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ट्रंप के ख़िलाफ़ मुस्लिम लामबंदी?

रायपुर | समाचार डेस्क: अमरीका में ट्रंप के खिलाफ माहौल बनता जा रहा है. न्यूयार्क के मुसलमान खुले तौर पर डोनल्ड ट्रंप की खिलाफत कर रहें हैं. अमरीका में राष्ट्रपति चुनाव में मतदान करने के लिये अपना रजिस्ट्रेशन करवाना पड़ता है. न्यूयार्क के मुसलमान अपना रजिस्ट्रेशन करवाते वक्त साफ कह रहें हैं कि वे ट्रंप की खिलाफ़त करते हैं. अमरीका के दूसरे राज्यों की स्थिति शायद ही इस मामलें में इससे जुदा हो. हालांकि, अभी महिलाओं ने खुले तौर पर ट्रंप के खिलाफ मोर्चा नहीं खोला है. कुछ दिन पहले वहां के एक अखबार ने अमरीकी राष्ट्रपति पद के रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनल्ड ट्रंप के महिलाओं के बारे में बातचीत का जो टेप सार्वजनिक किया गया था उससे दुनियाभर की महिलाओं ने माना कि ट्रंप दोयम दर्जे के व्यक्ति हैं. उसके बाद कम से कम तीन अमरीकी महिलाओं ने उनके साथ ट्रंप द्वारा किये गये दुर्व्यवहार की पुष्टि की है. हैरत की बात है कि ट्रंप अपने जिस बातचीत को लॉकर रूम में की गई बात का दावा कर रहे थे उन पर वास्तव में उन तीनों पीड़ित महिलाओँ के साथ उसी स्टाइल में हरकत करने का आरोप है. माना कि अमरीकी समाज एक खुला समाज है. वहां पर महिलाओँ के स्कर्ट की ऊंचाई से उनके चरित्र का पैमाना तय नहीं किया जाता है. न ही घड़ी की सुइयों के आधार पर उनके आने जाने का समय तय किया जाता है. उन्हें बराबरी का हक प्राप्त है. इन तमाम सामाजिक हालात के बीच महिलाओं के बारे में अश्लील टिप्पणी तथा प्रताड़ना को वहां का समाज विरोध करता है. फिलहाल, चर्चा का विषय मुसलमान वोटर हैं. इस पर न्यूयार्क से बीबीसी के लिये सलीम रिज़वी का विश्लेषण गौर करने लायक है. पढ़िये बीबीसी की रिपोर्टिंग-

अमरीका में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव में वोट डालने के लिए पंजीकरण करवाने में मुसलमानों में बहुत जोश देखा जा रहा है.

न्यूयॉर्क में शुक्रवार को अमरीकियों के लिए वोट डालने के लिए पंजीकरण करवाने का आख़िरी दिन था. और मुसलमानों ने भी उसमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया.

राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव प्रचार में जब से रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनल्ड ट्रंप ने मुसलमानों के बारे में विवादित बयान दिए हैं, तब से अधिकतर मुसलमानों का एक ही मक़सद लग रहा है कि कैसे ट्रंप को अमरीकी राष्ट्रपति बनने से रोका जाए.

वैसे इस चुनाव में दूसरे अमरीकियों की तरह ही मुसलमानों के लिए जो अहम मुद्दे हैं उनमें नौकरियां, शिक्षा, सुरक्षा औऱ मानवाधिकार वगैरह तो हैं ही लेकिन ख़ासकर मुसलमानों के सिलसिले में डोनल्ड ट्रंप के दिए गए बयान जिनमें अमरीका में मुसलमानों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने, मस्जिदों और मुसलमानों की निगरानी किए जाने जैसी उनकी नीतियों के कारण मुस्लिम समुदाय में बेचैनी है.

न्यूयॉर्क में 20 वर्षों से रह रहे पाकिस्तानी मूल के आबिद अली अपनी पत्नी के साथ वोटर रजिस्ट्रेशन करवाने आए थे.

