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सीरिया को ‘हैप्पी न्यू ईयर’

सुदेशना रुहान
आठ दिसंबर को जो सीरिया में हुआ उसकी उम्मीद दुनिया को नहीं थी. शायद सत्ता में आये ‘हयात-तहरीर-अल-शम’ यानी एचटीएस को भी नहीं. असद परिवार के देश छोड़ते ही प्रधान मंत्री मोहम्मद अल बशीर से एचटीएस प्रमुख अबू मोहम्मद की दमिश्क में एक मुलाक़ात हुयी, जिसके फ़ौरन बाद सत्ता की कमान एचटीएस के हाथों में आ गयी. सीरिया के इस तख्तापलट को साल 2011 से शुरू हुए ‘अरब स्प्रिंग’ का अंत माना जा सकता है.

सत्ता में आने के बाद अबू मोहम्मद ने जो सबसे पहले किया वह था- अपने असली नाम ‘अहमद-अल-शरा’ के साथ संयुक्त राष्ट्र प्रमुख और अंतर्राष्ट्रीय नेताओं के सामने आना. शरा अपनी सभी मुलाक़ातों में ज़ोर देकर कह रहे हैं, कि सीरिया में जो कुछ भी होने जा रहा है वह मिस्र, इराक़ और अफ़ग़ानिस्तान से अलग होगा, मगर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को इसमें संशय है. कारण कि एचटीएस की जड़ें अल-क़ाएदा से जुड़ी हैं. उनके शुरूआती दिनों में इस्लामी चरमपंथ हावी था.

दूसरा, जिस तरीक़े से 2016 से एचटीएस सीरियाई सरकार के ख़िलाफ़ हिंसा में लिप्त रहा, उससे यूएन, अमरीका, और यूके ने उसे आतंकवादी संगठन घोषित कर रखा है. एचटीएस से आतंकवादी गुट का तमगा हटाना शरा की प्राथमिकता होगी.

अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को छोड़ भी दिया जाये, तो गृह युद्ध की वजह से सीरिया की अर्थव्यवस्था लचर है. विश्व बैंक के अनुसार, 2023 में जीडीपी में 1.2% की गिरावट आई, और 2024 में 1.5% की और गिरावट अनुमानित है. इसके अलावा रिफ्यूजी समस्या तो है ही.

लेकिन सबसे बड़ा संघर्ष सीरिया में ड्रग तस्करी का है. 2011 से बड़े देशों के आर्थिक प्रतिबंध के बाद, बशर युग का सबसे प्रमुख हथियार सीरिया से ‘केप्टागन’ नामक ड्रग की तस्करी रहा है. बशर पर यह आरोप है कि न केवल उन्होंने अरब देशों में इसे सप्लाई करते हुए वहाँ सामाजिक अस्थिरता लाने की कोशिश की, बल्कि इस पूरे साम्राज्य में भाई-भतीजावाद को भी जमकर बढ़ावा दिया. विशेषज्ञों के अनुसार बिना केंद्र सरकार और सेना की मिलीभगत के ड्रग सीमा पार नहीं जा सकता. केंद्र में स्वयं असद थे, और सेना-प्रमुख थे उनके भाई महर-अल-बशर!

जॉर्डन, अरब देश और मध्य एशिया के आतंकवादी लड़ाकों में कप्टागन की ज़बरदस्त मांग है. एक कप्टागन टेबलेट बनाने में जहां 5 डॉलर की लागत है, वहीँ इसकी बाज़ार में क़ीमत 17-18 डॉलर तक की है; यानी तीन गुना ज़्यादा. मुनाफ़े का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है.

पिछले हफ़्ते इसके बड़े जख़ीरे को एचटीएस ने नष्ट किया, और उम्मीद जगी कि आने वाले समय में सीरिया ड्रग मुक्त होगा. इस पर जामिया मिलिया में मध्य पूर्व मामलों के जानकार डॉ. प्रेम आनंद बताते हैं “किसी भी धार्मिक चरमपंथी समूह के लिए उसकी धार्मिक मान्यताएं बहुत अहम होती हैं. एचटीएस के साथ भी ऐसा ही है.

ये तो तय है कि इस्लाम में ड्रग के हराम होने की वजह से, उनकी ये पुर ज़ोर कोशिश रहेगी की सीरिया से ड्रग तस्करी का सफ़ाया हो. लेकिन इसे अमली जामा पहनाने में कई चुनौतियां आएँगी, ख़ासकर एक ऐसा अवैध व्यापार जो 4.6 बिलियन डॉलर होने के साथ बिचौलियों के हाथों में हो. इसमें कई इलाक़ों के ख़लीफ़ा शामिल है, और तस्करी को रोकना उनकी आमदनी को रोकना होगा.”

इसके अलावा एचटीएस खुद को ‘मॉडरेट’ और अल्पसंख्यों का आदर करने वाले रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं. लेकिन सीरिया के बाक़ी इस्लामी चरमपंथी गुट जैसे कूर्द और आईएस उनके इस रवैये को शायद ही स्वीकारें. एचटीएस प्रमुख ये भी दावा कर रहे हैं कि अब बशर विरोधी सभी गुटों को एक साथ लाया जायेगा और सभी एक प्रशासन के अंतर्गत जवाबदार होंगे. लेकिन सभी गुट शरा की सरपरस्ती को स्वीकार लें, ऐसा भी नहीं है.

जॉर्डन में भारत के पूर्व राजनयिक अनिल त्रिगुणायत बताते हैं “सीरिया एक ऐसा देश है जिसमें कई जातीय समूह और धार्मिक मान्यताएँ हैं, जबकि एचटीएस मुख्य रूप से सुन्नी परंपरा का पालन करता है. हालांकि नए नेता ने सही कदम उठाए हैं और वह निष्पक्ष और समावेशी दिखना चाहते हैं, उन्हें अपनी खुद की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जैसे ‘इदलिब’ मॉडल की शासन प्रणाली और उनके अपने रूढ़िवादी समर्थकों से. बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी इस बार समझौते पर पहुँच पाते हैं या नहीं. अब जबकि ईरान और रूस मुख्य भूमिका में नहीं हैं, अमेरिका-तुर्की-इज़राइल का समीकरण देखने लायक होगा.”

हैरानी नहीं होगी अगर आने वाले समय में एचटीएस और बाकी चरमपंथी गुट आमने सामने आ जाएँ, और सत्ता को लेकर गृह युद्ध जारी रहे.

भारत के लिए भी सीरिया अब एक नया समीकरण है. पूर्व में भारत ने जहां गोलान पहाड़ियों में सीरियाई सर्वभौमिकता का समर्थन किया है, वहीं सीरिया भी संयुक्त राष्ट्र में भारत के कश्मीर रूख की पैरवी करता रहा है. लेकिन वह दौर-ए-असद था. वर्तमान में एचटीएस से उसी समर्थन की उम्मीद बेमानी होगी.

एचटीएस का दमिश्क़ और सेना पर कब्ज़ा करना एक बात है, और समूर्ण सीरिया में स्थाई शासन देना दूसरी बात. यह भारत के साथ उसके कूटनीतिक समीकरण को भी प्रभावित करेगा. फिलहाल, भारत को सीरिया के स्थायित्व और वहां के वैध शासन के साथ, कूटनीतिक संबंध मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करना होगा. यही उम्मीद अन्य देशों से भी है जिससे क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा मिल सके. तभी सही मायने में आने वाला साल सीरिया के लिए ‘हैप्पी नई ईयर’ होगा.

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