बाबूलाल की सेवानिवृत्ति को कैट ने किया रद्द
रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ में जबरन सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी बाबूलाल अग्रवाल को बड़ी राहत मिली है. सरकार द्वारा अनिवार्य रुप से उन्हें सेवानिवृत्त किये जाने के फैसले पर कैट ने रोक लगा दी है. कैट ने सरकार के फैसले को रद्द करते हुये बी एस अग्रवाल को पुरानी वरिष्ठता समेत सारी व्यवस्था बहाल करने का भी आदेश दिया है.
गौरतलब है कि पिछले साल अगस्त में छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित आईएएस बाबूलाल अग्रवाल को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई थी. उनके साथ-साथ अजयपाल सिंह को भी अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी गई है. अजयपाल सिंह 1986 बैच के आईएएस थे. जबकि बाबूलाल अग्रवाल 1988 बैच के आईएएस थे और छत्तीसगढ़ सरकार में उच्च शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव थे, जिन्हें गिरफ़्तारी के बाद निलंबित कर दिया गया था. छत्तीसगढ़ के तीन आईपीएस अफसरों आरके देवांगन, एएम जूरी व केसी अग्रवाल को कुछ दिनों पहले ही अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी गई थी.
इस सेवानिवृत्ति के आदेश के बाद बाबूलाल अग्रवाल ने कहा था कि सरकार का यह निर्णय सही नहीं है और वे इसके खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखेंगे. उन्होंने कहा था कि उनका मामला कैट और अदालत में लंबित है, ऐसे में सरकार बिना मेरा पक्ष जाने एकतरफा निर्णय नहीं ले सकती है.
बाबूलाल अग्रवाल के खिलाफ सीबीआई में चल रहे अपने मामले को खत्म करने के लिये कथित रुप से पीएमओ के अधिकारियों को रिश्वत देने का आरोप है. फरवरी में सीबीआई ने बाबूलाल के घर छापा मार कर कई घंटों तक पूछताछ की थी और दस्तावेजों को जब्त किया था.
बाबूलाल अग्रवाल का नाम 2010 में पहली बार उस समय चर्चा में आया था, जब उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले में आयकर विभाद की कार्रवाई हुई थी. बाबूलाल पर आरोप लगा कि उन्होंने रायपुर ज़िले के खरोरा के 220 गांव वालों के नाम से फर्जी बैंक खाते खुलवा कर उसमें भारी निवेश किया है. बाबूलाल पर 253 करोड़ की संपत्ति तथा 85 लाख के बीमा की खबरें सामने आई थीं.
इसकी कई कहानियां छपी, अफवाहें उड़ीं , बाबू लाल निलंबित हुये और अंततः सरकार ने बाबूलाल अग्रवाल को बेदाग घोषित करते हुये उन्हें महत्वूर्ण पद दे दिया. बाबूलाल अग्रवाल का दावा है कि उन्होंने पूरे मामले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी, जिसके बाद उन्हें बेदाग घोषित किया गया.
इधर आयकर विभाग ने इस मामले को सीबीआई को सौंप दिया था और आरोप है कि इसी मामले को खत्म करने के लिये कथित रुप से डेढ़ करोड़ की रिश्वत देने की कोशिश की गई. यहां तक कि इस मामले में सीबीआई ने रिश्वत के रुप में दिये जाने वाला दो किलोग्राम सोना भी जब्त किया.
तिहाड़ जेल में बंद बाबूलाल अग्रवाल के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय ने आरोप लगाया था कि 2006 से 2009 के बीच बाबूलाल ने भ्रष्टाचार करके 36 करोड़ की संपत्ति बनाई. 2010 में प्रवर्तन निदेशालय ने बाबूलाल के खिलाफ मामला दर्ज किया था लेकिन बाद में यह मामला फाइलों में उलझा रहा.
प्रवर्तन निदेशालय का कहना है कि बाबूलाल ने भ्रष्टाचार से की गई कमाई को छुपाने के लिये 446 ग्रामीणों के नाम से बेनामी खाता खोल लिया. इन ग्रामीणों को इस बारे में कुछ भी नहीं पता था. बाद में इन्हीं खातों की रकम को अपनी कंपनी में लगवा कर रकम को सफेद करने की कोशिश की गई. बाबूलाल अग्रवाल की 36 करोड़ रुपये की संपत्ति पहले ही अटैच की जा चुकी है.