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बस्तर: झोले में लाश, मानवता तार-तार

जगदलपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ के बस्तर के साथ ‘बेबसी’ और ‘बेरहमी’ शब्द लगातार जुड़ता जा रहा है. अभी दो दिनों पहले जगदलपुर मेडिकल कॉलेज में पिता तुलाराम द्वारा अपने 5 साल के बेटे के शव को 4 घंटे तक अपनी गोद में लेकर भटकने का मामला शांत भी नहीं हुआ था कि बुधवार को एक और त्रासद घटना सामने आई है. जगदलपुर मेडिकल कॉलेज में नवजात की मौत होने के बाद पिता उसके शव को झोले में रखकर पत्नी के लिये दवा की व्यवस्था करने भटकता रहा. नवजात का शव पूरे 12 घंटे तक अस्पताल के डिलीवरी वार्ड के बेड के पास झोले में रखा रहा. जिसकी ओर अस्पताल के किसी कर्मचारी की नजर तक नहीं गई.

मिली जानकारी के अनुसार बीजापुर के लंकापल्ली पंचायत के आईपेंटा गांव के 20 वर्षीय यालम रमेश अपनी पत्नी शशिकला को मंगलवार को डिलीवरी के लिये जगदलपुर मेडिकल कॉलेज लेकर गये थे. वहां उनकी पत्नी ने मृत बच्चे को जन्म दिया. अस्पताल द्वारा नवजात के शव को उसके पिता यालम रमेश को थमा दिया गया. उधर पैसे खत्म हो जाने के कारण अपनी पत्नी के ईलाज के पैसे के जुगाड़ में वह भटकता रहा.

जब यालम रमेश जिला कलेक्टर के पास अपनी फरियाद लेकर पहुंचा तो उसकी बात किसी को समझ में नहीं आई. क्योंकि उसे हिन्दी नहीं आती थी तथा वह जिस बोली में बात कर रहा था वह किसी को समझ में नहीं आया. जिला कलेक्टर को इतना समझ में आ गया कि यालम रमेश अपनी पत्नी का ईलाज कराने मेडिकल कॉलेज आया हुआ है तथा उसे मदद की जरूरत है. उन्होंने तुरंत रेडक्रास के सदस्यों को अस्पताल भेजा तो मामले का खुलासा हुआ. इसके बाद जगदलपुर मेडिकल कॉलेज के डिलीवरी वार्ड में भीड़ लग गई.

एक तरफ राज्य शासन सरकारी अस्पतालों में लोगों को कम खर्चे में ईलाज तथा जेनेरिक दवा के लिये प्रोत्साहित कर ही है जो दूसरी तरफ अस्पताल कर्मी मरीजों के साथ बेरहमी से पेश आ रहें हैं. मरीज की मौत के बाद शवों की ओर किसी भी तरह से ध्यान नहीं दिया जाता है जबकि मानवता का तकाजा है कि उसी समय मरीज के रिश्तेदारों को सबसे ज्यादा मानवीय संवेदना की जरूरत होती है.

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