नशे की गिरफ्त में भूटान
शिल्पा रैना | थिंफू: हर सोमवार की शाम भूटान के सरकारी अधिकारी दासो पाल्जर जे. दोरजी एक पॉप्युलर रेडियो शो के लिए बातूनी रेडियो जॉकी बन श्रोताओं का खूब मनोरंजन करते हैं. लेकिन शो के अंत में वे ड्रिकिंग, ड्राइविंग और ड्रग्स से संबंधित संदेश देना नहीं भूलते. यों कहिए कि इस संदेश के लिए ही वे अधिकारी से जॉकी बन गए.
भूटान के राष्ट्रीय पर्यावरण आयोग में विशेष अधिकारी दोरजी के बेटे की जान 2013 में ड्रग्स के ओवरडोज ने ले ली. “मेरे 6 बच्चे थे. लेकिन अब 5 ही हैं.” आईएएनएस से ऐसा कहते-कहते दोरजी की आंखों में आंसू भर आते हैं.
उन्होंने कहा, “अपने कार्यक्रम में मैं यही कहता हूं, अपने दुखों और समस्याओं को भुलाने के लिए शराब मत पियो. युवाओं के बीच यह भ्रम है. मैं नहीं चाहता कि किसी और को मेरे जैसा दुख हो.”
एक आधिकारिक आंकड़े के अनुसार, 2010 में आत्महत्या के 57, 2011 में 65 और 2012 में 88 मामले सामने आए. 2013 के अक्टूबर तक 83 लोगों ने आत्महत्या कर ली. यह आंकड़े हैं, एक ऐसे देश का जहां शांतिप्रिय सात लाख लोगों का घर है. आत्महत्या की यह प्रवृत्ति अधिकांशत: युवाओं में है, जो ग्रामीण-शहरी आव्रजन, परिवार का साथ नहीं होना और माता-पिता के साथ बच्चों का संवाद नहीं होने का परिणाम है.
यूनाइटेड नेशंस ऑफिस ऑफ ड्रग एंड क्राइम और भूटान नारकोटिक्स कंट्रोल एजेंसी द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों पर गौर करें, तो शराब की शुरुआत करने वाले युवाओं की औसत आयु मात्र 16 साल थी, जबकि छठी क्लास से ही बच्चे तंबाकू खाना शुरू कर देते हैं और उम्र बढ़ने के साथ यह आदत और डोज बढ़ती ही जाती है.
छिथुएन फैंढे एसोसिएशन के सीवांग तेनजिंग ने आईएएनएस से बातचीत में कहा कि भूटान के कई लड़के और लड़कियां गैरकानूनी गांजा, स्पासमो, प्रोक्सिवोन, रेलीपिन और नाइट्रोसन जैसे ड्रग्स ले रहे हैं. ऐसा इसलिए है, क्योंकि इन बच्चों को माता-पिता से दिशा-निर्देश नहीं मिलना, शिक्षा की कमी और युवाओं में जागरुकता की कमी है.
उन्होंने कहा, “मैं कोई विशेषज्ञ नहीं जो यह बता दूं कि युवा क्यों ड्रग्स की लत के शिकार हो रहे हैं. लेकिन इतना बता सकता हूं कि यहां के युवा हताश हैं. गरीबी चरम पर है और बेरोजगारी के दबाव में हैं. वे चाहते हैं कि उनके पास वे सभी चीजें हों, जिनकी उन्हें चाहत है. वे इसके लिए कोशिश करते हैं, लेकिन असफल होने पर ड्रग्स और नशे के जाल में फंस जाते हैं.”