भूटान में कहां हैं महिलायें
थिंपू| समाचार डेस्क: भूटानी समाज में लैंगिक भेदभाव के नहीं होने के बावजूद राजनीति में महिलायें पीछे हैं.जब मामला राजनीति में महिलाओं के प्रतिनिधित्व का आता है तो नीति निर्धारण में बड़ी भूमिका निभाने की राह में सामाजिक सांस्कृतिक पूर्वाग्रह रोड़ा बनकर खड़ा हो जाता है. यह मानना है देश में 2013 के चुनाव में महिलाओं की भागीदारी पर वृत्तचित्र बनाने वाली फिल्मकार का.
वर्ष 2008 में दुनिया के नक्शे पर लोकतांत्रिक देश का रूप अख्तियार करने वाले इस देश में जब चुनाव हुए, तो महिलाओं का प्रदर्शन शून्य रहा. नीति निर्धारण की हैसियत हासिल करने की राह में जो चीज रुकावट बनी उसे लेकर केसांग चुकी दोरजी को हैरत हुई.
2008 में जब चुनाव हुए, तब निर्णायक पदों पर महिलाओं की संख्या एक तरह से न के ही बराबर थी. आईएएनएस से एक साक्षात्कार में दोरजी ने कहा कि मात्र 14 फीसदी महिलाएं ही संसद पहुंच पाईं. उन्होंने कहा कि संसद पहुंची उन महिलाओं से उन्हें पता चला कि आखिरकार वे कौन सी बाधाएं थीं, जो उन्हें राजनीति में आगे बढ़ने से रोक रही थीं.
इन बाधाओं को जानने की इच्छा ने ही उन्हें 35 मिनट का यह वृत्तचित्र ‘भूटान वूमेन फॉरवार्ड’ बनाने पर मजबूर किया. इसका प्रदर्शन माउंटेन इको-2014 साहित्य एवं सांस्कृतिक महोत्सव के दौरान किया गया.
यह वृत्तचित्र उन महिलाओं की कहानी है, जो तमाम रुढ़ियों और बाधाओं को पार करते हुए विभिन्न क्षेत्रों और पार्टियों से 2013 का चुनाव जीतकर संसद तक पहुंचीं.
दोरजी ने कहा कि सामाजिक-सांस्कृतिक रुढ़िवाद से यहां के लोगों का भला होने वाला नहीं. ऐसे विचार लोगों में भ्रम फैलाते हैं कि भूटान की महिलाएं राजनीति में रुचि नहीं रखती हैं. वे रसोई और सामाजिक सेवा से ही खुश हैं. दोरजी को यह फिल्म बनाने में लगभग दो साल लग गए.
उन्होंने कहा, “जब लोगों के दिमाग में महिलाओं के संदर्भ में इस तरह की बातें बैठ जाती हैं, तो लोग उन्हें एक उम्मीदवार के रूप में स्वीकार नहीं कर पाते.”
वर्ष 2013 के चुनाव में भी कुछ ऐसा ही हुआ है, क्योंकि संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 14 फीसदी से घटकर सात फीसदी तक पहुंच गया. दुख की बात है कि इन सात फीसदी महिलाओं को भी निर्णायक पद नहीं मिल पाया.
इसके बावजूद लायोंपो दोरजी कोदेन पहली महिला मंत्री बनीं और उन्हें कैबिनेट में जगह भी मिली. इसके अलावा, भूटान में कोई महिला पहली बार गवर्नर और सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश बनीं.
देश के लिए यह सकारात्मक शुरुआत है. यहां महिलाएं हर क्षेत्र में भूमिका निभा रही हैं. शिक्षा, सत्कार क्षेत्र, लेखन, पत्रकारिता, यातायात प्रबंधन और अग्निशमन जैसे क्षेत्रों में अपनी मौजूदगी घर का काम करते हुए दर्ज करा रही हैं. लेकिन दोरजी इतने से खुश नहीं हैं. वे चाहती हैं कि महिलाएं ज्यादा से ज्यादा की संख्या में संसद पहुंचे, इसके लिए पहल हो.
उनका कहना है कि महिलाओं को राजनीति में लाना सबसे बड़ी चुनौती है. शिक्षित महिलाएं किसी दूसरे क्षेत्र में नौकरी कर रही हैं, ऐसे में संभव नहीं है कि वे नौकरी छोड़कर राजनीति की ओर रुख करेंगीं. और जब कम पढ़ी-लिखी महिलाएं चुनाव लड़ेंगी और लोगों से वोट मांगने जाएंगी, तो जाहिर है लोग उन्हें खारिज कर देंगे.
हालांकि उन्हें लगता है कि इसका समाधान महिलाओं के लिए कोटा सिस्टम हो सकता है, लेकिन यह कम समय के लिए ही हो, ताकि महिलाओं का रुझान राजनीति में बढ़े, राजनीति के गुर सीखें और आत्मविश्वास के साथ देश और अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करें. लेकिन इसकी अपनी खामियां हैं.
कोटा सिस्टम का लोग दुरुपयोग कर सकते हैं, क्योंकि तब पुरुष परिवार की महिलाओं के सहारे पर्दे के पीछे से राजनीति को नियंत्रित करेंगे. इन्हीं कारणों को लेकर दोरजी ने 15 साल तक वृत्तचित्र बनाई. उन्होंने सरकार के महिलाओं से संबंधित लिए चुनाव और राजनीति के मुद्दे पर कई वृत्तचित्रों का निर्माण किया और इसी मुद्दे पर ‘रेज योर हैंड’ नामकी एक पुस्तक भी लिखी.
वे कहती हैं मुझे विश्वास है कि यह पुस्तक वैसे विद्यार्थियों के लिए लाभदायक होंगी, जो राजनीति में महिलाओं की भूमिका के बारे में जानना चाहते हैं. दोरजी कहती हैं, महिलाएं एक बेहतर नेता बन सकती हैं. कई मुद्दों के समाधान के लिए उनका बराबर का प्रतिनिधित्व होना बेहद आवश्यक है.