मैंने उनसे पूछा कि क्या वह ट्रंप को वोट देंगे? तो वह बिफरे हुए अंदाज़ में बोले,”नहीं बिलकुल नहीं, जब कोई उम्मीदवार मुसलमानों के ख़िलाफ़ बयान देता है और मुसलमानों का विरोधी है तो उसको कोई मुसलमान तो वोट नहीं दे सकता. हम भी इसीलिए वोट का पंजीकरण करवाने आए हैं. वर्ना तो हम न पंजीकरण करवाते न ही वोट डालते. अब तो हमारा मक़सद है कि ट्रंप राष्ट्रपति न बने. हमें उम्मीद है कि अमरीका में संविधान के तहत सभी को बराबरी का हक़ दिया जाएगा.”

न्यूयॉर्क में ब्रुकलिन की मक्की मस्जिद से जुमे की नमाज़ के बाद जब लोग बाहर निकल रहे थे तो वहीं फुटपाथ पर मेज़ लगाए कुछ कार्यकर्ता कंप्यूटर के ज़रिए लोगों का पंजीकरण कर रहे थे.

न्यूयॉर्क पुलिस विभाग में मुस्लिम पुलिस वालों की एक मुस्लिम संस्था मुस्लिम ऑफ़िसर्स सोसाइटी शहर भर में इस प्रकार के कैंप लगाकर मतदाताओं के पंजीकरण में मदद कर रही है.

कैंप के एक आयोजक रोहेल खालिद कहते हैं, “काफ़ी लोग उत्साह के साथ पंजीकरण करवाने आ रहे है. हम उन्हें बता रहे हैं कि आज आख़िरी दिन है और कंप्यूटर पर ऑनलाइन उनका पंजीकरण भी कर रहे हैं. बहुत से लोगों को तो मालूम ही नहीं था कि आज आख़िरी दिन है.”

अमरीका में करीब 33 लाख मुसलमान रहते हैं. एक अमरीकी मुस्लिम संस्था काउंसिल ऑन इस्लामिक रिलेशन्स के ताज़ा सर्वेक्षण के अनुसार अमरीका में 86 प्रतिशत मुसलमान अमरीकी वोट देने का इरादा रखते हैं. और जो पंजीकृत हैं उनमें से 72 प्रतिशत तो ज़रूर वोट देने की बात करते हैं.

इनमें से 67 प्रतिशत डेमोक्रेटिक पार्टी के हिमायती हैं और सिर्फ़ 6% रिपब्लिकन पार्टी को हिमायत देते हैं. जबकि निर्दलीय मुस्लिम वोटरों की संख्या 18 प्रतिशत बताई जाती है.

ब्रुकलिन में रहने वाले राणा अखलाख वोटर पंजीकरण में लोगों की मदद करते हैं. इस बार मुसलमानों के भारी जोश के बारे में कहते हैं, “इस बार तो पहले से अधिक जोश दिख रहा है मुसलमानों में. बड़ी संख्या में वोटर रजिस्ट्रेशन करवा रहे हैं. और वह अपने पसंदीदा उम्मीदवार के लिए मुहिम चला रहे हैं और चंदा भी इकट्ठा कर रहे हैं.”

लेकिन न्यूयॉर्क तो डेमोक्रेटिक पार्टी का गढ़ माना जाता है और डोनल्ड ट्रंप और हिलेरी क्लिंटन के बीच असली मुकाबला तो फ़्लोरिडा, वर्जीनिया और ओहायो जैसे प्रांतों में होने की उम्मीद है.

वैसे सर्वेक्षण के अनुसार 72 प्रतिशत अमरीकी मुसलमान वोटर हिलेरी क्लिंटन को ही समर्थन दे रहे हैं और डोनल्ड ट्रंप को सिर्फ़ 4 प्रतिशत मुसलमान अमरीकी वोट देने का इरादा रखते हैं.

अब अगला अमरीकी राष्ट्रपति चुनने के लिए 8 नवंबर को आम चुनाव में वोट डाले जाएंगे.

कहा जाता है कि जहां पर अत्याचार होता है उसके सबसे पहले वहीं पर विरोध होता है. अब इन विरोधों से ट्रंप के जीत या हार पर क्या असर होता है उसका भी इंतजार रहेगा.

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