प्रसंगवश

ड्रेस कोड के चश्मे से

सुरेश महापात्र
प्रधानमंत्री के बस्तर दौरे के बाद बस्तर और दंतेवाड़ा कलेक्टर पर आरोपित किए गए ड्रेस कोड का सवाल बवाल मचा रहा है. ड्रेस कोड के पक्ष और विपक्ष में सेलफोन के अलग-अलग ऐप पर घमासान मचा हुआ है. ट्वीटर में पहली बार बस्तर की हिंसा के बजाये कलेक्टर का चश्मा ट्रेंड कर रहा है. लेकिन इन तमाम बहसों के बीच ड्रेस कोड को जिस तरह के चश्मे से देखा जा रहा है, उसने कई सवाल छोड़े हैं.

9 मई को जब पीएम बस्तर दौरे पर थे, उस दौरान बस्तर में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के आस-पास था. जाहिर है, ऐसे तापमान में बंद गले का कोर्ट पहनना उनके लिये तो आसान था, जो एसी कमरों से निकल कर एसी गाड़ी में बैठ रहे थे और कुछ देर के लिये खुले में आये. लेकिन सुबह से शाम तक प्रधानमंत्री के कार्यक्रम की तैयारी में जूझ रहे लोगों के लिये संभव नहीं था.

जगदलपुर हवाई पट्टी में बस्तर कलेक्टर अमित कटारिया ने और जावांगा हेलिपेड में दंतेवाड़ा कलेक्टर केसी देव सेनापति ने प्रधानमंत्री का स्वागत किया. प्रधानमंत्री ने जब बस्तर में कदम रखा तो उस दौरान कलेक्टर अमित कटारिया नीली शर्ट और काला ट्राउजर पहने हुए थे. ​यह देखने में कहीं से भी न तो भद्दा लग रहा है और ना ही किसी की शान में गुस्ताखी. प्रधानमंत्री से कलेक्टर का परिचय प्रदेश के मुख्यमंत्री ने कराया.

जिस अंदाज में युवा कलेक्टर से प्रधानमंत्री ने हाथ मिलाया है वह तस्वीर पीएमओ ने अपने ट्वीटर एकाउंट पर अपलोड किया है. यानी अगर यह प्रधानमंत्री की शान में गुस्ताखी का मामला होता तो क्या पीएमओ इस तस्वीर को अपने सरकारी एकाउंट में जगह देता?

दूसरी बात दंतेवाड़ा में कलेक्टर केसी देव सेनापति ने जावंगा हेलिपैड में प्रधानमंत्री का स्वागत किया. इसमें उन्होंने पीएम को बुके दिया और नमस्कार किया. जिस दौरान यह प्रक्रिया अपनाई गई उस दौरान कलेक्टर सम्मान में थोड़े झुके हुए थे. सफेद शर्ट और ब्लेक ट्राउजर के साथ सिम्पल लुक में पीएम का स्वागत किया गया. बड़ी बात यह है कि पीएम की इस यात्रा के दौरान पूरा कव्हरेज डीडी न्यूज, पीआईबी ओर डीपीआर के हवाले था. तस्वीरें लेने से लेकर मीडिया को उपलब्ध कराने का दायित्व भी इन्हीं सरकारी एजेंसियों के मार्फत किया गया. ऐसे में जो तस्वीरें सामने आर्इ् हैं, उनसे गुस्ताखी जैसा कुछ भी नहीं दिख रहा है.

जिन तस्वीरों की यहां बात हो रही हैं, वे पीएमओ की ट्विटर एकाउंट पर अपलोड हैं. अगर कलेक्टरों ने ड्रेस कोड का उल्लघंन किया तो पीएमओ शायद ही इन तस्वीरों को तरजीह देता. उल्टे तस्वीरों के आधार पर ही नोटिस जारी किए जाते. बड़ी बात यह है कि पीएम दौरे को लेकर करीब पखवाड़े भर से तैयारी चल रही थी. पहले जो कार्यक्रम आया था, उसमें रायपुर से जावांगा में हेलिकाप्टर से आने की बात कही गई थी. बाद में कार्यक्रम में हुए बदलाव के बाद जगदलपुर हवाई पट्टी में पीएम वायुदूत के विमान से उतरे. पीएम के दौरे से पहले कई दौर की तैयारी की गई थी. उस दौरान यदि ड्रेस कोड को लेकर बात की गई होती तो शायद ही डीएम इसका विरोध करते. यानी रिहर्सल में ही इसकी तैयारी करवाई जानी थी.

बड़ी बात यह है कि पीएम के दौरे से पहले कई सचिव स्तर के अधिकारियों ने स्थल निरीक्षण किया. आवश्यक दिशानिर्देश दिए. सीएम ने जगदलपुर में पीएम दौरे को लेकर मैराथन बैठक की. अफसरों को जिम्मेदारी सौंपी और तैयारी की प्रग​ति से अवगत ​हुए. इस दौरे में सीएस व कई सचिव स्तर के अधिकारी भी साथ थे. यानी तब तक किसी ने इस विषय को लेकर ना तो सोचा और ना ही सुझाव दिए कि पीएम के स्वागत में जिन अफसरों को जिम्मेदारी निभानी है उनके लिए ड्रेस कोड क्या होगा? अगर ड्रेस कोड का पालन करने में इन अफसरों से चूक हुई है तो वे सभी अफसर भी जिम्मेदार हैं जिन्होंने पीएम दौरे से पहले तैयारियों का जायजा लिया और आवश्यक दिशा निर्देश दिए.

दूर की कौड़ी लाने वाले और कुछ अफसरशाहों की सात तहों को जानने वाले लोगों का मानना है कि सारा मामला आपसी खींचतान का है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नई पीढ़ी के नेता हैं. वे कानून की उस किताब में बदलाव के पक्षधर रहे हैं, जो हमे अंग्रेजी हुकूमत का एहसास कराती हैं. वे नेहरू युग के बाद नए हिंदुस्तान की वकालत करते दिखते हैं. हम भी कहते हैं कि फिलहाल मोदी युग चल रहा है. इस दौर में कुछ भी नया देखने को मिल सकता है.

वे जहां भी प्रवास पर जा रहे हैं, वहां प्रोटोकाल तोड़ने और नए नियम बनाने में विश्वास करते दिखते हैं. वे पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने अमेरीकी राष्ट्रपति को सिर्फ बराक कहके पुकारा. वे जब बस्तर कलेक्टर अमित कटारिया से हाथ​ मिलाते तस्वीरों में दिखे तो साफ झलक रहा है कि बस्तर के युवा अफसरों ने उनका दिल जीता है. गर्मजोशी प्रस्तुत करती ये तस्वीरें राजधानी में बैठे अफसरों को जरूर खटक सकती हैं. हो सकता है इसी खटक को नोटिस के रूप में तामील किया गया हो. जिसकी चर्चा हो रही है.

लेकिन लाख टके का सवालनुमा जवाब तो यह भी है कि बस्तर में कोई रोज-रोज तो पीएम आते हैं नहीं कि यह ध्यान रखा जाए कि क्या पहनें और क्या ना पहनें?

*लेखक दंतेवाड़ा से प्रकाशित ‘बस्तर इंपैक्ट’ के संपादक हैं.

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