी
पटना | एजेंसी: बिहार का सत्ता संघर्ष बीच भंवर में फंस गया है. वहीं, बिहार में सतारूढ़ जदयू के भीतर चल रहे सत्ता संघर्ष में अब मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ‘मझधार’ में फंसते नजर आ रहे हैं. भले ही मांझी अभी भी विधानसभा में बहुमत साबित करने का दावा करते फिर रहे हैं लेकिन सत्ता संघर्ष में कुर्सी पर बने रहना अब उनके लिए आसान नहीं दिख रहा है.
दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिलने के बाद संख्या बल के भरोसे मांझी ने भले ही विधानसभा में बहुमत साबित कर देने का दावा किया हो लेकिन राजनीति और कानून के जानकार मांझी की राह आसान नहीं मानते. भारतीय जनता पार्टी भी मांझी को समर्थन देने पर ढुलमुल नजर आ रही है.
कानून और संविधान के जानकारों का कहना है कि प्रजातंत्र में संख्या बल बहुत मायने रखता है और बिहार के वर्तमान राज्यपाल खुद संविधान के जानकार हैं. वैसे बिहार के सियासी दांवपेंच के बीच अभी गेंद राज्यपाल के पाले में है.
पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ता तुहीन शंकर ने कहा कि मांझी के लिए पार्टी के दो-तिहाई विधायकों को अपने पाले में खींच कर ले आना अब आसान नहीं लगता. अगर ऐसा नहीं होता है तो दल-बदल विरोधी कानून के तहत मांझी का साथ देने वाले विधायक भी फंस सकते हैं. उन्होंने कहा कि जदयू में टूट वैध रखने के लिए मांझी को 74 विधायकों को तोड़ना होगा, तभी मांझी के दल को अलग गुट के तौर पर मान्यता मिलेगी.
शंकर ने बताया कि मांझी के लिए अब राह आसान नहीं है, परंतु अब राज्यपाल पर सब कुछ निर्भर है. वैसे यह भी सत्य है कि मांझी अभी जदयू के ही नेता हैं.
पटना उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता एस़ बी़ क़े मंगलम का मानना है कि पूरा मामला अब कानूनी रूप से उलझ गया है.
इधर, नीतीश कुमार का खेमा कानूनी लड़ाई के लिए भी तैयार हो रहा है. राज्य के महाधिवक्ता रह चुके पूर्व मंत्री पी़ क़े शाही ने कहा कि नीतीश कुमार अब बहुमत के नेता हैं. उन्होंने कहा कि अगर राष्ट्रपति शासन की सिफारिश की जाती है, तो राष्ट्रपति जब तक संतुष्ट नहीं होंगे तब तक निर्णय नहीं हो सकता.
उन्होंने यह भी कहा कि बिहार विधानसभा का बजट सत्र 20 फरवरी से प्रारंभ हो रहा है, और बजट सत्र में कोई केयर टेकर सरकार रह नहीं सकती. बजट हमेशा सदन में स्वीकृत कराना होता है.
राजनीति के जानकारों ने यह भी कहा कि मुख्यमंत्री को या तो राज्यपाल या फिर सदन ही हटा सकता है. पूर्व सांसद रामजीवन सिंह ने कहा कि मांझी अभी बिहार के मुख्यमंत्री हैं और जदयू के ही नेता हैं.
उन्होंने कहा, “प्रजातंत्र में सदन का अंकगणित बहुत मायने रखता है और राज्यपाल तकनीकी तौर पर बहुमत को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं.”
दूसरी तरफ भाजपा के एक नेता ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर बताया कि मांझी भले ही भारतीय जनता पार्टी की ओर आशा की निगाह से देख रहे हों, लेकिन भाजपा चुनाव के समय महादलित एजेंडे को खोना नहीं चाहेगी.
उन्होंने कहा कि अगर मांझी को भाजपा समर्थन देती है तो मांझी द्वारा किए गए सही-गलत कार्यो की जिम्मेवारी भी भाजपा को लेनी होगी जो भाजपा कभी नहीं चाहेगी. भाजपा, नीतीश द्वारा मांझी को सत्ता से हटाने को मुद्दा बनाकर अगले विधानसभा चुनाव में उतरेगी, जो फायदे का सौदा होगा.