लंबे समय तक याद किए जाएंगे बालचंदर
चेन्नई | मनोरंजन डेस्क: दादा साहेब फाल्के पुरस्कार प्राप्त करने वाले बालचंदर को उनके निधम के बाद भी लंबे समय तक याद किया जायेगा. उनके निधन के बाद भी उनके दो शिष्य कमल हासन तथा रजनीकांत उनके नाम को जीवित रखेंगे. सिने जगत को सुपरस्टार रजनीकांत, कमल हासन, सरिता और प्रकाश राज जैसे नायाब हीरे देने वाले विख्यात फिल्म निर्माता-निर्देशक के. बालचंदर की सारगर्भित फिल्में हमेशा याद की जाएंगी. बालचंदर ने मंगलवार को चेन्नई के कावेरी अस्पताल में अंतिम सांस ली, जहां वह कई दिनों से भर्ती थे.
अपने जीवनकाल में 150 से अधिक फिल्में देने वाले बालचंदर को उनकी ‘अवल ओरा थोडार काथै’, ‘अवरगल’, ‘वरुमायिन निरम सिगप्पू’ और ’47 नटकल’ फिल्म के लिए विशेष रूप से जानता है.
प्राणी विज्ञान में स्नातक करने वाले बालचंदर जीवन के शुरुआती वर्षो में रंगमंच और नाटकों के प्रति आकर्षित हुए और नाटकों में सक्रिय रूप से भाग भी लिया. नाटकों के प्रति अपने विशेष लगाव की वजह से वह नाटक कंपनी युनाइटेड एमेच्योर आर्टिस्ट के जरिए रंगमंच से जुड़े. बाद में उन्होंने स्वयं की नाटक कंपनी शुरू की. उनका नाटक ‘मेजर चंद्रकांत’ जबर्दस्त रूप से सफल रहा था.
फिल्म जगत में कदम रखने के बाद भी बालचंदर का नाटकों से प्रेम जारी रहा. यही वजह थी कि उन्होंने एक नाटक को फिल्म का रूप दिया, जिसे जबर्दस्त सफलता मिली. जल्द ही उन्होंने सामाजिक और पारिवारिक मुद्दों पर आधारित फिल्में बनानी शुरू कीं.
उनकी ऐसी ही एक फिल्म है-‘अरंगेट्रम’. यह फिल्म एक ब्राह्मण लड़की की गरीबी और मजबूरन उसके वेश्यावृत्ति में जाने की कहानी है. इस फिल्म में अभिनेता कमल हासन ने अपनी पहली वयस्क भूमिका निभाई थी.
बालचंदर ने एक युवक के अपनी से बड़ी उम्र की महिला के प्यार में पड़ने की कहानी लेकर रजनीकांत को सिनेजगत में प्रवेश कराया. इस फिल्म का नाम था- ‘अब्बोरवा रगंगाल’.
दादा साहेब फाल्के पुरस्कार प्राप्त करने वाले बालचंदर ने हिंदी सिनेजगत को ‘आईना’, ‘एक दूजे के लिए’ और ‘एक नई पहेली’ जैसी फिल्में दीं. उन्हें 1987 में पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया.