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द्विज-वणिक मकड़जाल में शूद्र मक्षिका!

कनक तिवारी
भारतीय राजनीति में एक अंतर्धारा बह रही जैसे पौराणिक किंवदंतियों की सरस्वती नदी. है भी और नहीं भी दिखाई देती, लेकिन अस्तित्व में कही जाती है. हिन्दू मुस्लिम राजनीति लगातार वाचाल ककहरा है. उसकी आड़़ में हिन्दुओं की सवर्ण श्रेष्ठता ने क्षत्रिय और वणिक कुल पर रणनीति कायम करने भरोसा किया है.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तमाम दिमागी संकीर्णताओं के आरोप के बावजूद सादगी, शुचिता, स्वदेशी और सामाजिक समरसता का मुखौटा लगाकर सत्तानशीन होने धीरे धीरे तयशुदा इरादों के साथ बढ़ता रहा. अपने शताब्दी समारोह (2025) के पहले उसने काफी फतह हासिल कर ली है.

हालिया यह लगता है कि भाजपा के चाल और चरित्र में संघ को विकार दिख रहे होंगे. उसे डर होगा ये विकार भाजपा को सत्ता से बेदखल न कर दें. संघ ने धीरज रखते आठ नौ दशकों की प्रतीक्षा के बाद सत्ता हासिल की है. इसलिए नया शिगूफा छेड़कर एक समर्पित शाख्सियत को ढूंढ़ा.

तेज तर्रार, चपल, वाचाल इन्कम टैक्स ऑफिसर की नौकरी छुड़ाकर उसे दक्षिण पंथ के एक नए सत्ताभिमुख चरित्र के रूप में तराशना शुरू किया. अरविंद केजरीवाल संघ चिन्तन के उत्पाद हैं. नरेन्द्र मोदी के आत्ममुग्ध, प्रभावशाली, महत्वाकांक्षी लेकिन अनियंत्रित होते व्यक्तित्व के पूरे विपक्षी स्पेस को भी संघ अपने एकाधिकारवाद में हासिल कर रखना चाहता होगा. चाहता होगा सभी विपक्षी पार्टियां गुमनामी के हाशिए में धकेल दी जाएं.

भाजपा के सत्ताच्युत होने की हालत में केजरीवाल की अगुआई में आम आदमी पार्टी को सामने किया जाए. संघ परिवार के विराट छाते के नीचे सत्ता और विपक्ष दोनों नंबरदारी करते रहें.

योजना के मुख्य किरदार केजरीवाल गौरव के साथ घोषणा करते हैं कि वे और उनका परिवार संघ के समर्पित कार्यकर्ता रहे हैं. शाहीन बाग, नागरिकता कानून, कश्मीर अवमूल्यन, किसान आंदोलन, जहांगीरपुरी बुलडोजर कांड जैसी तमाम घटनाओं में केन्द्र सरकार का साथ देते हैं. दिल्ली में सरकार बनाकर पॉलिटिक्स को ही मैनेजमेंट में बदल देते हैं.
समर्थ, सवर्ण और आलिम फाजिल मतदाताओें की धडे़बन्दी करके मुफलिसों को समझा देते हैं कि देश में नया हातिमताई आया है. वह पहली बार दिल्ली को स्कूल, अस्पताल, बिजली, पानी, सड़क वगैरह मुहैया करा रहा है. नागरिकों को सरकार से इससे ज्यादा उम्मीद नहीं करनी चाहिए.

केजरीवाल संविधान के मूल अधिकारों और नागरिक आजादी की बात जानबूझकर नहीं करते. संघ विचार में भारतीय संविधान ही अनावश्यक दस्तावेज है. उसे खत्म करते हिन्दू राष्ट्र बनाना है. केजरीवाल भारत की राजधानी में रहकर भी नागरिकों को शिक्षण नहीं देते. वे हर सरकारी अत्याचार के खिलाफ गांधी की तरह जनसंघर्ष करने की सीख मिटाते चलते हैं.

उनकी पूरी ताकत दिल्ली सरकार की संवैधानिक और प्रशासनिक हैसियत बढ़ाने की रहती है. वे पंजाब के सरकारी अधिकारियों को गोपनीय दस्तावेजों सहित आम आदमी पार्टी के संयोजक की हैसियत में दिल्ली बुला लेते हैं और दखलंदाजी करते निर्देश जारी करते हैं.

केन्द्र शासित सीमित अधिकारों वाली दिल्ली सरकार के मुखिया अपनी ही पार्टी के पूर्ण अधिकार प्राप्त पंजाब के मुख्यमंत्री को अपना मातहत दिखा देते हैं. विरुद्ध टिप्पणी करने पर पार्टी में रहे कवि कुमार विश्वास के खिलाफ पुलिसिया कार्यवाही कराते हैं. अपने से उम्र और अनुभव में वरिष्ठ ख्यातनाम वकील प्रशांत भूषण, समाजविद प्रो. आनंद कुमार, एक्टिविस्ट योगेन्द्र यादव, पत्रकार आशुतोष, प्रशासक किरण बेदी वगैरह को पार्टी से बाहर कर एकला चलो गाते हैं.

उम्र, अनुभव तथा सामाजिकी ज्ञान में उनसे वरिष्ठ पार्टी में नहीं रह पाता. सुनिश्चित करते हैं एकक्षत्र हुकूमत चलती रहे. केजरीवाल छोटे मोदी या भविष्य के मोदी की तरह तराशे जा रहे हैं. मोदी ने अडानी और अंबानी की हैसियत के विश्व स्तर के खरबपतियों को हासिल कर रखा है.

देश की दौलत गैरकानूनी तौर से उनको दहेज की तरह देते हैं. मझोले दर्जे के सत्ता सुलभ उद्योगपति भी हैं. उनमें से कई केजरीवाल की महत्वाकांक्षाओं के साथ संबद्ध होने से धन की कमी अब महसूस नहीं हो रही. जनता का केवल स्कूल, अस्पताल, पेयजल, बिजली, सड़क जैसी अधोसंरचनाओं में कुछ इजाफा या बेहतरी देखकर जनता होने का संवैधानिक संतोष मिलने लगता है.

ऐसा नहीं कि केजरीवाल केवल मिट्टी के माधो हैं. इसलिए चुने गए हैं कि उनमें अपना भी कुछ माद्दा है. नरेन्द्र मोदी की मीडिया तकनीक का इस्तेमाल करते केजरीवाल ने अपनी स्टार वैल्यू पैदा कर ली है. वे हताश मतदाताओं को दिल्ली के बाहर भी राबिनहुड नजर आने लगे हैं.

केजरीवाल बहुत सयानी समझदारी के तिलिस्म के साथ भाजपा पर दोस्ताना हमला करते हैं. उससे विपक्ष का सांप मर जाए और भाजपा की लाठी नहीं टूटे. विवेक अग्निहोत्री की ‘दी कश्मीर फाइल्स‘ का मजाक उड़ाते उन्होंने मोदी का भी सस्ती लोकप्रियता पाने के किरदारों में शुमार कर लिया. दिल्ली विधानसभा के भाषण में भाजपा सदस्यों पर कटाक्ष करते शातिराना अंदाज में कह दिया भाजपा छोड़ो.

आम आदमी पार्टी में शामिल हो. जिस पार्टी से खुंदक है, उसी पार्टी के सदस्यों को बहलाने फुसलाने का मतलब? कभी नहीं कहा प्रगतिशील, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष ताकतें उनके साथ जुड़ें. चतुर केजरीवाल ने दिल्ली का दुबारा मुख्यमंत्री बनने या पंजाब में पहली बार सरकार बनने पर किसी राज्य के मुख्यमंत्री को आमंत्रित नहीं किया. दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने पर अलबत्ता कहा वे केवल प्रधानमंत्री को बुला सकते हैं क्योंकि केन्द्र सरकार से काम रहता है.

केजरीवाल में दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक एवं अन्य वंचित वर्गों के लिए प्राथमिकता भी नहीं है. दिल्ली और पंजाब से राज्यसभा में आम आदमी पार्टी ने सवर्ण और ज्यादातर धनाड्य उम्मीदवार भेजे. राष्ट्रीय फलक पर आने यह महत्वाकांक्षा है.

बहुजन की उपेक्षा अभी से उनके राजनीतिक अस्तित्व गर्भगृह में भ्रूण की तरह आ गई है. आनुपातिक आंकड़े बता सकते हैं छोटे प्रदेश दिल्ली ने जितना विज्ञापन मीडिया को परोसा है, कई राज्यों के मुकाबले ज्यादा होगा. केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की सफलता इसलिए भी है कि कई सरकारों ने प्रदेशों में बुनियादी जरूरतों स्कूल, अस्पताल, सड़कें, पानी, बिजली वगैरह को मुनासिब अनुपात में नहीं जुटाया. उनकी पार्टी ने यह काम कर दिखाया तो है.

इसी बीच दिल्ली के जहांगीरपुरी बुलडोजर कांड की आड़ में दिलचस्प किरदार मोहम्मद अंसार उभरा है. एक ही थैली के चट्टेबट्टे की तरह वह एक साथ अलग अलग मौकों पर भाजपा और आम आदमी पार्टी की टोपी लगाए हुए है. दोनों पार्टियां एक दूसरे को उलाहना दे रही हैं कि अंसार हमारी नहीं तुम्हारी पार्टी में है. मिली जुली कुश्ती या डबल क्रास का यह एक अनोखा विरल राष्ट्रीय उदाहरण है.

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